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Parma Ekadashi~परमा एकादशी


अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। वैसे तो हर वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से लोकप्रिय हैं। इस उपवास को रखने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है | इस व्रत को पूरे विधि विधान से करना चाहिए और उपवास के दिन भगवान विष्णु की धूप, दीप, नैवेद्ध, फूल आदि से आरती करनी चाहिए|  इस एकादशी के उपलक्ष्य में कई मनमोहक कहानियाँ प्रचलित है |


परमा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को परमा एकादशी व्रत का महत्व और कथा के पाठ से अवगत कराया था।

प्राचीन काल में काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम पवित्रा था। वह परम सती और साध्वी थी। वे दरिद्रता और निर्धनता में जीवन निर्वाह करते हुए भी परम धार्मिक थे और अतिथि सेवा में हमेशा तत्पर रहते थे। एक दिन गरीबी से दुखी होकर ब्राह्मण ने परदेश जाने का विचार किया, किंतु उसकी पत्नी ने कहा- ‘’स्वामी धन और संतान पूर्वजन्म के दान से ही प्राप्त होते हैं, अत: आप इसके लिए चिंता ना करें।’’

एक दिन महर्षि कौडिन्य उनके घर आए। ब्राह्मण दंपति ने तन-मन से उनकी सेवा की। महर्षि ने उनकी दशा देखकर उन्हें परमा एकादशी का व्रत करने को कहा। उन्होंने कहा- ‘’दरिद्रता को दूर करने का सुगम उपाय यही है कि, तुम दोनों मिलकर अधिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण करो। इस एकादशी के व्रत से यक्षराज कुबेर धनाधीश बना है, हरिशचंद्र राजा हुआ है।’’

ऐसा कहकर मुनि चले गए और सुमेधा ने पत्नी सहित व्रत किया। प्रात: काल एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया और उसने सुमेधा को सर्व साधन, संपन्न, सर्व सुख समृद्ध कर एक अच्छा घर रहने को दिया। इसके बाद उनके समस्त दुख दर्द दूर हो गए।


परमा एकाद्शी व्रत विधि

एकाद्शी तिथि से पूर्व की रात्रि दशमी तिथि की होती है। इस रात्रि में परमा एकादशी व्रत आरम्भ किया जाता है। यह व्रत क्योकिं 24 घंटे की अवधि का होता है, इसलिये इसे रखना कठिन होता है परन्तु मानसिक रुप से स्वयं को इस व्रत के लिये तैयार करने पर व्रत को सहजता के साथ किया जा सकता है, फिर श्रद्धा और विश्वास बनाये रखने से कठोर व्रत भी सरल हो जाता है, इस व्रत को द्शमी तिथि की रात्रि से ही शुरु किया जाता है।

दशमी तिथि की अवधि भी इस व्रत की समयावधि में आती है। इसलिये दशमी तिथि में सात्विक भोजन करना चाहिए। सात्विक भोजन में मांस, मसूर, चना, शहद, शाक और मांगा हुआ भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन में नमक भी न हों, तो और भी अच्छा रहता है। भोजने करने के लिये कांसे के बर्तन का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही इस दिन भूमि पर शयन करना शुभ रहता है। इसके अतिरिक्त दशमी तिथि से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना भी आवश्यक होता है।  

एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को एकाद्शी के दिन प्रात: उठना चाहिए। प्रात:काल की सभी क्रियाओं से मुक्त होने के बाद उसे स्नान कार्य में मिट्टी, तिल, कुश और आंवले के लेप का प्रयोग करना चाहिए। स्नान करते हुए सबसे पहले शरीर में मिट्टी का लेप लगाया जाता है। और उसके बाद तिल का लेप, आंवले का लेप और कुश से रगड़ कर स्नान करना चाहिए। इन वस्तुओं का प्रयोग करने से व्यक्ति पूजा करने योग्य शुद्ध हो जाता है। इस स्नान को किसी पवित्र नदी, तीर्थ या सरोवर अथवा तालाब पर करना चाहिए। अगर यह संभव न हो, तो घर पर ही स्नान किया जा सकता है।

स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए, और भगवान विष्णु और शंकर जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के लिये इन देवों की प्रतिमा का प्रयोग करना चाहिए, और प्रतिमा न मिलें, तो तस्वीर का प्रयोग किया जा सकता है। सबसे पहले प्रतिमा या तस्वीर का पूजन करना चाहिए। इसके बाद एक स्थान पर धान रख उसके ऊपर मिट्टी या तांबें का घड़ा रखा जाता है। घड़े पर लाल वस्त्र बांध कर धूप से इसका पूजन करना चाहिए। इसके बाद घड़े पर तांबे या चांदी का बर्तन रखा जाता है, और भगवान की आरती धूप, दीप, पुष्प से की जाती है | 

 


 

Ekadashi of Krishna Paksha of Adhikamas is known as Parma Ekadashi. By the way, there are 24 Ekadashis every year. When Adhikamas or Malamas comes, then their number increases to 26. Adhikamas consists of 2 Ekadashis, popularly known as Padmini Ekadashi (Shukla Paksha) and Parma Ekadashi (Krishna Paksha). By keeping this fast, one gets freedom from all sins. This fast should be done with complete method and on the day of fasting, Lord Vishnu should perform Aarti with incense, lamp, naived, flowers etc. Many fascinating stories are prevalent on the occasion of this Ekadashi.


Parma Ekadashi Fasting Story

According to mythological beliefs, Lord Shri Krishna had made Arjuna aware of the importance of Parama Ekadashi fast and the text of the story.

In ancient times a Brahmin named Sumedha lived in Kampilya Nagar. His wife's name was Pavitra. She was the ultimate sati and sadhvi. He was supremely religious even while living in poverty and was always ready for guest service. One day, saddened by the poverty, the Brahmin thought of going to Pardesh, but his wife said - "Swami money and children are received only by donations of previous births, so don't worry about it."

One day Maharishi Kaudinya came to his house. The Brahmin couple served them whole-heartedly. Seeing his condition, Maharishi asked him to observe Parma Ekadashi fast. He said, "The easiest way to remove the poverty is that, together you both keep observing the Ekadashi of Krishna Paksha and awakening at night. Yaksharaj Kubera has become a Dhanadhish by fasting on this Ekadashi, Harishchandra has become king. "

Saying this, the sage went away and Sumedha fasted with his wife. In the morning, a prince came riding on a horse and gave Sumedha a good home by enriching all means, prosperity, all happiness. After this, all their suffering and pain went away.


Parma Ekadashi Fasting Method

The night before Ekadashi date is Dashami. On this night, Parma Ekadashi fast is started. This fast is of 24 hours duration, so it is difficult to keep it, but if you prepare yourself mentally for this fast, the fast can be done with ease, then by keeping faith and faith, fasting is also hard. It becomes simple, this fast is started from the night of Dashmi Tithi.

The period of Dashami Tithi also falls in the period of this fast. That is why Satvik food should be eaten on Dashami Tithi. Meat, lentils, gram, honey, herb and sought food should not be eaten in satvik food. Even if there is no salt in the food, it is better. Bronze utensils should be used to eat. Also, sleeping on the land is auspicious on this day. Apart from this, it is also necessary to observe Brahmacharya from the Dashami date.

A person observing Ekadashi fast should wake up in the morning on Ekadashi. After getting free from all the activities of the morning, he should use mud, sesame, Kush and Amla paste in his bathing work. Firstly, a mud coating is applied to the body while taking a bath. And after that, one should take a bath after rubbing with sesame paste, gooseberry paste and Kush. By using these things, the person becomes pure to be worshiped. This bath should be done on any holy river, shrine or lake or pond. If this is not possible, a bath can be done at home.

One should wear clean clothes after bathing, and worship Lord Vishnu and Shankar Ji. The idol of these Gods should be used for worshiping, and if the idols are not found, then the picture can be used. The idol or photo should be worshiped first. After this, a grain or copper pitcher is placed at one place on the grain. A red cloth should be tied on the pitcher and worshiped with sunlight. After this, a pot of copper or silver is placed on the pitcher, and the Lord's Aarti is performed with incense, lamp, flower.

 
 
 
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