भारतीय धर्म संस्कृति में भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है लेकिन भगवान राम की प्रासंगिकता को संक्रमित करने का काम भी किया है।
रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है उसे अगर सामान्यजन अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए। लेकिन जनमानस तो सिर्फ रामजी की पूजा में व्यस्त है, यहां तक की हिंसा से भी उसे परहेज नहीं है।
राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। आज न तो कोई आदर्श पति है और न ही आदर्श पुत्र या भाई है। ज्यो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से रहता है। उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है।
वर्तमान युग में हमारे जनप्रतिनिधि जनसेवा की बजाए स्वसेवा में ज्यादा विश्वास करते हैं जबकि भगवान राम ने खुद मर्यादा का पालन करते हुए स्वयं को तकलीफ और दुख देते हुए प्रजा को सुखी रखा क्योंकि उनके लिए जनसेवा सर्वोपरि थी।
यदि राम जैसे आदर्श, मर्यादा और चरित्र केवल एक प्रतिशत ही हमारे देश के नेता अपने जीवन में आत्मसात कर लें तो आज हम विश्व मंच पर सुशोभित हो जाएंगे। प्रजा का सच्चा जनसेवक, राम जैसा आदर्श सद्चरित्र आज के युग में दुर्लभ है।