माँ दुर्गा के छठे रूप का नाम कात्यायनी है। इनके नाम से जुड़ी कथा है कि एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि थे। उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए। उन्होंने भगवती पराम्बरा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय के पश्चात जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिएब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था।
महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं।अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के बाद शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, पूजा ग्रहण कर दशमी को इस देवी ने महिषासुर का वध किया। इन का स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजायें हैं, इनका दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में है, नीचे का हाथ वरदमुद्रा में है। बांये ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल है और इनका वाहन सिंह है।
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
आज के दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है। योगसाधना में आज्ञाचक्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित साधक कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है। पूर्ण आत्मदान करने से साधक को सहजरूप से माँ के दर्शन हो जाते हैं। माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
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The name of the sixth form of Maa Durga is Katyayani. There is a story related to her name that once upon a time there was a famous Sage Kat. His son was named sage katya, In the gautra Katya popular on his name, the world famous sage Katyayan was born. Rishi Katyayan worship and practiced tough penance of Maa Bhagwati Parambara . His wish was that Maa Bhagwati will born as a daughter in her house. Maa Durga accepted his prayer and fulfill his wish.After some time when the tyranny of the monster named Mahishasur had increased a lot, then to destroy him, Lord Brahma, Lord Vishnu and Lord Mahesh creates Devi Maa with their energy and powers.
Maharishi Katyayana worshiped him that's why she was called Devi Katyayani.After her birth on Ashwin Krishna(black side) Chaturdasi, in Shukla Paksha(Darker fortnight) on the day of Saptami, Ashtami and Navami, Rishi Katiyayna worshiped Maa Katyayani for three days, after worship of Rishi(sage) the goddess Maa Katyayni slaughtered Demon Mahishasur. Katyayani form of Maa Durga is very divine. Her Complexion is bright like the gold. She have four arms, her right hand is in Abhay Mudra (posture), the lower hand is in Varadamudra. The left hand holds sword and a lotus flower is in the lower hand and her vehicle is a lion.
Today, the mind of the seeker is located in the Aagya Chakra. In Yoga, Aagya Chakra holds an important place. Seeker of Maa Bhagwati in this Chakra, dedicates herself to Katyayani's feet. By fully self-sacrifice, the seeker instinctively got the blessings of Maa Durga. By the devotion of Mother Katyayni directly. By the devotion towards Maa Katyayani devotee got the Artha(finance), Karma(work), Kama, Mauksha(salvation) as blessings.