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Devshayani Ekadashi~देवशयनी एकादशी

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। उसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत भी मानी जाती है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभ एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। 

देवशयनी एकादशी के व्रत में सभी को उपवास करना श्रेष्ठ बताया गया है। इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और सभी पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने का महत्व है, क्योंकि इस रात से भगवान की नींद की अवधि शुरू होती है, जिसे चातुर्मास या चौमासा की शुरुआत भी कहा जाता है।


देवशयनी एकादशी व्रत कथा :

देवशयनी एकादशी से संबंधित एक पौराणिक कथा प्रचलित है। सूर्यवंशी मान्धाता नामक एक राजा थे। वह सत्यवादी, महान और चक्रवती थे। वह अपनी प्रजा का पुत्र के समान ध्यान रखते थे। उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था, लेकिन एक समय राजा के राज्य में अकाल पड़ा। 

राजा मान्धाता बहुत सारे साधुओं के पास गये और यह प्रार्थना करने लगा, कि उसके दुख का कारण बता दे, लेकिन हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी। इस पीड़ा से राहत पाने का साधन खोजने के लिए वह सैनिकों के साथ जंगल की ओर चल दिए और चलते- चलते वे अंगारा ऋषि के पुत्र के पास पहुंचे, ऋषि अंगारा ब्रह्मा जी के पुत्र थे और नित्य उनकी पूजा अर्चना करते रहते थे। 

उनके सामने राजा मान्धाता अपनी समस्याएं बताते हैं। इस पर ऋषि उन्हें एकादशी व्रत करने को कहते हैं। ऋषि के कथन के अनुसार, राजा एकादशी व्रत का पालन करते है और उन्हें अपने संकट से मुक्ति मिलती है।

इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को अपने मंत्रों, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना पड़ता है। एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने लग जाता है।

देवशयनी एकादशी के संदर्भ में कई कहानियाँ हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा - 'महाराज, यह देवशयन क्या है? जब भगवान  सो जाते हैं, तो दुनिया कैसे चलती है? भगवान क्यों सोते हैं? 

'श्रीकृष्ण ने कहा,' राजन! एक समय योगनिद्रा ने प्रार्थना की - 'मेरे शरीर में भी ईश्वर मुझे आशीर्वाद दे।' तब भगवान ने नेत्रों में योगनिद्रा दी और कहा, 'आप वर्ष में चार महीने मेरे आश्रित रहेंगे।' इसीलिए योगनिद्रा मेरी आँखों चार महीने तक बसती है।'

भागवत महापुराण के अनुसार, श्री विष्णु ने एकादशी के दिन अत्याचारी शंखसेरा का वध किया था और युद्ध के पश्चात वह थककर क्षीर सागर में सो गए। सभी देवता इस वाकये को देखकर उन पर फूल बरसाने लगे, इसी कारण वश इस तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है।

देवशयनी एकादशी पूजा विधि :

देवशयनी एकादशी व्रत पूजा विधि इस प्रकार है। 

- सुबह जल्दी उठें और नहाने के बाद साफ कपड़े पहनें।

- इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है। यदि ऐसा करने में सक्षम नहीं है, तो पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें और गंगाजल अपने घर में भी छिड़क ले।

- घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा करें।

- पूजा के बाद एकादशी व्रत कथा सुनें।

- आरती करके प्रसाद बांटें।

- इस दिन उपवास रखें, सोने, चांदी, तांबे या कांसे की मूर्ति ख़रीदे। 

भगवान विष्णु की नित्य पूजा करते रहे।


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Ekadashi of the Shukla Paksha of Ashadha month is known as Devshayani Ekadashi. The beginning of Chaturmas is also considered from the same day. Devshayani Ekadashi is also known as Harishayani Ekadashi and Padmanabha. 

All fasts are said to be superior during the fast of Devshayani Ekadashi. By observing this fast, all the wishes of the devotees are fulfilled, and all sins are destroyed. This day has the importance of doing special worship of Lord Vishnu, because from this night begins the period of sleep of God, also known as the beginning of Chaturmas or Chaumasa.

 

Devshayani Ekadashi Fast Story :

There is a legend related to Prabodhani Ekadashi. Suryavanshi was a king named Mandhata. He was truthful, noble and Chakravati. He used to take equal care of the son of his subjects. There was never a famine in his kingdom, but once upon a time there was a famine in the king's kingdom. 

He went to many kings and prayed that he should tell the reason of his sorrow, but everywhere he felt despair. To find a means to get relief from this agony, he walked towards the forest with the soldiers and while walking he reached the son of Angara Rishi, the sage Angara was the son of Brahma and constantly kept circling him before King Mandhata in front of him. Explains his problems. 

On this, the sage asks them to observe Ekadashi fast. According to the sage's statement, the king observes Ekadashi fast and gets rid of his distress.

A person observing this fast has to restrain his mantras, senses, diet and behavior. By observing Ekadashi fast, a person rises above the economy and starts walking on the path of salvation and religion.

There are many stories about Devashayan. According to mythological beliefs, Yudhishthira once asked Lord Shri Krishna - 'Maharaj, what is this Devashayan? When God sleeps, how does the world move? Why does God sleep? Sri Krishna said, "Rajan! Once Yoganidas prayed - 'May God bless me even in my body'. Then God put Yonnidra in the eyes and said, 'You will be my dependents for four months in a year.' That is why Yoganidra dwells in my eyes for four months.'

According to the Bhagavata Mahapuran, Sri Vishnu killed the tyrannical Shankhsera on the day of Ekadashi and after the war, he tired and slept in the Kshira Sea. Seeing this incident, all the gods started showering flowers on them, that is why this date is called Devshayani Ekadashi.

Devshayani Ekadashi Puja Method :

- Get up early in the morning and wear clean clothes after bathing.

- Taking a bath in holy rivers on this day also has special significance. If not able to do this, just sprinkle Ganga water in your house.

- Then, worship the idol of Lord Vishnu in the home temple.

- Listen to the fast story after worship.

- Distribute Aarti and Prasad.

- Perform Fast on this day, buy gold, silver, copper or bronze idols.

- Lord Vishnu continued to worship daily.


 
 
 
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