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Gangaur~गणगौर

gangaur festival

गौरी तृतीया, जिसे गणगौर के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला पर्व है। गणगौर पर्व 18 दिनों का लंबा पर्व है जो चैत्र महीने के पहले दिन से शुरू होता है। गणगौर पूजा भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है और यह एक हिंदू त्यौहार है जो वैवाहिक खुशहाली को प्रकट करता है। 'गण’ का अर्थ है शिव और 'गौर’ का मतलब है पार्वती। इस दिव्य जोड़े की पूजा इस दिन सभी महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। इस दिन को सौभाज तीज के रूप में भी जाना जाता है।

गणगौर त्यौहार भगवान शिव और पार्वती के आपसी संबंधों और भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। जब पार्वती माता ने शिव से एक पुत्र की कामना की, तो उन्होंने अपनी माँ से 12 वर्षों तक तपस्या कराने को कहा। इस तपस्या के बाद उनके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ। इसके बाद, गणेश के जन्म की कहानी शुरू होती है। गणगौर त्यौहार इसी कहानी के साथ शुरू होता है।

गणगौर त्योहार के तहत, माताएँ ग्यारस को धारण करती हैं। इस दौरान ब्राह्मण जाकर टोकरियों में गेहूँ ले जाकर उनके दाने बोते है। तीन दिनों तक भक्त रात्रि के समय जागरण और भजन-कीर्तन करते है।

 नखराली गणगौर आमो दछला दे जाने,

नाचे वन में मोर

जयपुरिया को देखो, चलो एक योद्धा।

- यानी शर्मीली गणगौर ने हमें जंगल में मोर की तरह नाचते हुए दिखाया। मेरे पति जिन्होंने मेरा दिल चुराया था, एक बार मुझे जयपुर दिखाने ले गए थे।

उक्त गीत महिलाओं द्वारा गणगौर पर्व के दौरान गाये जाते है।

महिलाओं की नई पीढ़ी की भाग्यशाली महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले इस त्यौहार का अपना अलग ही महत्व है। इसे लेकर महिलाओं में भारी उत्साह होता है। श्रृंगार के प्रतीक इस त्योहार में महिलाएं समूह बनाकर गीत गाती हैं, पूजा करती हैं और नाचती गाती हैं। साथ ही, शिव और पार्वती की तरह, अपने विवाहित जीवन को खुशहाल बनाने का प्रयास करती हैं।

यह परंपरा राजाओं के दिनों से जारी है। सौभाग्यशाली महिला इसे अपने पति के लिए मनाती है। पहले हर घर में ज्वार बोए जाते थे। लेकिन अब उन्हें मंदिर में ही बोया जाता है। वर्तमान में नए गीत नहीं लिखे जा रहे हैं। राजस्थान के गाने अभी भी बज रहे हैं।

यह त्यौहार मूल रूप से राजस्थान और निमाड़ का है, जो सभी स्थानों पर मनाया जाता है। यह त्यौहार अपनी सुंदरता और कुंवारी लड़कियों, शिव की तरह पति पाने की दुल्हनों की इच्छाओं के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है।

कई सालों से घर पर गणगौर की परंपरा को देखते हुए, नई पीढ़ी की बेटियां और माताएं भी इस त्यौहार को अपनाने में पीछे नहीं हैं। इसमें महिलायें बड़ा कलश लेकर मंदिर जाती हैं। पूजा स्थल पर 12 पत्ते रखती हैं। इस दिन पान खाया जाता है, गुलाल लगाया जाता है और गन्ने का रस भी पिया जाता है।

गणगौर पर्व पर महिलायें उत्साह के गीत गाती हैं। इस त्यौहार को लेकर महिलाओं में उत्सुकता का माहौल बना रहता है। महिलायें सामूहिक रूप से सामग्री एकत्रित कर पूजा अर्चना करती हैं। हर तरह से लोग इस पर्व को मानते हैं।

माहेश्वरी मंदिर में, समाज की सभी महिलायें इकट्ठा होती हैं और भगवान-पार्वती की पूजा करती हैं और फूल चढ़ाती हैं। इस दौरान गणगौर माता की शोभायात्रा भी निकाली जाती है। महिलायें पति की लंबी उम्र और घर में खुशियों के लिए गणगौर का त्यौहार मनाती हैं।

गणगौर पर्व शीतला सप्तमी से शुरू होता है। नवरात्रि की तीज पर इसकी पूजा की जाती है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा में कोई बदलाव नहीं हुआ है। नई पीढ़ी ने उसे वैसे ही अपनाया है जैसे वह अपने असली रूप में मनाई जाती है।

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Gauri Tritiya, also known as Gangaur, is a mass festival celebrated in parts of Rajasthan, Gujarat, Madhya Pradesh and Haryana. Gangaur festival is a long festival of 18 days which starts from the first day of Chaitra month. Gangaur Puja is dedicated to Lord Shiva and Goddess Parvati and is a Hindu festival that conveys marital happiness. 'Gan' means Shiva and Gaur means Parvati. On this day all the women worship this divine couple for the long life of their husband. This day is also known as Saubhaj Teej.

The Gangaur festival is based on the mythological connections between Lord Shiva and Parvati and the birth of Lord Ganesha. When Parvati Mata wished a son to Shiva, she asked her mother to do penance for 12 years. After this penance, a son was born to him. After this, the story of Ganesh's birth begins. The Gangaur festival begins with this story.

Under the Gangaur festival, Mata holds Gyaras. During this time Brahmins go and take wheat in baskets and sow their grains. Devotees do Jagran and Bhajan-Kirtan at night for three days.

Nakharali Gangaur mango is being tarnished,

Peacock in Nache Forest

Look at Jaipuria, let's be a warrior.

- That is, the shy Gangaur showed us dancing like a peacock in the forest. My husband, who stole my heart, once took me to see Jaipur.

The above songs are sung by women during Gangaur festival.


This festival celebrated by the lucky women of the new generation of women has its own significance. There is great enthusiasm among women about this. Symbol of makeup In this festival, women form groups, sing songs, worship and dance. Also, like Shiva and Parvati, try to make their married life happy

This tradition continues from the days of kings. The lucky woman celebrates it for her husband. Earlier tides were sown in every house. But now they are sown in the temple itself. Currently new songs are not being written. The songs of Rajasthan are still playing.

This festival is originally from Rajasthan and Nimar, which is celebrated in all places. This festival is celebrated as its beauty and the desire of the brides to get husbands like virgin girls, Shiva.

The tradition of Gangaur at home for many years, the daughters and mothers of the new generation are also not behind in adopting this festival. In this, women go to the temple with a large urn. There are 12 leaves at the place of worship. On this day paan is eaten, gulal is applied and sugarcane juice is also drunk.

Women sing songs of excitement on Gangaur festival. There is an atmosphere of curiosity among women about this festival. Women collectively collect materials and offer prayers. All types of people observe this festival.

In the Maheshwari temple, all the women of the society gather and worship Lord-Parvati and offer flowers. During this procession procession of Gangaur Mata is also carried out. Women celebrate the festival of Gangaur for the husband's long life and happiness at home.

Gangaur festival starts on Sheetla Saptami. It is worshiped on the Teej of Navratri. There has been no change in this tradition which has been going on for centuries. The new generation adopts her as she is celebrated in her true form.

 
 
 
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