Jaya Ekadasi fast is celebrated on Ekadashi of Shukla Paksha, Magh month. Lord Keshav is worshipped with flowers, water, Akshat, Roli and sweet smelling materials on this day. On Jaya Ekadasi, Aarti of Lord Krishna is performed after observing fast. Pasaad offered to God is distributed and then eaten. This fast will be observed on 3rd February in the year 2012.
Jaya Ekadashi Vrat Method
Lord Vishnu is worshipped in Ekadashi fast. But in Jaya Ekadashi, Lord Vishnu is also worshipped with Lord Krishna. Person observing this fast should mentally prepare himself a day before fast. After taking meal in evening on 10th day (one day before Ekadasi) the resolution of fast should be taken in the morning of Ekadashi. Then, Lord Krishna should be worshipped with incense stick, lamp, fruits. Now, Lord Vishnu should be worshipped with Panchamrit.
Fast is observed the whole day and Jagran is performed at night. Reading Vishnu Sahastranaam and doing Jagran for the whole night is considered favorable. If it is not possible to observe the fast at night, in such a case one can have fruits. In the morning of Dvadashi, after bathing, Brahmans are gifted food and alms as per the capacity of an individual. By this, a person gets free from all his sins.
Jaya Ekadasi Vrat Katha (Story)
Once in the gathering of God Indra, a demigod (Gandharva) was singing a song. But, his mind was remembering his beloved. So, while singing his rhythm went out of the path. On this, God Indra cursed him saying “The girl in whose memories you are lost will become a monster.”
Listening this, demigod asked for forgiveness from Lord Indra and pleaded him to take back these words. But, Lord Indra was unmoved. God moved him out of that gathering. When Gandharva returned home, he saw his wife had turned to a demon.
Demigod tried many methods to remove the curse from her wife, but he failed. Suddenly, one day he met Narad Rishi. Narad Rishi said him to observe fast on Ekadasi of Mah Shukla Paksha and perform Bhagwat Kirtan, do get free from the curse. So, the demigod observed the fast and his wife became normal like before.
Jaya Ekadasi Vrat Importance
Jaya Ekadasi fast is celebrated on Ekadashi of Shukla Paksha, Magh month. This Ekadashi removes all sorts of sin and is considered favorable. Observing this fast every year increases the virtuous works of a person and help him get salvation. A person can get free from evil works life Brahma Hatya
जया एकादशी
माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे जया एकादशी कहते हैं (Magha Shukla Jaya Ekadashi) घोर पापों से मुक्ति दिलाने वाली है। इस एकादशी के फल और कथा का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। यह नीच यानियों से मुक्ति दिलाने वाली है।
जया एकादशी महात्मय(Jaya Ekadasi Mahatmya)
जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए, तथा इस एकादशी का क्या महात्मय है. श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को "जया एकादशी" कहते हैं. यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है. श्री कृष्ण ने इस संदर्भ में एक कथा भी युधिष्ठिर को सुनाई.
जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha):
नंदन वन में उत्सव चल रहा था. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष वर्तमान थे. उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था. इसी बीच पुष्यवती की नज़र जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयी. पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो. माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे वह बेसुरा गाने लगा.
इन्द्र को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध हो आया और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें. मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त हों. इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया. यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी (Magha Shukla Paksha Ekadasi) के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे उस दिन वे केवल फलाहार रहे. रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंढ़ लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे. ठंढ़ के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी. अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गये और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया.
देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा. माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी (Vishnu Jaya Ekadasi) का प्रभाव है. हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं. इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें.
जया एकादशी व्रत विधि (Jaya Ekadasi Vrat Vidhan)
कथा सुनाकर श्री कृष्ण ने बताया कि जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं. जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए. इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो. एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे.
पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें. अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें. इस प्रकार नीयम निष्ठा से व्रत रखने से व्यक्ति पिशाच योनि से मुक्त हो जाता है.