The Ekadashi of Shukla Paksh, Ashwin Masa is called Papankush Ekadashi. This Ekadashi is symbolized as controlling of an elephant (regarded as a symbol of sin), by an anchor (a kind of elephant rider/ mahout). After worshipping Lord Vishnu, Brahmans are offered Navedy, on this day. By observing this fast, all sins of a person are removed. By observing this fast, a person receives Akshaya Punya. In the year 2011, this fast will be observed on 7th October.
Papankush Ekadashi Fast Benefits
Lord Vishnu is worshipped to get the desires fulfilled. By performing Puja of this Ekadashi, a person receives heaven after death. The fruits obtained by tough meditations, can be received just by bowing down to Lord Vishnu, the one who sleeps on Sheshnag (cosmic serpent) in the sea, on the day of Ekadashi. And, the person don’t need to face the griefs and problems of YamLok (hell).
About the benefits of Papankush Ekadashi, it is said that, the fruits of thousand Ashvamedha Yagya and 100 Surya Yagya is not equal to, even the 16th portion of this Ekadashi. Therefore, no fast is equivalent to this Vrat of Ekadashi. By observing this fast, a person gets healthy body and beautiful life partner.
Moreover, the person who performs Jagran in the night of this Ekadasi, receives heaven. This fast sends, 10 ancestors each, from side of mother and father to Vishnu Lok (heaven). People who donate cow, gold, land, cereals, water and clothes etc., on this Ekadashi, they never have to see the Yamraj. Also, people who get pond, garden, Dhramshala etc. constructed, gains virtues, on this day. Person doing religious works, attain all happiness of life.
Papankush Fast Method
It is believed, the glory of Papankush Ekadashi Vrat is unmatchable. Lord Vishnu is worshipped with incense sticks, lamps, coconut and flowers.
The rules of Ekadashi Vrat are followed from Dashmi (a day before Ekadashi). On Dashmi, seven cereals should not be eaten that is wheat, Urad, Moong, gram, barley, rice and Masoor. These 7 cereals are worshipped on Ekadashi. Person observing the fast should not speak any lie or harm anyone on Dashmi. Try speaking less on Dashmi and Ekadashi. As, there are chances of less sins to occur. Food eaten in the night of Dashmi should not contain salt and Tamsic items. And after the night meal, nothing should be eaten. Brahmacharya should be followed.
On the day of Ekadashi, person observing fast should wake up early in the morning and complete his routine work. After this, the resolution of fast is taken. Then, an urn is placed on which idol of Lord Vishnu is placed. Person observing this fast should read the Vishnu Sahasranamam, at night. This Vrat is concluded on Dvadashi (a day after Ekadashi), by giving donations to Brahmans.
Papankush Fast Story
A very cruel hunter used to live on Vindhya mountains. He had spend his whole life in doing wrong activities. At the end of his life, Yamraj ordered to bring the hunter in his court. Scared by death, he went to the Ashram of Angira Rishi. And started pleading to save him from going to hell.
Angira Rishi said him to worship Lord Vishnu on the Ekadashi of Shukla Paksha, Ashvin Masa. By observing fast and performing Puja, on this Ekadashi, he became free from all his sins.
पापाकुंशा एकादशी व्रत फल | Papakunsha Ekadashi Vrat Result
इस एकादशी के दिन मनोवांछित फल कि प्राप्ति के लिये श्री विष्णु भगवान कि पूजा की जाती है. इस एकादशी के पूजने से व्यक्ति को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है. जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल प्राप्त करते है. वही फल एक एकादशी के दिन क्षीर -सागर में शेषनाग पर शयन करने वाले श्री विष्णु को नमस्कार कर देने से ही मिल जाते है. और मनुष्य को यमलोक के दु:ख नहीं भोगने पडते है.
पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में कहा गया है, कि हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के फल,इस एकादशी के फल के सोलहवें, हिस्से के बराबर भी नहीं होता है. अर्थात इस एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं है. इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को स्वस्थ शरीर और सुन्दर जीवन साथी की प्राप्ति होती है.
इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है, उन्हें, बिना किसी रोक के स्वर्ग मिलता है. यह एकाद्शी उपवासक के मातृपक्ष के दस और पितृपक्ष के दस पितरों को विष्णु लोक लेकर जाती है. इस एकादशी के दिन भूमि, गौ, अन्न, जल, वस्त्र और छत्र आदि का दान करता है, उन्हें यमराज के दर्शन नहीं मिलते है. इसके अलावा जो व्यक्ति तालाब, बगीचा, धर्मशाला, प्याऊ, अन्न क्षेत्र आदि बनवाते है, उन्हें पुन्य फलों की प्राप्ति होती है. धर्म करने वाले को सभी सुख मिलते है.
पापाकुंशा एकादशी व्रत विधि | Method of Padmanabha Ekadashi Fast (Vidhi)
पापाकुंशा एकाद्शी व्रत के विषय में यह कहा जाता है, कि इस व्रत की महिमा अपरम्पार है. इस एकादशी व्रत में श्री विष्णु जी का पूजन करने के लिए वह धूप, दीप, नारियल और पुष्प का प्रयोग किया जाता है.
दशमी तिथि एक के दिन से ही व्रत के सभी नियमों का पालन करना चाहिए. दशमी तिथि के दिन सात धान्य अर्थात गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए. क्योकि इन सातों धान्यों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है. दशमी तिथि के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए. और किसी का अहित नहीं करना चाहिए. जहां तक हो सके दशमी तिथि और एकादशी तिथि दोनों ही दिनों में कम से कम बोलना शुभ रहता है. इससे पाप कम होने की संभावना रहती है. एकाद्शी तिथि की प्रथम रात्रि में भोजन में नमक और तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए. और पूर्ण ब्रह्राचार्य का पालन करना चाहिए. दशमी तिथि की रात्रि में एक बार भोजन करने के बाद, कुछ नहीं खाना चाहिए.
और एकादशी तिथि के दिन सुबह उठकर स्नान आदि कार्य करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. संकल्प लेने के बाद घट स्थापना की जाती है. और उसके ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है. इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को रात्रि में विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए. इस व्रत का समापन एकादशी तिथि में नहीं होता है. बल्कि द्वादशी तिथि की प्रात: में ब्राह्माणों को अन्न का दान और दक्षिणा देने के बाद ही यह व्रत समाप्त होता है.
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा | Pasankusha Ekadashi Fast Story in Hindi
(Vrat Katha)
विन्ध्यपर्वत पर महा क्रुर और अत्यधिक क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था. उसने बुरे कार्य करने में सारा जीवन बीता दिया. जीवन के अंतिम भाग आने पर यमराज ने उसे अपने दरबार में लाने की आज्ञा दी. दूतोण ने यह बात उसे समय से पूर्व ही बता दी. मृ्त्युभय से डरकर वह अंगिरा ऋषि के आश्रम में गया. और यमलोक में जाना न पडे इसकी विनती करने लगा.
अंगिरा ऋषि ने उसे आश्चिन मास कि शुक्ल पक्ष कि एकादशी के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने की सलाह दी़. इस एकादशी का पूजन और व्रत करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को गया.