वामन जयंती को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष द्वादशी पर मनाया जाता है। इस उत्सव को वामन द्वादशी भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वामन भगवान विष्णु के पांचवें स्वरूप हैं और उनकी उत्पत्ति वामन द्वादशी के दिन श्रवण नक्षत्र में हुई थी। इस दिन श्रद्धालु उचित अनुष्ठान के साथ प्रातः काल में भगवान् विष्णु की पूजा करते हैं। इस दिन अन्न, चावल, दही आदि का दान करना शुभ माना जाता है। त्यौहार के दिन शाम के समय, भक्तों को अपने परिवार के सदस्यों के साथ वामन कथा का पाठ करना चाहिए और सभी को प्रसाद बांटना चाहिए। श्रद्धालुओं को व्रत रखना चाहिए और भगवान वामन को प्रसन्न करने और सभी कामनाओं की पूर्ति हेतु उचित अनुष्ठानों सहित पूजा करनी चाहिए।
वामन जयंती का महत्व
जैसा कि हिंदू पवित्र ग्रंथों से संकेत मिलता है, वामन जयंती की महत्ता का पता इस बात से चलता है कि यह श्रवण नक्षत्र पर आधारित है। भक्तो को भगवान वामन की प्रतिमा निर्मित करनी चाहिए और उन्हें उचित रीति-रिवाजों से पूजा जाना चाहिए। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ उनकी पूजा करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वामन जयंती के पीछे की कहानी
हिंदू पौराणिक कथाओं और पवित्र लेखन के अनुसार यह बात कही गयी है कि, जो 100 यज्ञों को संपन्न करेगा, वह पृथ्वी के साथ-साथ स्वर्ग पर शासन स्थापित करने की शक्ति और क्षमता प्राप्त करेगा। राजा महाबली, भगवान विष्णु के परम भक्त थे, लेकिन फिर भी उन्हें देवताओं के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जाता था। उन्होंने 100 वां यज्ञ करना आरंभ किया। भगवान इंद्र ने देवो की रक्षा के लिए भगवान् विष्णु से संपर्क साधा क्योंकि उन्हें भय था कि राजा महाबली अंतिम शासक बन सकते हैं। उन्होंने भगवान विष्णु से यज्ञ को रोकने और संपूर्ण ब्रह्मांड का शासक न बनने पाए इसके लिए भगवान् विष्णु से अनुरोध किया।
भगवान इंद्र और कई अन्य देवताओं की प्रार्थना के पश्चात, भगवान विष्णु वामन के रूप में प्रकट हुए, एक बौने ब्राह्मण के द्वारा उनके 5 वें अवतार में पृथ्वी पर अवतरित हुए। राजा ने ब्राह्मण का अभिवादन किया और उनसे कहा कि वह जो चाहेंगे, उन्हें वह अनुदान अवश्य दिया जाएगा। भिक्षा के रूप में, भगवान वामन ने अपने पैरों से नापी हुई भूमि के 3 टुकड़े मांगे। यह सुनकर राजा महाबली पहले तो हंसे फिर बौने ब्राह्मण को इतना स्थान देने के लिए तैयार हो गए। इसके पश्चात, वामन आकार में बड़ा हो गया और विशाल रूप धारण कर लिया। पहले पैर के रखने के साथ, उन्होंने पूरी पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे पैर के साथ, उन्होंने सभी स्वर्गीय स्थानों पर ढंक लिया। भगवान वामन द्वारा तीसरा पैर रखने के लिए कोई जगह नहीं बची थी। यह जानकर कि बौना ब्राह्मण भगवान विष्णु के अलावा कोई नहीं है, राजा महाबली ने अपना सिर आगे किया ताकि भगवान वामन अपना तीसरा कदम रख सकें। तथा राजा यज्ञ पूरा नहीं कर पाए और पाताल लोक में समाहित हो गए।
व्रत और पूजा विधि
व्रत के दिन संकल्प लेना बहुत जरूरी है। स्नान करने के पश्चात, भगवान का स्मरण करें।
भगवान वामन का जन्म दोपहर अर्थात अभिजीत मुहूर्त में हुआ था, इसलिए इस समय उनकी पूजा करना अत्यंत शुभ होता है।
भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करें और दक्षिणावर्ती शंख में गाय के दूध से अभिषेक करें, क्योंकि ऐसा करने से आपके सभी कष्ट दूर होते है।
इसके बाद एक बर्तन में चावल, दही और चीनी रखें और उसे भगवान को चढांए और बाद में ब्राह्मण को दान कर दें।
संध्या काल में भी भगवान् वामन की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए, भगवान की कथा सुनने या पढ़ने के पश्चात फिर से स्नान करें।
पूजा और उपवास तभी सफल माना जायगा जब इस दिन गरीबों को भोजन खिलाया जाता है। यदि आप भोजन नहीं खिला सकते तो फल का दान करें।
Vamana Jayanti is celebrated on Shukla Paksha Dwadashi of Bhadrapada month. This festival is also called Vamana Dwadashi.
According to mythological beliefs, Vamana is the fifth form of Lord Vishnu and originated in Shravan Nakshatra on the day of Vamana Dwadashi. On this day, devotees worship Lord Vishnu in the morning with proper rituals. Donating food, rice, yogurt etc. on this day is considered auspicious. At dusk on the day of the festival, devotees should recite the Vamana Katha along with their family members and distribute prasadam to all. Devotees should observe fast and worship Lord Vamana with proper rituals to please and fulfill all wishes.
Importance of Vamana Jayanti
As indicated by Hindu sacred texts, the significance of Vamana Jayanti shows that it is based on Shravan Nakshatra. Devotees should build a statue of Lord Vamana and worship them with proper rituals. A person who worships them with full devotion gets freedom from all sufferings and attains salvation.
Story behind Vamana Jayanti
According to Hindu mythology and sacred writings, it is said that he who performs 100 yajnas will gain the power and ability to rule the earth as well as heaven. King Mahabali was an ardent devotee of Lord Vishnu, but still considered a great threat to the gods. He started performing the 100th Yajna. Lord Indra approached Lord Vishnu to protect the gods, because he feared that King Mahabali might become the last ruler. He requested Lord Vishnu to stop the yajna and not to become the ruler of the entire universe.
After praying to Lord Indra and many other gods, Lord Vishnu appeared as Vamana, a dwarf Brahmin incarnated on earth in his 5th incarnation. The king greeted the Brahmin and told him that whatever he would like, he would be given that grant. As a beggar, Lord Vamana asked for 3 pieces of land measured from his feet. Hearing this, King Mahabali first laughed and then agreed to give so much space to the dwarf Brahmin. Subsequently, Vamana grew in size and took a huge form. With the first foot placed, he measured the whole earth, with the second foot, he covered all the heavenly places. There was no room left for placing the third leg by Lord Vamana. Knowing that the dwarf Brahmin is none other than Lord Vishnu, King Mahabali pushes his head forward so that Lord Vamana can take his third step. And the king was not able to complete the yajna and was absorbed in the Hades.
Fasting and Worship Method
It is very important to take a resolution on the day of fasting. After taking bath, remember God.
Lord Vamana was born in the afternoon i.e. Abhijeet Muhurta, so worshiping him at this time is extremely auspicious.
Worship the Vamana form of Lord Vishnu and anoint it with cow's milk in a southeastward conch, because by doing this all your troubles are removed.
After this, place rice, curd and sugar in a vessel and offer it to God and later donate it to a Brahmin.
Lord Vamana should be worshiped even in the evening. For this, after listening or reading the story of God, take a bath again.
Worship and fasting will be considered successful only when food is fed to the poor on this day. If you cannot feed, then donate fruit.