हिंदू कैलेंडर के अनुसार, योगिनी एकादशी कृष्ण पक्ष में आषाढ़ की समयावधि में पड़ती है, जो कि चंद्रमा का चरण है। जैसा कि अंग्रेजी कैलेंडर द्वारा इंगित किया गया है, यह पर्व जून या जुलाई के महीने में आता है। यह व्रत किसी भी युवा या बूढ़े व्यक्ति द्वारा रखा जा सकता है जो किसी भी प्रकार की बीमारी या स्वास्थ्य समस्याओं से सुरक्षा चाहता हो। यह पर्व मुख्य रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो कुष्ठ रोग सहित किसी भी त्वचा की समस्या से पीड़ित हैं। अन्य एकादशी व्रत की तरह, यह व्रत भी बहुत मंगलकारी है और पिछले सभी पापों और बुरे कर्मों से मुक्ति देता है व् अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने में सहायक है।
योगिनी एकादशी का महत्व
योगिनी एकादशी अन्य एकादशी व्रत की तरह भारत सहित दुनिया भर में हर जगह के करोडो हिंदुओं द्वारा मनाई जाती है। पद्म पुराण में यह उल्लेख किया गया है कि जो कोई भी योगिनी एकादशी के रीति-रिवाजों का पालन करता है, वह शीघ्र ही संपन्नता प्राप्त कर सकता है, स्वास्थ्य को पा सकता है, और इसके परिणामस्वरूप एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकता है।
यह व्रत प्रत्येक वर्ष एक बार आता है और इसका प्रभाव करीब 80,000 ब्राह्मणों की सेवा और भोजन कराने जैसा है।
यदि उपवास और पूजा के विधि विधानों का का कुशलता से पालन किया जाए तो योगिनी एकादशी का व्यक्ति के जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अन्य एकादशी की तरह यह व्रत भी सूर्योदय से आरंभ होता है और अगले दिन सूर्योदय तक जारी रहता है। व्रत का अनुकरण करने वाले व्यक्ति को गेहूं, जौ या चावल जैसे अनाज या भोज्य पदार्थो का उपभोग नहीं करना चाहिए।
योगिनी एकादशी की कथा
पौराणिक लोककथाओं में एक कहानी का जिक्र किया गया है जिसमे की एक माली, और उसकी सुंदर पत्नी, स्वरूपवती का वृतांत दिया गया हैं।
माली ने कुवेरा जो की अलकापुरी का राजा था उसके अधीन काम किया, जो भगवान शिव का परम भक्त था। माली हर दिन मानसरोवर झील से फूल एकत्रित करता और उन्हें शिव पूजन के लिए राजा को दे देता। माली अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। इसलिए, एक दिन, वह अपने कर्तव्यों की अनदेखी कर पत्नी के पास वापस आ गया। वह राजा को फूल देना भूल गया था। राजा को जब आभास हुआ कि माली फूल एकत्रित करने के अपने कर्तव्य को निभाने के बजाय अपनी पत्नी के साथ समय व्यतीत कर रहा था तब राजा ने माली को दरबार में बुलाया। उसने क्षमा याचना की लेकिन राजा ने उसे कठोर श्राप दिया, जिससे माली कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया और उसे अपनी पत्नी से अलग होना पड़ा। महल से माली को निष्काषित कर दिया गया, और वह सफेद कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। वह कई वर्षों तक वनों में भटकता रहा। एक दिन वह ऋषि मार्कंडेय के आश्रम में आया। उसने अपना हाल ऋषि को बताया। ऋषि ने उन्हें योगिनी एकादशी का पालन कर खतरनाक संक्रमण से मुक्ति पाने का उपाय बताया। माली ने ऋषि के कथन अनुसार श्रद्धापूर्वक व्रत का पालन किया और परिणामस्वरूप अपने सामान्य स्वरूप में पुनः लौट आया। इसके उपरांत वह अपनी पत्नी के साथ फिर से जुड़ने और अपने जीवन के बाकी लम्हो को खुशी से जीने में सक्षम हो पाया।
योगिनी एकादशी के दौरान अनुष्ठान
योगिनी एकादशी के अवसर पर भक्तों या दर्शनार्थियों को समारोह की शुरुआत करने से पूर्व जल्दी उठना चाहिए और सर्वप्रथम स्नान करना चाहिए।
सभी अनुष्ठानों को करते समय दृढ़ समर्पण और निष्ठा का होना जरुरी है।
भक्तों को योगिनी एकादशी व्रत का विधिपूर्वक पालन करना चाहिए।
श्रद्धालु को देवता की पूजा नित्य समय पर करनी चाहिए और देवता को अगरबत्ती, फूल और तुलसी के पत्ते अर्पित करने चाहिए।
देवता की आरती की जानी चाहिए और फिर पवित्र भोजन (प्रसाद) सभी को वितरित करना चाहिए।
भक्तों को देवता के दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए योगिनी एकादशी के पर्व पर भगवान विष्णु के मंदिर जाना चाहिए।
योगिनी एकादशी व्रत की सभी रस्में दशमी (दसवें दिन) की पूर्व संध्या पर शुरू होती हैं। इस विशेष दिन पर, पर्यवेक्षकों को एक एकल सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए और वह भी सूर्यास्त की अवधि से पूर्व होना चाहिए।
व्रत उस समय तक जारी रहता है जब एकादशी तिथि समाप्त होती है।
भक्तो को इस दिन जागरण करना चाहिए। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अपना पूरा समय मंत्रों को पढ़ने में लगाना चाहिए।
इस दिन 'विष्णु सहस्रनाम' का पाठ करना अत्यधिक शुभ होता है।
इस शुभ अवसर पर, भक्त भगवान विष्णु की अपार भक्ति में संलग्न रहते हैं।
योगिनी एकादशी की पूर्व संध्या पर दान करना अत्यधिक फलदायक माना जाता है। भक्तो को इस दिन ब्राह्मणों को भोजन, कपड़े और पैसे दान देने चाहिए।
According to the Hindu calendar, Yogini Ekadashi falls in the Krishna Paksha period of Ashada, which is the phase of the moon. The festival falls in the month of June or July, as indicated by the English calendar. This fast can be observed by any young or old person who wants protection from any kind of disease or health problems. This festival is mainly important for those who are suffering from any skin problem including leprosy. Like other Ekadashi fasts, this fast is also very auspicious and gives freedom from all past sins and bad deeds and helps in providing good health.
Importance of Yogini Ekadashi
Yogini Ekadashi, like other Ekadashi fasts, is celebrated by lots of Hindus everywhere, including India. It is mentioned in the Padma Purana that anyone who follows the customs of Yogini Ekadashi can soon attain prosperity, attain health, and consequently lead a happy life.
This fast comes once every year and its effect is like serving and feeding about 80,000 Brahmins.
If the laws of fasting and worship are followed efficiently, then Yogini Ekadashi has a very positive effect on a person's life. Like other Ekadashi, this fast also starts at sunrise and continues till sunrise the next day. A person following the fast should not consume grains or food items like wheat, barley or rice.
Story of Yogini Ekadashi
Mythological folklore recounts a story in which an account of a gardener, and his beautiful wife, Swaroopvati, is given.
Mali worked under Kuvera who was the king of Alkapuri, who was an ardent devotee of Lord Shiva. The gardener collects flowers from the Mansarovar lake every day and gives them to the king for worshiping Shiva. Mali loved his wife very much. Therefore, one day, he ignores his duties and returns to the wife. He forgot to give flowers to the king. When the king realized that the gardener was spending time with his wife instead of performing his duty of collecting flowers, the king invited the gardener to the court. He apologizes but the king curses him harshly, causing the gardener to suffer from leprosy and has to separate from his wife. The gardener was expelled from the palace, and he suffered from white leprosy. He wandered in the forests for many years. One day he came to the sage Markandeya's ashram. He told his sage. The sage told them to follow Yogini Ekadashi and get rid of dangerous infections. The gardener followed the fast according to the sage's statement and returned to his normal form as a result. After this he was able to reconnect with his wife and live happily for the rest of his life.
Rituals During Yogini Ekadashi
On the occasion of Yogini Ekadashi, devotees or devotees should get up early and take a bath first before beginning the ceremony.
It is important to have strong dedication and loyalty while performing all the rituals.
Devotees should follow the Yogini Ekadashi fast methodically.
The devotee should worship the deity on a regular basis and offer incense sticks, flowers and basil leaves to the deity.
Aarti of the deity should be performed and then the holy food (Prasad) should be distributed to all.
Devotees should visit the temple of Lord Vishnu on the festival of Yogini Ekadashi to receive the divine blessings of the deity.
All rituals of Yogini Ekadashi fast begin on the eve of Dashami (tenth day). On this particular day, observers should consume a single satvik food and that too before sunset period.
The fast continues till the time when Ekadashi date ends.
Devotees should wake up on this day. To please Lord Vishnu, he should spend all his time reciting mantras.
Reciting 'Vishnu Sahasranama' on this day is highly auspicious.
On this auspicious occasion, devotees engage in immense devotion to Lord Vishnu.
Donating on the eve of Yogini Ekadashi is considered highly fruitful. Devotees should donate food, clothes and money to Brahmins on this day.