Dhanteras(धनतेरस) falls on the auspicious thirteenth lunar day of Krishna paksha (dark fortnight) in the Hindu calendar month of Kartik (October/November). Its a tradition to light 13 lamps on southern direction of the home.
According to a popular legend, when the Gods and demons churned the ocean for Amrita or nectar, Goddess of Wealth and Prosperity Devi Lakshhami and Dhanvantari (the physician of the Gods and an incarnation of Vishnu) emerged carrying a jar of the elixir on the day of Dhanteras. as a saying any artle purchased on this day will grows in its value in 13 times, thats why many people buy utensils or gold or silver, or other thing on this day.
on this day if silver purchased, it soothes our mind, because it is a symbol of satisfaction, and as said satiafaction is the greatest wealth of menkind, without satisfaction a person will never be happy.
lord dhanvantari, the God of Good Health and long life praise humankind with his grace, and shower his blessing on all his devotees.
there is custom on this day to light lamp on the main door of the house. An interesting story about Dhanteras Festival says that, once, a king named Hem kumar got a son on god grace.
An interesting story about Dhanteras Festival says that, once, the sixteen year old son of King Hima was doomed to die of a snake-bite on the fourth day of his marriage as per his horoscope. So, on the fourth day of his marriage, his young wife did not allow him to sleep. She laid out gold ornaments and lots of silver coins in a big heap at the entrance of her husband's boudoir and lighted innumerable lamps all over the place. And she went on telling stories and singing songs. When Yama, the god of Death arrived there in the guise of a Serpent his eyes got blinded by the dazzle of those brilliant lights and he could not enter the Prince's chamber. So he climbed on top of the heap of ornaments and coins and sat there the whole night listening to the melodious songs. In the morning he quietly went away. Thus the young wife saved her husband from the clutches of death. Since then this day of Dhanteras came to be known as the day of "Yamadeepdaan" and lamps are kept burning throughout the night in reverential adoration to Yama (Yamaraj), the god of Death.
on this day people kept fast and worship lord Dahnvantari for good Health and long Life.
धन तेरस
दीपावली से दो दिन पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी को धन तेरस का पर्व मनाया जाता है इस दिन घर की दक्षिण दिशा में तेरह दीपक जलाने की प्रथा है.
जिस प्रकार समुद्र मंथन के समय दीपावली के दिन महालक्ष्मी जी प्रकट हुई थी उसी प्रकार दीपावली से दो दिन पहले त्रियोदशी के दिन समुद्र से वैद्य धन्वन्तरि जी अमृत भरा कलश अपने हाथो में लेकर प्रकट हुए। इसी कारण इस दिन बर्तन खरीदने की प्रथा है।
मान्यता के अनुसार इस दिन ख़रीदा हुई कोई भी वस्तु उसके मूल्य की १३ गुणा हो जाती है।
इस दिन सोना व चांदी खरीदने की प्रथा है। लोग अपने सामर्थ के अनुसार सोना व चांदी खरीदते है। यदि संभव न हो तो केवल बर्तन ही खरीद सकते है।
इस दिन चांदी खरीदने से मन को शीतलता प्राप्त होती है। तथा मन में संतोष रुपी धन का वास होता है। पुरानो में संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। संतोषी व्यक्ति को किसी अन्य वस्तु की अभिलाषा नही होती। संतोषी व्यक्ति सबसे अधिक धनवान तथा सुखी होता है। तथा असंतोषी व्यक्ति सर्वथा दरिद्र। ऐसा व्यक्ति खाली कुए के सामान होता है जो कभी भी पूर्ण नही हो सकता।
भगवन धन्वन्तरि अच्छे स्वस्थ्य के देवता है। वे हमें अच्छा स्वस्थ प्रदान करते है। अच्छा स्वस्थ्य सबसे बड़ा धन है। केवल अच्छे स्वस्थ्य तथा दीर्घायु के साथ ही हम सुखद जीवन का आनंद ले सकते है।
धन तेरस के दिन शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाने की प्रथा है। इसके पीछे एक लोक कथा है।
इस लोक कथा के अनुसार किसी समय हेम कुमार नामक राजा को देव कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। कोतुहलवश राजा ने राज ऋषि से बालक का भविष्य जानना चाहा। ऋषि ने भविष्य वाणी की कि यह बालक अपने विवाह के चौथे दिन मृत्यु को प्राप्त होगा।
यह भविष्य वाणी सुन कर राजा अत्यंत दुखी हुआ और उसने भयभीत होकर बालक को सुदूर ऐसे स्थान पर ब्रह्मचर्य साधना के लिए भेज दिया जहा पर किसी स्त्री की परछाई भी उस बालक पर न पड़े। परन्तु होनी का लिखा कोई नहीं टाल सकता। एक दिन संयोगवश एक सुन्दर राजकुमारी वहां से गुजरी। तथा दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो गए। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के चौथे दिन विधि का विधान पूर्ण हुआ जब यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुचे। उस समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का प्रलाप सुन कर यमदूत का ह्रदय भी द्रवित हो उठा।
उसने यमराज से प्रार्थना की कि इस अकाल मृत्यु को कोई निदान बताये। तब यमराज ने कहा की कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के त्रियोदशी के दिन जो भी मेरी पूजा करके अपने घर की दक्षिण दिशा में तेरह दीपक जल कर मुझे अर्पण करेगा। वह तथा उसका परिवार अकाल मृत्यु के भय से सर्वथा मुक्त हो जायेगा।
इसी कारण इस दिन यम देवता के नाम का व्रत भी रखा जाता है।
इस दिन दीप जलाकर भगवान् धन्वन्तरि की पूजा की जाती है भगवान् धन्वन्तरि दीर्घायु तथा उत्तम स्वस्थ्य धन को प्रदान करने वाले है।