The story behind Shravan Month, says that the churning of oceans or Samudra Manthan took place in this month.
During the churning, Halahal (poison) came out, which was consumed by Lord Shiva and stored it in his throat. His throat turned blue due to the impact of the poison, hence the name Neelkantha (meaning blue throat) is attributed to Shiva. To reduce the impact of the deadly poison, Lord Shiva wore the crescent moon on his head. Also, Gods and people started offering the water of Holy Ganges to Shiva to lessen the effect of poison.
The month of Shravan, popularly known as Sharvan, is the fifth month of the Hindu calender. Shravan is considered the holiest month of the year. Each Monday of this month, known as Shravan Somvar, is a special day in Shiva temples where the dharanatra hangs over the linga or the idol to bathe it with holy water, day and night. Devotees pile the linga high with Bel leaves and flowers and fast till sunset.
It is considered highly auspicious to wear a rudraksha in Shravan month. As, Mondays or Somvars of Shravan month are specially observed with austerity. All Mondays are devoted to the worship of Shiva as this day is sacred to Lord Shiva. No other Mondays of other months are so greatly honored.
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श्रावण मास के पीछे की कहानी कहती है कि इस महीने में समुद्र या समुंद्र मंथन हुआ था। इस समुंद्र मंथन के दौरान, हलाहल (जहर) निकला, जिसे भगवान शिव ने पी लिया मगर उसे अपने कंठ(गले) में ही रोक लिया। भयंकर विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उनका एक नाम नीलकंठ (नीले कंठ वाला) भी है।
प्राणो के लिए घातक उस जहर के प्रभाव को कम करने के लिए, भगवान शिव ने अपने सिर पर चंद्रमा को धारण कर रखा है। विष अग्नि और गर्मी का प्रतीक माना जाता है जबकि चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक माना जाता है। हलाहल विष के प्रभाव को कम करने के लिए साथ ही, देवताओं और लोगों ने पवित्र शीतल गंगा का जल भगवान शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया।
श्रावण का महीना, जिसे सावन के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू विक्रमी सम्वत पंचांग का पाँचवां महीना भी है। श्रावण वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है, जो कि भगवान शिव को समर्पित भी है। इस महीने के प्रत्येक सोमवार को, श्रावण सोमवर के रूप में जाना जाता है, शिव मंदिरों में इस दिन एक विशेष माहौल होता है। शिव भक्तों में भी एक अलग ही उत्साह और उमंग इस दिन देखने को मिलता है, जहां दिन रात पवित्र जल के साथ धरना शिवलिंग के ऊपर लटकती रहती है जिससे बूँद बूँद करके जल शिवलिंग पर गिरते रहता है।
भगवान शिव के भोले भक्त सावन में बेल के पत्तों और फूलों के साथ गंगाजल शिवलिंग पर अर्पित करते हैं और सोमवार के दिन सूर्यास्त तक उपवास करते हैं। श्रावण मास में रुद्राक्ष पहनना अत्यंत शुभ माना जाता है। श्रावण मास के सोमवार या सामान्य सोमवार विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित होते जिसदिन श्रद्धालु शिव भक्त भक्ति भाव से भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं। हालांकि श्रावण मास के सोमवारों को बाकी महीनों के अन्य सोमवारों की अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता है।