अश्विन (सितंबर-अक्टूबर) के समय को पितृ पक्ष या महालया पक्ष के रूप में जाना जाता है। यह हमारे पूर्वजों के लिए उनकी आत्मा को शान्ति व् उन्हें मोक्ष दिलाने हेतु श्राद्ध करने का अवसर है। हिन्दू धर्म में माता-पिता को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उनकी इच्छा के लिए, उनके सभी कार्यों के लिए उनका शुक्रिया अदा करें, देह, हृदय, आत्मा और धन के साथ उनकी ज़रूरत के समय में उनकी सेवा करना मानव समाज की प्रतिभा को बढ़ाता है। पूर्वजों की याद में उनके कल्याण हेतु किया गया कार्य जिसे पिंड दान या तर्पण कहा जाता है।
पितृ पक्ष का महत्व
पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि देवपूजा से पहले, लोगो को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। पितर प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में रहते हुए, घर के बुजुर्गों का सम्मान किया जाता है और मृत्यु के बाद श्राद्ध कर्म किया जाता है। यह मान्यता है कि अगर पूर्वजों की विधि के अनुसार कर्मकांड नहीं किया जाता है, तो उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं होता है और उनकी आत्मा यहाँ वहां भटकती रहती है। पितृ पक्ष को मनाने का एक ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिष में पितृ दोष को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जब व्यक्ति सफलता के समीप पहुंच जाता है, तब भी जब वह सफलता से वंचित होता है, प्रसव में समस्याएं, धन की हानि, आदि समस्याएँ हो तो ज्योतिषाचार्य पितृदोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावनाएं बताते हैं। इसीलिए पितृदोष से मुक्ति के लिए पितरों की शांति आवश्यक मानी गयी है।
पितृ पक्ष की कहानी
पौराणिक लोककथाओं के अनुसार, जोगा और भोगा नाम के दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगा अमीर था और भोगा गरीब गरीब था। दोनों भाइयों के बीच बहुत प्रेम था लेकिन जोगा की पत्नी को पैसे पर बहुत गर्व था। वही दूसरी तरफ, भोगा की पत्नी बहुत ही साधारण और सौम्य थी। जब पिता का देहांत हो गया, तो जोगा की पत्नी ने जोगा से पितरों का श्राद्ध करने को कहा, तब जोगा ने उसकी बात समझने की बजाय उससे बचना शुरू कर दिया। पत्नी को लगा कि अगर श्राद्ध नहीं किया गया तो लोग बातें बनाएंगे और इससे उनकी बदनामी होगी। उसने सोचा कि यह उपयुक्त अवसर है अपने नाना को दावत पर बुलाने का और लोगों को अपना वर्चस्व दिखाने का। तब उन्होंने जोगा से कहा, 'आप शायद मेरी परेशानी के कारण ऐसा कह रहे हैं। मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी। मैं भोगा की पत्नी से बात करती हूँ और साथ मिलकर सब सम्हाल लेंगे। इसके बाद उन्होंने जोगा को अपने मायके में निमंत्रण देने के लिए भेजा।
अगले दिन भोगा की पत्नी ने जोगा के घर जाकर सारा काम किया। रसोई में खाना बनाया और कई व्यंजन भी बनाए। काम खत्म करने के बाद वह अपने घर आ गई। उसे भी पितरों का तर्पण करना था। पितृ दोपहर में जमीन पर उतरे। पहले वह जोगा के घर गए। वहां उसने देखा कि जोगा के ससुराल वाले खाना खाने में व्यस्त हैं। फिर वह बहुत दुखी होकर वह भोगा के घर गए। भोगा के परिवार ने अगियारी निकाली जोकि उनके पितरो के नाम पर थी। पिता उसकी राख को चाट गए और भूखे नदी के किनारे चले गए। कुछ समय बाद सभी पूर्वज इकट्ठे हुए और अपने-अपने स्थानों पर श्राद्ध लेने लगे। सबने जोगा-भोगा के पिता का किस्सा सुना। तब वे सोचने लगे कि अगर भोगा और उसकी पत्नी सम्रद्ध होते तो उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ता। भोगा के घर पर 2 जून को रोटी नहीं थी। यह सब सोचकर पितरो ने उन पर दया की। अचानक वे नाचने लगे और कहने लगे - 'भोगी का घर अमीर होना चाहिए, भोगी का घर अमीर होना चाहिए।'
शाम हो गई थी। भोगा के बच्चों को भी खाने को कुछ नहीं मिला। बच्चों ने मां को बताया कि वह भूखे है। माँ ने बच्चों से बचने के लिए कहा, 'जाओ! आंगन में, कोने पर बर्तन होंगे। इसे खोलो और जो कुछ भी मिले उसे खा लो। जब बच्चे वहां जाते हैं, तो वे देखते हैं कि बर्तन पैसे, जेवरातों और व्यंजनों से भरा पड़ा है। वह अपनी मां के पास गया और पूरी बात बताई। आंगन में आने पर, जब भोगा की पत्नी ने यह सब देखा, तो वह हैरान रह गई। इस तरह, भोगा अमीर हो गया, लेकिन वह घमंड नहीं करता था। अगले साल फिर से पितृ पक्ष श्राद्ध का अवसर आया। श्राद्ध के दिन, भोगा की पत्नी ने छप्पन भोग तैयार किया। ब्राह्मणों को बुलाया, श्राद्ध किया, भोजन परोसा और दान-दक्षिणा दी। यह सब देखकर पितृ बहुत प्रसन्न और संतुष्ट हुए।
पितृ पक्ष के दौरान अनुष्ठान:
श्राद्ध या तर्पण का अनुष्ठान एक पुरुष सदस्य द्वारा किया जाता है, जो आमतौर पर परिवार में सबसे बड़ा बेटा होता है। जिस दिन पितृ पक्ष को करने वाले स्नान करते हैं उस दिन कुश घास से बनी धोती और अंगूठी पहनते हैं। हिंदू ग्रंथो के मुताबिक़, कुश घास करुणा का प्रतीक है और इसका इस्तेमाल पूर्वजों का आह्वान करने के लिए किया जाता है।
पिंड दान में जौ के आटे से बने तिल, चावल और गोले चढ़ाने की परंपरा इसके बाद मनाई जाती है। पितृ पक्ष के अनुष्ठान एक जानकार पुजारी के मार्गदर्शन में किए जाते हैं। इसके बाद, भगवान विष्णु का आशीर्वाद हेतु एक अन्य पवित्र घास का प्रयोग करके आह्वान किया जाता है, जिसे 'दूर्वा घास' के नाम से जाना जाता है। घास का यह रूप अपने अबाधित विकास के लिए जाना जाता है और इसलिए यह माना जाता है कि दरभा घास का उपयोग एक व्यक्ति के जीवन में बाधाओं को समाप्त कर देता है।
पितृ पक्ष के दिन भोजन पूर्वजों को अर्पित करने के लिए तैयार किया जाता है। कौवे को इस भोजन का एक हिस्सा देने की परंपरा है, क्योंकि कौवे को भगवान यम का दूत माना जाता है। यदि कौआ भोजन ग्रहण करता है, तो यह एक शुभ संकेत माना जाता है। इसके बाद, एक ब्राह्मण पुजारी को खाना खाने के लिए आमंत्रित किया जाता है और समारोह करने के लिए दक्षिणा दी जाती है। इन सभी रीति रिवाजो को पूरा करने के बाद परिवार के सदस्य एक साथ बैठते हैं और अपना भोजन ग्रहण करते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण’ जैसे पवित्र हिंदू लेखों को पढ़ना, और गंगा अवतराम और नचिकेता की विभिन्न कहानियों को सुनना बहुत अच्छा माना जाता है |
The time of Ashwin (September-October) is known as Pitru Paksha or Mahalaya Paksha. This is an opportunity for our ancestors to do peace to their souls and perform shraadh to liberate them. In Hinduism, parents are given the highest position. Thanking him for all his work, for his will, serving him with body, heart, soul and money in his time of need enhances the talent of human society. In the memory of ancestors, the work done for their welfare is called Pind Daan or Tarpan.
Importance of Pitru Paksha
Mythological texts state that before Devpuja, people should worship their ancestors. Gods are also pleased when ancestors are pleased. This is the reason why living in Indian culture, elders of the house are respected and shraddha karma is performed after death. It is believed that if rituals are not performed according to the method of the ancestors, they do not attain salvation and their soul wanders here and there. There is also an astrological reason to celebrate Pitru Paksha. Pitra dosha is considered very important in astrology. When a person reaches near success, even when he is deprived of success, problems in childbirth, loss of money, etc., then Jyotishacharya tells strong possibilities of suffering from Pitridosh. That is why the peace of fathers is considered necessary for the liberation from Pitradosh.
Story of Father's Side
According to mythological folklore, there were two brothers named Joga and Bhoga. Both lived separately. Joga was rich and Bhoga was poor. There was a lot of love between the two brothers but Joga's wife was very proud of the money. On the other hand, Bhoga's wife was very simple and gentle. When the father died, Joga's wife asked him to perform the shraddha of the fathers, then Joga started avoiding him instead of understanding him. The wife felt that if Shraddha was not performed, then people would make up things and this would bring disrepute to them. He thought that this is an opportune moment to invite his maternal grandfather to the feast and show his supremacy to the people. Then he said to Joga, 'You are probably saying this because of my trouble. I will not mind. I talk to Bhoga's wife and together we will take care of them all. He then sent Joga to invite his maiden.
The next day, Bhoga's wife went to Joga's house and did all the work. Cooked food in the kitchen and also made many dishes. After finishing work she came to her house. He also had to offer ancestors. Pitru landed on the ground in the afternoon. First he went to Jogi's house. There he saw that Jogi's in-laws are busy eating food. Then he became very sad and went to Bhoga's house. Bhoga's family named 'Agiyari' in the name of the fathers there. The father licked his ashes and went to the bank of a hungry river. In a short time, all the ancestors gathered and started shraddh at their respective places. Heard the story of Joga-Bhoga's father. Then they started thinking that if they were rich, they would not have to starve. There was no bread at Bhoga's house on 2 June. Thinking all this, the father took pity on them. Suddenly they started dancing and said - 'Bhogi's house should be rich, Bhogi's house should be rich'.
It was evening. Even the children of Bhoga did not get anything to eat. The children told the mother that she was hungry. Mother asked the children to escape, 'Go! In the courtyard, there will be utensils on the corner. Open it and eat whatever you get. When the children go there, they see that the pot is full of money, ornaments and dishes. He went to his mother and told the whole thing. On coming to the courtyard, when Bhoga's wife saw all this, she was surprised. In this way, the bhoga became rich, but he did not boast. The next year again came the occasion of Pitru Paksha Shraddha. On the day of Shraddha, Bhoga's wife prepared Chhappan Bhoga. Brahmins were called, performed shraadh, served food and gave alms. Pitru was very happy and satisfied after seeing all this.
Rituals During Pitru Paksha :
The Rituals of shraddh or tarpan is performed by a male member, who is usually the eldest son in the family. On the day when those who perform Pitra Paksha take a bath, Kush wears a dhoti and ring made of grass. According to Hindu texts, Kush grass is a symbol of compassion and is used to invoke ancestors.
The tradition of offering sesame, rice and shells made of barley flour is celebrated in Pind Daan. The Pitru Paksha rituals are performed under the guidance of a knowledgeable priest. After this, Lord Vishnu is invoked using another sacred grass for blessing, which is known as 'Darbha Grass'. This form of grass is known for its uninterrupted growth and hence it is believed that the use of Darbha grass eliminates obstacles in a person's life.
On the day of Pitru Paksha, food is prepared to be offered to the ancestors. It is a tradition to give crows a portion of this food, as crows are considered to be the messengers of Lord Yama. If the crow takes food, it is considered an auspicious sign. After this, a Brahmin priest is invited to dine and Dakshina is given to perform the ceremony. After completing all these customs, the family members sit together and have their meal.
During the Pitru Paksha, it is considered very good to read sacred Hindu writings like 'Agni Purana, Garuda Purana', and listen to various stories of Ganga Avataram and Nachiketa.