Guru Ravidas Jayanti in the Year 2021 will be Celebrated on Saturday, 27th February 2021
Guru Ravidas was born in the fifteenth century near Varanasi
city in Uttar Pradesh to a wealthy family who was in the leather
business. At a very young age, he showed spiritual inclination and used
to attend discourses.
To involve him in worldly affairs he was married at a very young age. But this did not dither Ravidas. Dejected his father sent him out of the family home. Ravidas stated living in makeshift house and began mending shoes for livelihood. Ravidas' devotion, universal and casteless love soon spread far and wide. He was against the caste system and untouchability.
He stood in support of the
low sate. During his time the caste system was practiced and people from
low caste were not allowed to enter temples or to schools. He preached
universal brotherhood, equality of mankind, compassion, and tolerance.
It is believed that Mira Bai who was the maharani of chittoor and a daughter of a king of Rajasthan became his disciple during this period. His songs preached equality and he taught that one is distinguished by his actions and not by his caste. How is Guru Ravidas Jayanti Celebrated The followers of guru Ravidas celebrate this day with great dedication and vigour?
Thousands of pilgrims gather at Shri Guru Ravidas Janam
Asthan Mandir in Varanasi to pay their tribute to the guru and offer
their prayers. On this day akand path is read. The flag of Sikhs called
Nishan sahib is exchanged ceremonially. A special art and Nagar Kirtan
is also performed. Procession is taken out carrying the portrait of the
guru. Special payers are also held in gurudwaras.
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संत रविदास का जन्म पंद्रहवी शताब्दी में उतर प्रदेश के वाराणसी शहर
के पास संपन्न परिवार में हुआ था जोकि चमड़े का व्यापार करते थे । अपने
बाल्यकाल में ही धार्मिक विषयो में रूचि और लगाव ने इनको धार्मिक चर्चाओं
में भाग लेना सीखा दिया ।
सांसारिक बंधनो में लाने के लिए इनकी शादी बाल्यावस्था में ही कर दी गयी, किन्तु संत रविदास वहां बंधे नहीं। परेशान होकर इनके पिता ने इनको पुश्तैनी घर से बहार निकाल दिया। जिसके कारण रविदास अपने बनाये छोटे से घर में रहकर जूते बनाकर अपनी आजीविका चलाने लगे। संत रविदास का भक्ति भाव सार्वभौमिक और जातिबंधनोसे ऊपर उठाकर प्रेम जल्दी ही चारो और फ़ैल गया।
वह जातिवाद और छुआछूत के विरोधी थे और उस समय निम्न समझे जाने वाले लोगो को उबारने वाली बहुत बड़ी आशा थे। उनके समय में जातिवाद बहुत अधिक था और लोगो को मंदिर और विद्द्यालय जाने से रोका जाता था। वे सार्वभौमिक भाईचारा, मानवता की बराबरी , त्याग समर्पण और सहिष्णुता बनाना चाहते थे। उनके कुछ प्रमुख दोहे निम्न है जो उस समय की व्यवस्था में उपस्थित कुरीतियों पर कठोर कटाक्ष थे ।
"ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन ।
पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन ।।"
इसमें उन्होंने मानवता और सद्गुणों को जाति से ऊपर करके दिखाया ।
"मन चंगा तो कठौती में गंगा ।।"
इस दोहे में संत रविदास ने कहा की यदि हमारा मन साफ है तो हम बिना गंगा स्नान किये ही पवित्र है ।
"जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात ।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात ।।"
यहाँ पर संत रविदास ने जाति के जंजाल और जाति कितनी बड़ी बाधा ईश्वर प्राप्ति में यह बताया है।यह माना जाता है कि चित्तोड़ कि महारानी और राजस्थान के राजा कि पुत्री मीरा बाई उस समय में उनकी अनुयायी बन गयी थी। उनके भजन समानता और समरसता सिखाते थे और बताते थे कि व्यक्ति अपने कर्मो से अलग होता है जाति या जन्म से नहीं।
सन्त रविदास के उपदेश समाज के कल्याण
उत्थान और मार्गदर्शन के लिए आज भी महत्वपूर्ण हैं। उनका व्यवहार तथा आचरण
इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य अपने जन्म जाति अथवा व्यवसाय के कारण महान
नहीं होता है। उसके विचारों की श्रेष्ठता, समाज में मानव हित की भावना से
पूर्ण कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे सदगुण ही मनुष्य को महान बनाते हैं। ऐसे
ही गुणों के कारण सन्त रविदास को उस समय समाज में बहुत सम्मान मिला और आज
भी लोग उन्हें और उनके महान कार्यो को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए उनसे
प्रेरणा लेते हैं।
संत रविदास के अनुयायी उनकी जयंती उत्साह और श्रद्धा से मानते है। लाखो श्रद्धालु तीर्थ यात्री श्री गुरु रविदास जन्मस्थान मंदिर में एकत्रित होकर उनको श्रद्धांजलि और प्रार्थना समर्पित करते है। इस दिन अखंड पाठ किया जाता है। रिवाज के अनुसार सिक्खो का ध्वज इस दिन बदला जाता है और एक विशेष आरती और नगर कीर्तन का प्रदर्शन किया जाता है। गुरु रविदास जी की तस्वीर के साथ जलूस निकला जाता है और गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाये की जाती है।