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Chhath Puja 2024 Date in

THE SUN WORSHIP FESTIVAL (CHHATH) :

Chhath Puja is a festival of reverence to the solar deity, the only festival in the world where devotees offer salutations to the setting and rising Sun. 

Chhath Puja is performed on Kartik Shukla Shashti i.e. the 6th day of the month of Kartik in the Hindu Calendar, exactly 6 days after Deepawali. This falls around the month of October-November as per the Gregorian calendar. A week after Diwali, the festival of lights, comes the festival Chhath. 

For one night and day, the people practically live on the banks of a river or any other water body in the neighborhood where a ritual offering is made to the Sun god. The word Chhath denotes the number six and thus the name itself serves as a reminder of this auspicious day on the festival almanac. 

The venue for this unique festival is the riverbank and since the Ganges traverses the countryside of Bihar, Uttar Pradesh and Bengal in India like a lifeline, it is but appropriate that the banks of this river should be the ideal prayer location. Chhath is considered a means to thank the Sun for bestowing the bounties of life on earth as also for fulfilling particular wishes.

Chhath is a Hindu festival but many Muslim families also participate in this holy festival in certain places.

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छठ पर्व छठ पर्व को सूर्य षष्ठी का व्रत करने का विधान है। इसे करने वाली स्त्रियाँ धन-धान्य, पति-पुत्र तथा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहती हैं। यह व्रत बडे नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। इसमे तीन दिन के कठोर उपवास का विधान है। 

इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को पंचमी तिथि को एक बार भोजन करती है जिसमें नमक नहीं होता है। षष्ठी तिथि को निर्जल रहकर व्रत करना होता है। षष्ठी को अस्त होते हुए सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करके स्त्रियाँ अर्घ्य देती हैं। फिर सप्तमी के दिन प्रात:काल नदी या तालाब पर जाकर स्नान करती हैं। सूर्योदय होते ही सूर्य देव को अर्घ्य देकर जल ग्रहण करती है एवं व्रत को खोलती हैं।

सूर्यषष्ठी - व्रत के अवसर पर सायंकालीन प्रथम अर्घ्य से पूर्व मिट्टी की प्रतिमा बनाकर षष्ठी देवी का आवाहन एवं पूजन करते हैं। पुनः प्रातः अर्घ्य के पूर्व षष्ठी देवी का पूजन करके विसर्जन कर देते हैं। मान्यता है कि पंचमी तिथि के सायंकाल से ही घर में भगवती षष्ठी का आगमन हो जाता है। इस प्रकार भगवान्‌ सूर्य देव के इस पावन व्रत में शक्ति और ब्रह्म दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है। इसीलिये लोक में यह पर्व ‘सूर्यषष्ठी’ के नाम से विख्यात है।

सूर्यषष्ठी व्रत के प्रसाद में ऋतु - फल के अतिरिक्त आटे और गुड से शुद्ध घी में बने ‘ठेकुआ’ का होना अनिवार्य है।  ठेकुआ पर लकडी के साँचे से सूर्य भगवान् ‌के रथ का चक्र भी अंकित करना आवश्यक माना जाता है। इस व्रत का प्रसाद माँगकर खाने का विधान है।

इस पर्व के संबंध में कई कहानियां भी प्रचलित हैं। एक कथा यह है कि लंका विजय के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो दीपावली मनाई गई। जब राम का राज्याभिषेक हुआ, तो राम और सीता ने सूर्य षष्ठी के दिन तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना की। 

इसके अलावा एक कथा यह भी है कि सूर्य षष्ठी को ही गायत्री माता का भी जन्म हुआ था। इसी दिन ऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र की उत्पत्ति हुई थी। पुत्र की प्राप्ति के लिए गायत्री माता की भी उपासना की जाती है। 

एक प्रसंग यह भी है कि अपना राजपाट खो चुके जंगलों में भटकते पांडवों की दुर्दशा से व्यथित दौपद्री ने इसी दिन सूर्यदेव की आराधना की थी। 

 
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