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Sakat Chauth Fast Date in

According to Hindu Vikrami Samvat Chaturthi of the dark lunar moon falls every month on the Chauth (fourth day) after Purnima known as Ganesh and women of religious propagation perform fast on that day fast and Ganesh worship too. But as far as the Chaturthi (fourth day)  Magadh (January-February) month dark lunar side is concerned, in the popular Indian culture, it is called Sakat Chauth. 

All women perform fast on this day. By the way, Vakratundi Chaturthi, Mahi Chauhaat or Tilkuta Chauhaan are other names of this festival. On this day god of Knowledge, intelligence, and wisdom crisis reliever Lord Ganesha and Moon are worshiped. This fast is to overcome the problems and troubles and fulfill all the desires and wishes of the creatures.

Method of Worship: On this day, women perform an unstinting fast. In the morning, after your daily cores, take bath to perform your morning prayers. Recite Om Ganeshaya Namah, Om Vakratundaya Namah. This is called Ganesh Ashtottar. During the period of Fast Water, Milk, Fruits, and Tea are permitted. They worship the mud nuggets by placing in the form of Ganesha. 

In the evening, as you do for any Vrat, make a Mandap and place a photo of Lord Ganesh. Decorate the photo of Lord Ganesh with available flowers. offer Durva ( Doorva - grass (creeper)) with 3 or 5 nodes to Lord Ganesh and keep some Doorva Grass aside to worship the Moon. Light Diyaa (lamp) and Agarbattee (incense stick) and offer Til Ke Ladoo (sesame seeds made with Jaggery and Sesame seeds), Sweet Potato, Jaggery. This is known as Naivdya. 

Now at the end do the Arati the bhajan Jaya Ganesh, Jaya Ganesh, Jaya Ganesh Devaa was singing... and pray for his blessings. After this, the moon should be worshiped with Til (Sesame Seeds) and Arghya (Offering by milk and water mixture). Moon and Rohini are also worshipped.

After listening to the story, the lauta(cup) filled with water is offered to the moon for completion of fast. Because on this day Lord Ganesha holds the moon on his head. At night, after the moonrise, the fast is completed after offering the arghya to the moon. Only after offering arghya to the moon to the women eat food. Some places on this fasting day, the moon is worshiped by offering milk as arghya. Gauri-Ganesh is established and worshiped and kept in the house throughout the year. 

On the fourth day of the dark lunar moon side, roasting sesame seeds with jaggery Tilakutas are made, the mountain of Tilakut is also made. In some places, ticket goat is also made. By worshiping her, a child in the house bites her neck, then everyone is given the Prashad of sesame seeds. Make ten laddus of sesame, offer five laddus to God and donate the remaining five Brahmans. Make a moonlight to the laddus made of sesame seeds (white) and sugar, and offer water to the moon also. 

Ganeshji is worshiped only from Tilkut and Make Baina of the same and also eats tilkut with the food. In the house where the boy is married or a baby boy born, in that year one and quarter kg sesame seeds are crushed with one and quarter kg of sugar or jaggery and thirteen laddus are made. These laddoos gave to mother-in-law by daughter-in-law in the form of Bayana. Moon, sugarcane, Ganji, Shanta, guava, guide(sugar), ghee are offered to moon and Ganesha. This plea is kept covered by a dalia all night, which is called the phar. 

This fast is performed by married women for a better future body strength, Good-fortune, wealth happiness, and prosperity of the son and husband. The boy opens the covered position and he is divided into brothers and sisters.  It is believed in UP and MP that every Married women should perform at least two Sakat Chauth.

It has a related legend that claims that it was the great sage Markandeya who advised a dethroned king to keep fast on this day to regain his lost glory. He did so and everything was well for him. Regarding Moon rise - sometimes due to the clouds etc, the Moon may not be visible at the specified time. In that case after the Moonrise timings, one may perform the Worship.
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हिन्दू विक्रमी सम्वत के अनुसार प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी वैसे तो गणेश कहलाती है, तथा धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्रियां उस दिन व्रत व गणेश पूजन भी करती हैं। परंतु जहां तक माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का प्रश्न है, लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है। सभी महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। वैसे वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ अथवा तिलकुटा चौथ इसी के अन्य नाम हैं। 

इस दिन विद्या-बुद्धि-वारिधि, संकट हरण भगवान् गणेश जी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है।

सकट चौथ व्रत की पूजा विधि : इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। सुबह में, अपने दैनिक कार्यो के बाद, स्नान करके अपनी सुबह की प्रार्थना करें। ओम गणेशाय नमः, ओम वक्रतुण्डाय नमः का जाप करें। इसे गणेश अष्टोत्तर कहा जाता है। उपवास अवधि के दौरान, पानी, दूध, फल और चाय की अनुमति है। एक पटरे पर मिट्टी की डली को गणेश जी के रूप में रखकर उनकी पूजा की जाती है।

शाम को, जैसा कि आप किसी भी अन्य व्रत के लिए करते हैं, एक मंडप बनाकर और भगवान गणेश जी की एक तस्वीर रखकर फूलों से सजाये। भगवान गणेश जी को 3 या 5 भागो वाली दुर्व (दूर्वा - घास) अर्पण करें और चंद्रमा की पूजा करने के लिए भी कुछ दूर्वा घास रखें। प्रकाश दिया (दीपक), अग्रबत्ती (धूप की छड़ी) और तिल के लड्डू (तिल और गुड़ से बने) तथा मीठे आलू का भोग लगाया जाता है। इसे नैवैद्य के नाम से जाना जाता है। अब अंत में आरती करते हुए जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा कहा जाता है ... और उनसे आशीर्वाद मांगते है। इसके बाद चंद्रमा को तिल और अर्घ्य (दूध और पानी मिश्रण)  देकर पूजा की जाती है। चंद्रमा-देवता और रोहिणी भी पूजा की जाती हैं।

कथा सुनने के बाद लोटे में भरा जल चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान गणेश चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करतें हैं। रात में, चंद्रमा के उदित होने के बाद, चंद्रमा की पूजा के बाद उपवास पूर्ण हो जाता है। रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही महिलाएं भोजन करती है। कहीं-कहीं इस दिन व्रत रहने के बाद सायंकाल चंद्रमा को दूध का अर्ध्य देकर पूजा की जाती है। गौरी-गणेश की स्थापना कर उनका पूजन तथा वर्षभर उन्हें घर में रखा जाता है।

सकट चौथ के दिन तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर तिलकुटा अर्थात तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा उसकी गर्दन काटता है, फिर सबको तिलकुट का प्रसाद दिया जाता है।तिल के दस लड्डू बनाकर, पांच लड्डू देवता को चढ़ावे और शेष पांच ब्रह्मण को दान दे देवें । गुड मे बने तिल (सफेद) के लड्डुओं को चंद्र दर्शन कराये। तिलकुटे से ही गणेशजी का पूजन किया जाता है तथा इसका ही बायना निकालते हैं और तिलकुट को भोजन के साथ खाते भी हैं।

जिस घर में लड़के की शादी या लड़का हुआ हो, उस वर्ष सकट चौथ को सवा किलो तिलों को सवा किलो शक्कर या गुड़ के साथ कूटकर इसके तेरह लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बहू बायने के रूप में सास को देती है। तिल, ईख, गंजी, भांटा, अमरूद, गुड़, घी से चंद्रमा गणेश का भोग लगाया जाता है। यह नैवेद्य रात भर डलिया से ढककर रख दिया जाता है, जिसे पहार कहते हैं। 

यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा बेहतर भविष्य, शरीर की ताकत, अच्छे भाग्य पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता हैं। उस ढके हुए पहार को पुत्र ही खोलता है तथा उसे भाई-बंधुओं में बांटा जाता है। यह यूपी और मध्यप्रदेश  में विश्वास है कि हर विवाहित महिलाओं को कम से कम 2 चौथ का व्रत करना चाहिए।

इसमें एक संबंधित किंवदंती है जो दावा करती है कि यह महान ऋषि मार्कंडेया थे जिन्होंने एक दिव्य राजा को सलाह दी कि वह अपने खोए हुए महिमा को वापस पाने के लिए इस दिन उपवास करे। उसने ऐसा किया और सब कुछ उस राजा को मिल गया था। चंद्रमा की वृद्धि के बारे में - कभी-कभी बादलों आदि के कारण, चंद्रमा निर्दिष्ट समय पर दिखाई नहीं दे सकता है। उस मामले में चंद्रमा उदित होने के समय के बाद कोई  भी पूजा कर सकता है।

सकट चौथ व्रत कथा: कथा एक बार विपदाग्रस्त देवता भगवान शंकर के पास गए। उस समय भगवान शिव के पास स्वामी कार्तिकेय तथा गणेश भी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा- तुम में से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे? तब कार्तिकेय ने स्वयं को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया। 

यह बात सुनकर शिवजी ने गणेश की इच्छा जाननी चाही। तब गणेशजी ने विनम्र भाव से कहा- पिताजी! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं। यह सुनकर हंसते हुए शिव ने दोनों लड़कों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी- जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा। 

यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। गणेश जी ने सोचा कि चूहे के बल पर तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची। वे 7 बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पद चिह्न दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। 

कार्तिकेय जी गणेश पर कीचड़ उछालने लगे तथा स्वयं को पूरे भूमण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिव से कहा-माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं इसलिए मैंने आपकी 7 बार परिक्रमाएं की हैं। गणेश की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकरजी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेश की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया- त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी। तब गणेश जी ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया। 

यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने अपने चंद्रमा को यह बताया कि चौथ के दिन चंद्रमा तुम्हारे मस्तक का सेहरा (ताज) बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चंद्र अर्ध्यदान देगा। उसका त्रिविधि ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा और एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षित होकर भगवान शिव को प्रणाम कर अंतर्धान हो गए।

 
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