कश्मीर से कन्याकुमारीतक एवं कामरूपसे कच्छ तक तमाम ऐसे मान्यता प्राप्त पूज्य स्थल, धर्मस्थल तथा शक्तिपीठ विद्यमान हैं, जहां वर्ष भर मनोकामनाओंकी पूर्ति एवं मानसिक शांति प्राप्त करने हेतु श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। ऐसे ही स्थानों में एक स्थान उत्तर प्रदेश के नगर फैजाबाद के बीचों-बीच स्थित है, प्रख्यात शक्ति पीठ माता हट्ठीमहारानी का मंदिर। देखने में माता का यह मंदिर छोटा अवश्य प्रतीत होता है, किंतु श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का उन्नत शिखर अत्यंत उच्च है। माता के स्थान के बारे में एक किंवदन्ती प्रचलित है कि नगर के ठठरैयामुहल्ले में लगभग डेढ सौ वर्ष पूर्व एक वटवृक्षके नीचे एक श्रद्धालु कुम्हार प्रतिदिन जलाभिषेककरता था, एक दिन उसने देखा कि जिस स्थान पर वह अभिषिक्त जल चढाता है, वहां वट वृक्ष में एक दरार उत्पन्न होने लगी। दिन प्रतिदिन वह दरार चौडी होती गई एवं अन्तत:उसमें एक देवी प्रतिमा का दर्शन होने लगे। कालान्तर में श्रद्धालुओं द्वारा मां की यही प्रतिमा वहां से उठाकर मंदिर में स्थापित करके मां हट्ठीमहारानी के नाम से पूजन अर्चन होने लगी। स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्ष बाद ही पुरातत्व विभाग के लोगों की नजर मां की मूर्ति पर पडी तो उन्होंने उसका सर्वेक्षण करते हुए विश्लेषण किया और उक्त मूर्ति के महाभारत काल के पूर्व की होने का सत्यापन किया। मां हट्ठीमहारानी मंदिर सेवा समिति के प्रवक्ता के अनुसार साठ के दशक में मां मैहर शक्ति पीठ के महाधिकारीजब किसी कार्यवश फैजाबाद आए और माता के उक्त स्थल की चर्चा सुनी तो वे मां का दर्शन करने से स्वयं को रोक न सके, मां के मंदिर में आकर उन्होंने दर्शन किए तथा बताया कि जब अहिरावणमां शक्ति के सामने श्रीराम व लक्ष्मण को उनके सम्मुख पाताल में बलि देने हेतु प्रस्तुत करता है और प्रथम बार शीश झुकाने पर ही बजरंग बली उसका वध करते हैं, तत्पश्चात श्रीराम लक्ष्मण को कन्धे पर बिठाकर माता को नमन कर सकने को उद्यत होते हैं। उस क्षण सारा प्रतिबिम्ब मां के मुकुट पर अंकित हो जाता है। यह प्रतिमा मां के उसी बिम्ब का प्रतिबिम्ब है। माता का यह स्थान पौराणिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से अपना विशिष्ट स्थान बनाए हुए है। मंदिर दक्षिण दिशा मुखी और शेर पर सवार मां, वह भी आशीर्वाद की मुद्रा में होने के कारण माता की यह प्रतिमा तांत्रिक विधियों में भी काफी फलदायीमानी जाती है।
भक्तों की अटूट श्रद्धा का ही परिणाम है कि माता के मंदिर के पूर्व एवं पश्चिम दीवार में स्थिति खिडकियां मनौती के बंधनों में भर ही जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि मनौती पूर्ण होने के बाद भक्तगण स्वयं अपने हाथों से खिडकी पर बंधे मनौती के धागे को खोल भी देते हैं। मां के दरबार में दोनों नवरात्रि में प्रतिदिन 108बत्ती की आरती का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं और उस समय इतनी भीड होती है कि नगर का मुख्य मार्ग चौक रकाबगंज मार्ग पूरी तरह से जाम हो जाता है। प्रत्येक नवरात्रि की सप्तमी की सम्पूर्ण रात्रि में सवा कुन्तल की पूर्णाहुति देते हुए रात्रि जागरण किया जाता है। जन्माष्टमी एवं रामनवमी पर्वो पर विशेष झांकी सजोई जाती है। विगत् 28वर्षो से केंद्रीय दुर्गा पूजा समिति की शोभा यात्रा के स्वागत में लगभग 15कुन्टल हलवा तथा 5कुन्टल चने के प्रसाद का वितरण भी होता है। पूज्य झूलेलालएवं सिख धर्म के कई महत्वपूर्ण जुलूसों में भी यहां पर प्रसाद वितरण होता है। वैसे भी प्रतिदिन लगभग 3000श्रद्धालु मां के दरबार में दर्शन करने आते हैं।