देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओम्कारेश्वर तीर्थ अलौकिक है. यह तीर्थ नर्मदा नदी के किनारे विद्यमान है. नर्मदा नदी के दो धाराओं के बंटने से एक टापू का निर्माण हुआ था जिसका नाम मान्धाता पर्वत पड़ा. आज इसे शिवपुरी भी कहा जाता है. इसी पर्वत पर भगवान ओम्कारेश्वर-महादेव विराजमान हैं. ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकट ही एक अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग है. इन दोनों ज्योतिर्लिंगों की गिनती एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है. कहते हैं जो मनुष्य इस तीर्थ में पहुंच कर अन्नदान, तप, पूजा आदि करता है अथवा अपना प्राणोत्सर्ग यानि मृत्यु को प्राप्त होता है उसे भगवान शिव के लोक में स्थान प्राप्त होता है. कहते हैं श्रीओम्कारेश्वर लिंग का निर्माण मनुष्य द्वारा न किया हुआ होकर प्रकृति द्वारा हुआ है.
कहते हैं भगवान शंकर के महान भक्त अम्बरीष और मुचुकंद के पिता सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने इस पर्वत पर कठोर तपस्या करके प्रभु को प्रसन्न किया और शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान मांग लिया. तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के रूप में पुकारी जाने लगी. जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है. इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है. इस क्षेत्र में कुल 68 तीर्थ हैं और यहां समस्त 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास माना जाता है.