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भक्तों की आस्था का केंद्र और 51 शक्तिपीठों में सर्वश्रेष्ठ सिद्धपीठ कामाख्या मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी के नीलांचल शैल की पर्वतमालाओं पर स्थित है. कालिका पुराण के अनुसार जब भगवान शंकर माता के शरीर को लेकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब इसी पर्वत पर भगवती देवी का योनिमंडल गिर पड़ा था. जो मनुष्य माता के इस पिंडी को स्पर्श करते हैं, वे अमरत्व को प्राप्त कर ब्रह्मलोक में निवास कर मोक्षलाभ करते हैं. यहां भैरव उमानंद के रूप में प्रतिष्ठित हैं. पुराणों की कथा के अनुसार रति पति कामदेव शिव की क्रोधाग्नि में यही पर भस्मीभूत हुए और पुनः उन्हीं की कृपा से अपना पूर्ण रूप को पुनः प्राप्त किया था. तांत्रिकों की साधना के लिए विख्यात कामख्या देवी के मंदिर में मनाया जानेवाला पर्व अम्बूवाची बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह पर्व कामरूप का कुम्भ माना जाता है. इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने के पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफ़ेद वस्त्र चढ़ाए जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं. कामरूप देवी का यह रक्तवस्त्र भक्तों में प्रसाद स्वरुप बांट दिया जाता है. कहा जाता है कि मां कामख्या के इस भव्य मंदिर का निर्माण कोच वंश के राजा चिलाराय ने सन 1565 में करवाया था परन्तु आक्रमणकारियों द्वारा इस मंदिर को क्षतिग्रस्त करने के बाद सन 1665 में कूच बिहार के राजा नर नारायण ने फिर से इसका निर्माण करवाया. |