कालेश्वरकाअर्थ है कालस्यईश्वरयानी काल का स्वामी। उज्जैनकेमहाकाल मंदिर के बाद कालेश्वरएकमात्रऐसा मंदिर है जिसके गर्भ गृह में ज्योर्तिलिंगस्थापितहै। यहां भगवान शिव एक अद्भुत लिंगरूपमेंविराजमान हैं।
कालेश्वरमेंस्थित कालीनाथमंदिरका इतिहास पांडवों जुडाहै। जनश्रुतिकेअनुसार इस स्थल पर पांडव अज्ञातवास के दौरान आए थे और इसका प्रमाण ब्यासनदीके तट पर उनके द्वारा बनाई गई पौडियोंसेमिलता है। बताया जाता है कि पांडव जब यहां आए तो भारत के पांच प्रसिद्ध तीथरेंहरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन,नासिकव रामेश्वरमकाजल अपने साथ लाए थे और जल को यहां स्थित तालाब में डाल दिया था जिसे पंचतीर्थीकेनाम से जाना जाता है। तबसे पंचतीर्थीतथा व्यास नदी में स्नान को हरिद्वार में स्नान के तुल्य माना गया है।
किवदंतीकेअनुसार महर्षि व्यास ने यहां घोर तपस्या की थी। इसका प्रमाण इस स्थल पर स्थित ऋषि-मुनियों की समाधियां से मिलता है। मंदिर का निर्माण पांडवों, कुटलैहडएवंजम्मू की महारानी व राजा गुलेरनेकरवाया था। इस तीर्थ स्थल के साथ महाकाली के विचरण का महात्म्यभीजुडाहै।