वृंदावन का सेवाकुंजमोहल्ला स्थित राधा दामोदर मंदिर ब्रह्म माध्वगौडीयसम्प्रदाय का मध्यकालीन ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर वृंदावन के सप्त देवालयों में से एक है। यहां ठाकुर राधा दामोदर का वह विग्रह विराजितहै, जो कि संवत् 1599(सन् 1942)की माघ शुक्ल दशमी को श्रीलरूपगोस्वामी के सम्मुख श्रीलजीव गोस्वामी के द्वारा नित्य ठाकुर सेवा किए जाने हेतु स्वयं प्रकट हुआ था। इसी दिन इस विग्रह को सर्वप्रथम राधा दामोदर मंदिर के सिंहासन पर विराजितकिया गया था। साथ ही इस मंदिर में चैतन्य चरितामृतग्रन्थ के रचयिता श्रीलकृष्णदासकविराज गोस्वामी द्वारा सेवित ठाकुर राधा वृंदावन चन्द्र का विग्रह, गीत गोविन्द ग्रंथ के रचयिता श्रीलजयदेव गोस्वामी द्वारा सेवित ठाकुर राधा माधव का विग्रह, षण्गोस्वामियोंमें सर्वप्रथम वृंदावन पधारे श्रीलभूगर्भ गोस्वामी द्वारा सेवित ठाकुर राधा छैलचिकनका विग्रह एवं ठाकुर जगन्नाथ व गौर निताईके विग्रह विराजितहैं। यहां ठाकुर राधा दामोदर के बाएं राधा रानी और दाएं ललिता सखी के जो विग्रह विराजितहैं, उनके आविभविकी कथा अत्यंत रोचक है। बंगाल में एक बार एक केवट मछली पकड रहा था। उसके जाल में अकस्मात दो विग्रह आ गए। उसने दोनो विग्रह वहां के राजा को दे दिए। उसी रात्रि राजा स्वप्न में आदेश हुआ कि वह विग्रहोंको वृंदावन में श्रीलजीव गोस्वामी को दे दे। राजा ने ऐसा ही किया। जीव गोस्वामी इन विग्रहोंको पाकर अत्यंत प्रसन्न हुए। परंतु वह यह पहचान नहीं कर पाए कि कौन किसका विग्रह है। इस पर राधा-रानी ने रात्रि में जीव गोस्वामी को स्वयं स्वप्न देकर विग्रहोंका परिचय कराया। स्वप्न में प्राप्त परिचय के अनुसार जीव गोस्वामी राधा रानी के विग्रह को ठाकुर दामोदर के बायीं ओर ललिता सखी के विग्रह को दायीं ओर विराजितकर उनकी सेवा-पूजा करने लगे।
इस मंदिर में वह गिरिराज चरण शिला खण्ड भी मौजूद है, जिसे कि भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीलसनातनगोस्वामी पाद को चकलेश्वर(गोवर्धन) में उस समय दिया था, जब वह वृद्धावस्था के कारण नित्य-प्रति गोवर्धनकी परिक्रमा कर पाने में असमर्थ हो गए थे। भगवान् श्रीकृष्ण ने सनातन गोस्वामी से कहा था कि इस शिला खण्ड की चार परिक्रमा कर लेने मात्र से उन्हें गोवर्धनकी सप्त कोसी परिक्रमा करने का पुण्य फल प्राप्त होगा। भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा प्रदत्त इस शिलाखण्ड पर भगवान श्रीकृष्ण का एक चरण चिन्ह उनकी वंशी, लाठी और गाय के एक खुर का चिन्ह आज भी मौजूद है। इस शिला खण्ड के दर्शन व उसकी चार परिक्रमा करने हेतु यहां भक्त-श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
राधा दामोदर मंदिर श्री मन्माध्वगौडेश्वरसम्प्रदाय की मूल पीठ है। गौडीयसम्प्रदाय के सर्वप्रथम आचार्य व प्रथम अध्यक्ष श्रीलरूपगोस्वामी ने यहीं पर रह कर भजन किया था और यहीं पर उन्होंने अपने विश्व विख्यात ग्रंथ श्री भक्ति रसामृतसिन्धु की रचना की थी। यहां रूप गोस्वामी की भजन कुटीर एवं उनका समाधि मंदिर भी है। समाधि मंदिर में उनका दिव्य विग्रह विराजितहै। ऐसा माना जाता है कि इस समाधि मंदिर के सम्मुख महामंत्र की एक माला का जप करने से एक लाख माला के जप करने जितना पुण्य फल प्राप्त होता है। यहां उन समस्त षण्गोस्वामियोंके श्री विग्रहोंके दर्शन भी हैं, जिन्होंने यहां साधना की थी। यहीं पर रघुनाथ भट्ट वैष्णवों जनों के मध्य श्रीमद्भागवत की व्याख्या किया करते थे। इस स्थान पर इस्कॉन के संस्थापक भक्ति वेदान्त श्रीलप्रभुपादभी कई वर्षो तक रहे थे। उन्होंने यहां रहकर न केवल भजन किया, अपितु श्रीमद्भागवत के साथ-साथ अन्य धर्म ग्रंथों का अंग्रेजी अनुवाद भी किया। यहां उनकी भजन कुटीर भी है, जिसके समक्ष बैठ कर वह अपने भक्त गणों को प्रवचन दिया करते थे। अब उनके भजन कुटीर में उनका दिव्य विग्रह स्थापित कर दिया गया है। श्रीलप्रभुपादमहाराज ठाकुर राधा दामोदर के श्री चरणों में असीम प्रेम व श्रद्धा रखते थे। वह इस मंदिर को आध्यात्मिक जगत का दिव्य केंद्र कहा करते थे। इसके अलावा यहां भारत के समस्त गौडीयमठों के संस्थापक श्री भक्ति सिद्धान्त सरस्वती, श्रीलजीवगोस्वामी,श्रील कृष्णदासकविराज, श्रीलभूगर्भ गोस्वामी एवं आचार्य श्रीलगौरा चांद गोस्वामी समेत गौडीयसम्प्रदाय के अनेक सिद्ध संतों व वैष्णवों की समाधियां भी हैं।