भारतीय संस्कृति में नर्मदा का विशेष महत्व है। जिस प्रकार उत्तर भारत में गंगा-यमुना की महिमा है, उसी तरह मध्य भारत में नर्मदा जन-जन की आस्था से जुडी हुई है। स्कंदपुराणके रेवाखंडमें नर्मदा के माहात्म्य और इसके तटवर्ती तीर्थो का वर्णन है। [अवतरण की कथा] स्कंदपुराणके रेवाखण्डके अनुसार, प्राचीनकाल में चंद्रवंश में हिरण्यतेजाएक प्रसिद्ध राजर्षि [ऋषितुल्य राजा] हुए। उन्होंने पितरोंकी मुक्ति और भूलोक के कल्याण के लिए नर्मदा को पृथ्वी पर लाने का निश्चय किया। राजर्षि ने कठोर तपस्या कर भगवान शंकर को प्रसन्न कर लिया। उनके तप से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण का वरदान दे दिया। इसके बाद नर्मदा धरा पर पधारीं। राजा हिरण्यतेजाने नर्मदा में विधिपूर्वक स्नान कर अपने पितरोंका तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किया। यह कथा आदिकल्पके सत्ययुग की है, जबकि कुछ कथाओं में नर्मदा को पृथ्वी पर लाने का श्रेय राजा पुरुकुत्सुको दिया जाता है। [आध्यात्मिक महत्व] पद्मपुराणके अनुसार, हरिद्वार में गंगा, कुरुक्षेत्र में सरस्वती और ब्रजमंडलमें यमुना पुण्यमयीहोती हैं, लेकिन नर्मदा हर जगह पुण्यदायिनीहै। मान्यता है कि सरस्वती का जल तीन दिन में, यमुना का एक सप्ताह में और गंगा का जल स्पर्श करते ही पवित्र कर देता है, लेकिन नर्मदा के जल का दर्शन करने मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है। ऋषि-मुनि कहते हैं कि नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, जल पीने, नर्मदा का स्मरण और नाम जपने से अनेक जन्मों का पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। जहां नर्मदा भगवान शिव के मंदिर के समीप विद्यमान है [ओंकारेश्वर], वहां स्नान का फल एक लाख गंगा स्नान के बराबर होता है। इसके तट पर पूजन, हवन, यज्ञ, दान आदि शुभ कर्म करने पर उनसे कई गुना पुण्य उपलब्ध होता है। इसलिए नर्मदा सदा से तपस्वियों की प्रिय रही है। गंगा-यमुना की तरह नर्मदा को श्रद्धालु केवल नदी नहीं, बल्कि साक्षात देवी मानते हैं। आस्तिकजनइन्हें नर्मदा माता कहकर संबोधित करते हैं। भक्तगण बडी श्रद्धा के साथ इनकी परिक्रमा करते हैं। आज के प्रदूषण-प्रधान युग में नर्मदा का जल अब भी अन्य नदियों की अपेक्षा ज्यादा स्वच्छ और निर्मल है। [साक्षात् शिव हैं नर्मदेश्वर] कहावत प्रसिद्ध है कि नर्मदा का हर कंकडशंकर। नर्मदा के पत्थर के शिवलिंगनर्मदेश्वर के नाम से लोकविख्यातहैं। शास्त्रों में नर्मदा में पाए जाने वाले नर्मदेश्वर को बाणलिंग भी कहा गया है। इसकी सबसे बडी विशेषता यह है कि नर्मदेश्वरको स्थापित करते समय इसमें प्राण-प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं पडती। नर्मदेश्वर[बाणलिंग] को साक्षात् शिव माना जाता है। सनातन धर्म का सामान्य सिद्धांत है कि शिवलिंगपर चढाई गई सामग्री निर्माल्य होने के कारण अग्राह्य होती है। शिवलिंगपर चढाए गए फल-फूल, मिठाई आदि को ग्रहण नहीं किया जाता, लेकिन नर्मदेश्वर के संदर्भ में यह अपवाद है। शिवपुराणके अनुसार नर्मदेश्वर शिवलिंगपर चढाया गया भोग प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। नर्मदेश्वरको बिना किसी अनुष्ठान के सीधे पूजागृह में रखकर पूजन भी प्रारंभ किया जा सकता है।