मछिंद्र नाथ महादेव का प्राचीन मंदिर कांगडा के विधानसभा क्षेत्र नगरोटा बगवां से दो किलोमीटर की दूरी पर मूमता गांव से जाना जाता है। इस धार्मिक पवित्र स्थान का असली नाम मछियाल से प्रसिद्ध है।
मछियाल को एक ऐसे धार्मिक व सच्चे देवता के रूप में मनोकामनाएं पूरा करने के लिए आम जनता में विश्वास बना हुआ है। इस मंछिद्र महादेव मंदिर के साथ बहती खड्ड में एक झील बनी हुई है, जिसमें मछलियां कुदरत की देन हैं। इस झील का स्तर बढने या घटने से मछलियां यहीं पर रहती हैं, जिसके साथ लोगों की आस्था जुडी है। इस मछियाल महादेव की कृपा से झील की मछलियों को लोग हर मंगलवार व शनिवार को आटा डाल कर अपने ग्रहों को शांत करते हैं तथा मनोकामनाएं मांगते हैं।
मान्यता है कि जिन लोगों की मान्यताएं पूरी हो जाती हैं, वे मछली को बालू (सोने की तार) डालते हैं। मछिंद्र महादेव के लिए लोग ढोल-नगाडों के साथ दर्शनों के लिए जात लेकर आते हैं। इस मंछिद्र महादेव मंदिर के चारों ओर छटा देखते ही बनती है। मंदिर के इर्द-गिर्द माता शेरावाली का मंदिर तथा भगवान श्री रामचंद्र तथा वीर हनुमान की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस मंदिर के साथ ही लगभग 12 फुट ऊंची भगवान शिव की मूर्ति का किसी भक्त द्वारा निर्माण करवाया गया है।
इस स्थान की पौराणिक कथा के अनुसार सदियों पहले यहां शादियों के लिए बर्तन दिए जाते थे। इस धार्मिक स्थल पर रहने वाले अधिकतर लोगों के पास विवाह शादियों में प्रयोग होने वाले पर्याप्त बर्तन नहीं होते थे, परंतु मंछिद्र नाथ पर अटूट आस्था होने के कारण संबंधित व्यक्तियों द्वारा चने, चावल, डोरी तथा पैसे डालकर नियुंद्र (निमंत्रण) देकर मन्नत मांगी जाती थी। माना जाता है कि मछिंद्र नाथ द्वारा नियुंद्र को मंजूर कर शादी के लिए बर्तन उपलब्ध करवा दिए जाते थे। यह प्रथा लंबे समय तक चलती रही। लोगों में लालच आने के कारण इसको बंद तो कर दिया गया, परंतु लोगों की आस्था जुडी रही। इस गांव के लच्छो राम को हड्डी वैद्य के रूप में जाना जाता है तथा जसो राम के पास ऐसी जडी बूटियों का भंडार है कि यदि किसी व्यक्ति को संाप काट जाए और समय रहते वहां पर पहुंच जाए तो उसकी जान बच सकती है। श्री मंछियाल मंदिर में हर साल भंडारा तथा महाशिवरात्रि का पर्व भी धूमधाम से मनाया जाता है।