हरि के प्रदेश हरियाणा की धरा पर असंख्य धार्मिक स्थल विद्यमान हैं। रेवाडी-हिसाररेलमार्गके निकट रेवाडीके गांव कोसलीमें स्थित बाबा मुक्तेश्वरपुरीका मठ भी इनमें से एक है। पुरी संप्रदाय के इस मठ की स्थापना बाबा कृष्णपुरीने हींस नामक वृक्ष के नीचे धूनी लगाकर उस समय की जब यह क्षेत्र विशाल वनखंडथा। हींस का यह वृक्ष पीढी दर पीढी इस क्षेत्र के श्रद्धालुओं की वंशबेलको देखने का मूक साक्षी बना हुआ है। मठ के प्रांगण में खडा यह वृक्ष श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और मुक्तेश्वरपुरीमठ सदियों से श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा का साक्षी बना हुआ है।
बाबा मुक्तेश्वरपुरीमठ की स्थापना बाबा कृष्णपुरीने की थी। शुरू से लेकर अब तक यहां इस मठ के संस्थापक बाबा कृष्णपुरीसे लेकर वर्तमान मठाधीश बाबा शिवपुरी [श्रीश्री 1008विनोदानंदपुरीमहाराज महामंडलेश्वर]तक 19मठाधीश विराजमान रह चुके हैं। गांव कोसलीके बडे-बुजुर्गो का कहना है कि गांव कोसलीके संस्थापक पितामह कोसलदेवको वर्ष 1265में बाबा मुक्तेश्वरपुरीने खेडा आबाद करने का आशीर्वाद दिया था और फिर पितामह कोसलदेवके नाम से गांव का नाम कोसलीरखा गया। बेशक मठ के संस्थापक बाबा कृष्णपुरीमहाराज थे लेकिन फिर भी यह मठ बाबा मुक्तेश्वरपुरीमहाराज के कारण अधिक जाना जाता है क्योंकि गांव कोसलीके खेडेको बसाने में उनका विशेष सहयोग रहा है। वर्तमान में बाबा कृष्णपुरीमहाराज को भी श्रद्धालु श्रद्धापूर्वकयाद करते हैं और उनकी धोकलगाते हैं।
ग्रामीण आज भी पितामह कोसलदेवके साथ-साथ बाबा मुक्तेश्वरपुरीका श्रद्धापूर्वकस्मरण करते हैं। मठ के तत्कालीन एवं चौथे मठाधीश बाबा मुक्तेश्वरपुरीमहाराज को श्रद्धालु गुसांई बाबा के नाम से भी जानते हैं। उनका यह नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। गांव कोसलीके निवासी बाबा मुक्तेश्वरपुरीको अपना इष्टदेव व कुलदेव मानते हैं, इसलिए वे मठ में स्थापित उनकी मूर्ति के समक्ष हर रोज धोकलगाते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि बाबा मुक्तेश्वरपुरीके स्मरण मात्र से उनकी व्याकुलता समाप्त हो जाती है और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। हर वर्ष चैत्र और आश्विन मास की अष्टमी को गांव कोसलीमें स्थित बाबा मुक्तेश्वरपुरीके मठ में मेला लगता है। इस मेले में आसपास के क्षेत्रों से ही नहीं अपितु कोसलिया गोत्र के लोग विश्वभरमें भले ही कहीं भी बसे हों लेकिन यहां आकर शक्कर का प्रसाद चढाकर नतमस्तक अवश्य होते हैं। नवविवाहित जोडे भी यहां धोकलगाने आते हैं। भारतीय सेनाओं में भर्ती हो चुके गांव कोसलीके निवासी छुट्टी होते ही सबसे पहले बाबा मुक्तेश्वरपुरीके मठ में जाकर नतमस्तक होते हैं।
वर्तमान में बाबा के समाधि स्थल को अनुपम एवं मनोहारी भव्यता प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध वास्तुकार लगे हुए हैं। यह कार्य मंदिर कमेटी की देखरेख में जारी है।