रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग दक्षिण भारत के समुद्र तट पर अवस्थित है. कहते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने स्वयं अपने हाथों से श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कि स्थापना की थी. जब श्रीराम ने रावण के वध हेतु लंका पर चढ़ाई की थी तो विजयश्री की प्राप्ति हेतु उन्होंने समुद्र के किनारे बालुका (रेत) का शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा की थी. तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया था. श्री राम द्वारा प्रार्थना किए जाने पर लोककल्याण की भावना से ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए वहां निवास करना भगवान शंकर ने स्वीकार कर लिया. एक अन्य मान्यता के अनुसार रामेश्वरम में विधिपूर्वक भगवान शिव की आराधना करने से मनुष्य ब्रह्महत्या जैसे पाप से भी मुक्त हो जाता है.
रामेश्वरम में होनेवाले वार्षिकोत्सव का विशेष महत्व है. इसदिन रामेश्वर ज्योतिर्लिंग को चांदी के त्रिपुंड और श्वेत उत्तरीय से अलंकृत किया जाता है. उत्तराखंड के गंगोत्री से गंगाजल लेकर श्रीरामेश्वरम में भगवान शिव पर चढ़ाने से समस्त पापों का नाश होता है. कहते हैं जो मनुष्य परम पवित्र गंगाजल से भक्तिपूर्वक रामेश्वर शिव का अभिषेक करता है अथवा उन्हें स्नान काराता है वह साक्षात् जीवन से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त कर लेता है.