पाषाण देवी के बारे में कहा जाता है कि सच्चे मन से पूजा करने पर यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इससे भक्तों की माता में अटूट श्रद्धा है। मंदिर की स्थापना कुमाऊं के पहले कमिश्नर ट्रेल ने करवाई थी।
प्राकृतिक रूप पत्थर में नवदुर्गा नवों मुखों की प्रतिकृति की पूजा आदिकाल से ही की जा रही है। इतिहासकार प्रो. अजय रावत ने अपनी पुस्तक नैनीताल वैकेंस में लिखा है कि सन् 1823 में जब कुमाऊं कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल कुमाऊं के अस्सी साला भूमि बंदोबस्त के लिए नैनीताल पहुंचे। तो उन्होंने ठंडी सडक पर गुजरते समय एक गुफा से घंटी की आवाज सुनी। साथ चल रहे हिंदू पटवारी से पाषाण देवी मंदिर स्थापना के लिए कहा। इतिहास में इसका इतना ही जिक्र है।
पाषाण देवी मंदिर में जो प्रतिकृति है। उसमें मां के 9 मुख बने हैं, कहा जाता है कि मां की चरण पादुकायें झील के अंदर हैं। इसलिए झील के जल को कैलास मानसरोवर की तरह पवित्र माना जाता रहा है। पिछली 5 पीढियों से मंदिर का पुजारी भट्ट परिवार है। वर्तमान पुजारी जगदीश भट्ट ने बताया कि मां पाषाण देवी के भक्त पूरे देश में फैले हैं। मंगल और शनिवार तथा हर नवरात्र पर मां को चोली पहनाने की परंपरा है।