यूं तो बिहार में आस्था व संस्कृति की विरासत है। लेकिन, चम्पारण की माटी मंदिर व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से भरी पडी है। इन्हीं में शामिल है बेतिया के तत्कालीन राजा द्वारा 1676 ई. में स्थापित कालीबाग मंदिर और इसके मध्य में स्थित एकादश रुद्र शिवलिंग। यहीं होता है देवाधिदेव के स्वरूप तिलभांडेश्वर शिवलिंग का दर्शन। इस शिवलिंग का आकार प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढता है।
मंदिर के दक्षिण भाग में एकादशरुद्र के शिवलिंग स्थापित है। ग्यारह शिवलिंगों में तिलभांडेश्वर सबसे पूर्वी भाग में विराजमान हैं। मंदिर की स्थापना के समय तांत्रिक विधि का ध्यान रखा गया है। वैसे इसी परिसर में अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। मगर, सबसे अहम हैं तिलभांडेश्वर, जिनकी महिमा अपरंपार है। मंदिर के पुजारी जयचन्द्र झा एवं केदार पांडेय का कहना है कि इस शिवलिंग का आकार प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ जाता है। पुजारी जयचन्द्र झा की मानें तो उनकी चौथी पीढी पूजा में लगी है। उनके पूर्वज भी शिवलिंग के बढने की बात कहते थे। निर्माण में शाक्य एवं शैव परंपराओं का अनुसरण करने के साथ तांत्रिक विधि को ध्यान में रखा गया था।
मंदिर के उत्तर भाग में दक्षिणेश्वर काली की प्रतिमा सहित मां तारा, महाकाल भैरव, नवदुर्गा एवं दश महाविद्याओं की प्रतिमाएं हैं। जबकि पश्चिम में चौसठ योगिनी एवं दशावतार तथा पूरब में द्वादश कला सूर्यनारायण, नवग्रह एवं उनकी पत्नियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। दक्षिण में एकादश रुद्र के अलावा छप्पन विनायक गणेश, दश दिकपाल, महामृत्युंजय महादेव की प्रतिमाएं हैं। मध्य भाग में एक बडा पोखरा है, जिसके दक्षिण तट पर पहले पंचमुखी महादेव एवं एकादश रुद्र हैं। बताते हैं कि देश में मंदिरों का शहर भुवनेश्वर को कहा गया है, जबकि देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के मामले में बेतिया का स्थान विशिष्ट है। विद्वानों के मतानुसार, साधना में शिव एवं शक्ति की प्रधानता है। यहां एकादश रुद्र मंदिर में बैठकर कोई भक्त एवं साधक सीधे तौर पर मां काली का ध्यान कर सकता है।