साईं बाबा का प्रसिद्धि पूना और अहमदनगर तक फैल चुकी थी| दासगणु के मधुर कीर्तन के कारण बाबा का यश कोंकण तक व्याप्त हो चुका था| लोगों को उनका कीर्तन करना बहुत अच्छा लगता था और उनके कीर्तन का प्रभाव लोगों के हृदयों पर गहरे तक पड़ता था|
एक बार श्रोताओं के कहने पर महाराज ठाणे के कौपीनेश्वर मंदिर में कीर्तन करते हुए साईं बाबा का गुणगान कर रहे थे| श्रोताओं में एक चोलकर नाम का व्यक्ति भी उपस्थित था| वह ठाणे की दीवानी अदालत में अस्थायी कर्मचारी था|
उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी| चोलकर दासगणु महाराज का कीर्तन सुनकर बड़ा प्रभावित हुआ| उसने मन-ही-मन बाबा के श्री चरणों में प्रणाम किया और साईं प्रार्थना की कि - "हे साईं बाबा ! मेरी हालत से आप परिचित हैं|
परिवार का भरण-पोषण बड़ी मुश्किल से हो पाता है| यदि आपकी कृपा से मैं विभागीय परीक्षा में सफल हो गया तो आपके चरण-कमलों में उपस्थित होकर आपके नाम से मिश्री का प्रसाद बांटूंगा|"
चोलकर विभागीय परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया और वो स्थायी कर्मचारी हो गया| अपनी मनन्त याद होते हुए भी वह हालात की वजह से शिरडी न जा सका| एक तरफ गरीबी और दूसरी तरफ बड़ा परिवार| ऐसे में शिरडी जाने के लिए पैसा इकट्ठा करना बहुत मुश्किल कार्य था| लेकिन जब दिन पर दिन बीतने लगे तो वह बेचैनी बढ़ती जा रही थी| आखिर में उसने एक कठोर निर्णय किया| उसने शक्कर खाना छोड़ दी और चाय भी फीकी पीने लगा| अन्य खर्चे भी कम कर दिये|
इस तरह पैसा जोड़कर वह एक दिन शिरडी पहुंचा| शिरडी में पहुंचकर बाबा के श्री चरणों में प्रणाम करके अपनी मनन्त बताकर वहां उपस्थित सभी भक्तों में मिश्री का प्रसाद बांट दिया| फिर बाबा से बोला - "बाबा आपकी कृपा-आशीर्वाद से मेरी मनोकामना पूर्ण हो गयी और आज आपके दर्शन कर मैं धन्य हो गया|"
उस समय बापू साहब जोग भी वहां पर उपस्थित थे| उन्होंने चोलकर का आतिथ्य किया था| जब वे दोनों मस्जिद से जाने लगे तो बाबा ने बापू साहब जोग से कहा, अपने मेहमान को चाय में खूब शक्कर मिलाकर पिला| चोलकर ने जब बाबा के श्रीमुख से ये वचन सुने तो उसका दिल भर आया और आँखों से आँसू बहने लगे| वह भावविह्वल हो बाबा के चरणों में गिर पड़ा| बापू साहब हैरान थे कि बाबा के कहने का मतलब क्या हैं? बाबा के कहने का संकेत यह था कि उन्हें चोलकर द्वारा शक्कर छोड़ने के बारे में पता है|