एक समय दासगणु महाराज हरिकथा कीर्तन के लिए शिरडी आये थे| उनका कीर्तन होना भक्तों को बहुत आनंद देता था| सफेद धोती, कमीज, ऊपरी जरी का गमछा और सिर पर शानदार पगड़ी पहने और ऊपर से मधुर आवाज दासगणु का यह अंदाज श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था| उनका कीर्तन सुनने के लिए दूर-दूर से श्रोताओं की भारी भीड़ एकत्रित हुआ करती थी|
एक दिन दासगणु महाराज कीर्तन के लिए पूरी पोशाक पहन, सज-धजकर जाने से पहले साईं बाबा को प्रणाम करने मस्जिद पहुंचे तो बाबा ने उन्हें देखकर कहा - "अच्छा, दूल्हे राजा इतना बन-ठनकर कहां जा रहे हो?" तब दासगणु ने कहा - "बाबा ! मैं कीर्तन करने जा रहा हूं|"
बाबा ने पूछा - "हरि कीर्तन करनेवालों को यह सब चमक-दमक और दिखावे की क्या आवश्यकता है? चलो, इनको अभी मेरे सामने उतारो|" बाबा की आज्ञानुसार दासगणु महाराज ने भारी कपड़े उतार दिये और मात्र एक धोती पहनकर मंजीरे के साथ हरि कथा कीर्तन करना शुरू कर दिया| इसके बाद दासगणु महाराज ने कीर्तन के समय शरीर पर धोती के अलावा अन्य वस्त्र धारण नहीं किए| बाबा को कीर्तन के लिए कपड़ों से अधिक सादगी पंसद थी|