एक समय की बात है जब दोपहर की आरती के बाद भक्त अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे थे तो तब बाबा ने उन्हें अपनी सुमधुर वाणी में अमृतोपदेश देते हुए कहा - "तुम कहीं भी रहो, कुछ भी करो, लेकिन इतना याद रखो कि तुम जो कुछ भी करते हो, तुम्हारी हरेक करतूत की खबर सदैव मुझे रहती है| मैं ही सब जीवों का स्वामी हूं और मैं सबके हृदयों में वास करता हूं| संसार के जितने भी जड़-चेतन जीव हैं, वे मेरे ही उदर में समाए हुए हैं| इस समस्त ब्रह्माण्ड का नियंत्रण व संचालन करने वाला भी मैं ही हूं| मैं ही संसार की उत्पत्ति करता हूं, मैं ही इसका पालन-पोषण करता हूं और मैं ही इसका संहार करता हूं| लेकिन जो लोग मेरी भक्ति करते हैं, उन्हें कोई भी कुछ भी संकट नहीं आयेगा| लेकिन जो मेरी भक्ति से विमुख रहते हैं, उसे माया अपने मकड़जाल में फंसा लेती है| इस संसार में सारे जीव-जंतु, संसार में दृश्यमान, विद्यमान जो कुछ भी है, वह सब मेरा ही प्रतिरूप है|"
बाबा आगे कहते हैं - "इन कथाओं को एकाग्र भाव से, प्रेम और श्रद्धा-विश्वास रखकर सुनने और स्मरण करने तथा व्यक्ति का रहस्य समझने पर जन्म-जन्मान्तरों के दु:खों से मुक्ति प्राप्त होगी| साईं कृपा का बादल तुम पर बरसेगा और शुद्ध ज्ञान (आत्म-ज्ञान) तुम्हारे अंदर जागेगा| व्रत और नियमन करो| उपवास करके शरीर को कष्ट मत दो| तीर्थ-तीर्थ भटकने की भी आवश्यकता नहीं है| सिर्फ साईं बाबा की लीलाओं का श्रवण करो| ऐसा करने से तुम्हारे अज्ञान का नाश होकर मुक्ति का मार्ग खुलेगा|