साईं बाबा रहते तो शिरडी में ही थे, पर उनकी नजरें सदैव अपने भक्तों पर लगी रहती थीं| बाबा अपने भक्तों पर आने वाले संकटों के प्रति उन्हें आगाह भी करते और संकटों से उनकी रक्षा भी किया करते थे| अहमदनगर गांव के रहने वाले काका साहब मिरीकर, जिन्हें उस समय की सरकार ने 'सरदार' के खिताब से नवाजा था| उनके बेटे वाला साहब मिरीकर भी अपने पिता की ही तरह प्रसिद्ध थे| वे कोपर गांव के तहसीलदार थे| एक बार वे अपने ऑफिस के किसी कार्य से दिल्ली जा रहे थे, तब जाते समय वे शिरडी आये|
मस्जिद में पहुंचकर उन्होंने बाबा के दर्शन कर, चरणवंदना की और कुशलक्षेम पूछने के बाद, कुछ इधर-उधर की बातें कीं| बातों के बीच में बाबा ने उनसे पूछा - "मिरीकर, क्या तुम हमारी द्वारिकामाई को जानते हो?" बाला साहब इस प्रश्न से हैरान रह गये| तब साईं बाबा बोले - "क्या समझे नहीं? यह द्वारिकामाई अपनी मस्जिद ही है| यह माई अपनी गोद में आकर बैठनेवाले बच्चों क अभय देती हैं| उनके कष्टों और परेशानियों को दूर कर देती हैं| यह बड़ी ममतामयी और दयालु हैं| यह सरल हृदय भक्तों की माँ हैं| यदि किसी पर कोई संकट आ जाता है तो यह अवश्य ही उसकी रक्षा करती हैं| जो इनकी गोद में आकर बैठा, उसका कल्याण हो गया| जो विश्वास के साथ इनकी छांव में बैठा, मानो वह सुख के सिंहासन पर बैठा| इसलिये इसे द्वारिका या द्वारावती भी कहते हैं|"
जब बाला साहब जाने लगे तो बाबा ने उनके सिर पर अपना वरदहस्त रखकर उन्हें आशीर्वाद के साथ ऊदी प्रसाद भी दिया| जब वे उठे तो बाबा ने पूछा - "क्या तुम लम्बे बाबा को जानते हो?" तो मिरीकर ने मना कर दिया| फिर बाबा ने अपने बायें हाथ की मुट्ठी बनाकर दाहिने हाथ की हथेली पर कोहनी के बल खड़ी की और सांप की भांति हिलाते हुए बोले - "वह ऐसा भयानक होता है| लेकिन वह द्वारिकामाई के पुत्रों का बिगाड़ ही क्या सकता है| इसकी करनी कोई नहीं जानता| हमें सिर्फ इसकी लीला देखने का ही काम है| जब द्वारिकामाई स्वयं रक्षा करने - वाली है तो वह लम्बा बाबा हमारा क्या बिगाड़ेगा?" सब लोग बैठे बाबा की बात सुन रहे थे| उन्हें समझ नहीं आया कि बाबा के संकेत किसकी ओर हैं| पर बाबा से पूछने का साहस किसी में नहीं था|
फिर बाबा ने शामा को अपने पास बुलाकर उसे मिरीकर के साथ चितली गांव जाने को कहा| फिर वे दोनों तांगे से रवाना हो गये| वहां पहुंचकर उन्हें मालूम हुआ कि बड़े अफसर जिन्हें उनसे मिलना था अब तक नहीं आये थे| कुछ देर तक उनका इंतजार करने के बाद वे दोनों हनुमान मंदिर में जाकर ठहर गए| खाना खाने के बाद, रात का एक पहर बीत जाने पर वे बिस्तर पर बैठे, दीये के उजाले में बैठे इधर-उधर की बातों में लगे रहे| कुछ देर बाद बाला साहब ने एक अखबार उठाया और उसे पढ़ने लगे| वह अखबार पढ़ने में तल्लीन थे| न जाने कहां से एक सांप आया और उनके अंगोछे पर बैठ गया| उस समय सांप को किसी ने नहीं देखा|
जब वह रेंगने लगा तो उसके रेंगने की आवाज सुनकर चपरासी के होश-हवास उड़ गये| वह बुरी तरह घबराकर 'सांप-सांप' कहता हुआ चीखने लगा| उसकी आवाज सुनकर बाला साहब की हालात ऐसी हो गयी कि काटो तो खून नहीं| शामा भी बौखला गया| वे बाबा को याद करने लगा|
फिर वहां उपस्थित सभी लोग संभल गये| जिसके जो हाथ लगा उसने वही उठाकर सांप का काम तमाम कर दिया| सब लोग बला टलने से बेफिक्र हो गये| मिरीकर को बाबा ने निकलते समय 'लम्बा बाबा' यानी सांप की भविष्यवाणी शिरडी में ही कर दी थी| इसलिए साथ में संकट टालने हेतु शामा को भेजा था| इस घटना के बाद मिरीकर की साईं बाबा के प्रति निष्ठा और भी दृढ़ हो गयी|