साईं बाबा बैठे हुए थे कि अचानक एक व्यक्ति ने उनके सामने आकर हाथ जोड़ते हुए कहा - "अब कुछ दिनों के लिए मुझे आपसे दूर रहना पड़ेगा|"
"कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूं| आशीर्वाद दीजिए मेरी यात्रा सफल हो|"
साईं बाबा ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा और बोले - "तुम यात्रा पर चले गए तो यह गांव सूना हो जाएगा| गांव वाले चाहे तुम्हारी कमी महसूस करें या न करें, लेकिन मुझे तुम्हारी कमी बहुत अखरेगी| कोई बात नहीं, जाओ| त्रिवेणी स्नान कर आओ| सुना है, जन्म-जन्मान्तर के पाप धुल जाते हैं|"
वह सुनकर हैरान रह गया| अभी तो उसकी पत्नी और घरवालों को ही यह बात पता थी कि वह प्रयागराज त्रिवेणी स्नान करने जा रहा है| फिर साईं बाबा को इस बात का कैसे पता चला ? उसने साईं बाबा के चरण पकड़ लिए और बोला - "आप तो अन्तर्यामी हैं| मुझे आशीर्वाद दीजिए कि आपकी मुझ पर कृपा सदा ऐसे ही बनी रहे|"
फिर उसने भावविह्वल होकर साईं बाबा के चरणों पर अपना मस्तक रख दिया| उसे ऐसा लगा जैसे साईं बाबा के चरणों से एक साथ गंगा, यमुना और सरस्वती प्रवाहित हो रही हों| वह आश्चर्य से बाबा के चरणों से प्रवाहित होती उन तीनों धाराओं को देखने लगा| उसे अपनी आँखों पर सहसा विश्वास नहीं हो रहा था| वह यह सब कुछ जो देख रहा है, वह सत्य है या एक सपना?
तभी उसने अनुभव किया, जैसे वह संगम में स्नान कर रहा है| यह सब अनुभव कर वह आश्चर्यचकित हो गया| दोनों हाथ जोड़कर बोला - "धन्य हों बाबा ! आप धन्य हों| आपके चरणों में बैठे ही बैठे मैंने त्रिवेणी स्नान कर लिया| अब मुझे प्रयागराज जाने की कोई आवश्यकता नहीं है|"
"तुमने त्रिवेणी स्नान यहीं बैठे-बैठे कर लिया ?" साईं बाबा मुस्करा रहे थे|
"हां बाबा !" उसने प्रसन्न स्वर में कहा - "मैं तो व्यर्थ में ही इधर-उधर भटक रहा था| मुझे क्या मालूम कि संसार के सारे तीर्थ इन चरणों में ही विद्यमान हैं|"
"नहीं, संसार के सारे तीर्थ ही नहीं स्वयं भगवान भी तुम्हारी भावनाओं में विराजमान हैं| केवल श्रद्धा, भक्ति और विश्वास की आवश्यकता है| माया-मोह से परे हटकर जब कोई व्यक्ति इन तीनों गुणों को अपना लेता है, सहज ही वह भगवान के दर्शन पा लेता है| यही ब्रह्म ज्ञान है|
मस्जिद में बैठे भक्तगण साईं बाबा की इस अद्भुत लीला को देखकर भाव-विभोर हो उठे| सबको इस बात पर बड़ा आश्चर्य हो रहा था| उसके व्यवहार पर सब चकित थे|
वह तेजी से झुका और साईं बाबा के चरणों से लिपट गया| उसकी आँखों से आंसुओं की धारा बह निकली थी|
वह श्रद्धा से गद्गद् हो गया|