शिरडी से कुछ दूरी पर रहाता गांव था| वहां खुशालचंद नाम का एक साहूकार रहता था| बाबा इससे भी तात्या जितना प्रेम किया करते थे| वह जाति से मारवाड़ी था| उसके चाचा चंद्रभान पर भी बाबा का बड़ा प्रेम था| उनसे मिलने के लिए बाबा कई बार उनके गांव खुद चले जाते थे|
बाबा कभी-कभी अकेले और कभी अपने भक्तों के साथ बैलगाड़ी में तो कभी तांगे में बैठकर रहाता चले जाते| जैसे ही बाबा गांव की सीमा पर पहुंचते, रहाता ग्रामवासी उनका अभूतपूर्व स्वागत करते और बड़ी धूमधाम से उन्हें गांव के अंदर ले जाते| वहां से खुशालचंद बाबा को घर ले जाते, आसन पर बैठाकर उत्तम भोजन कराते| फिर काफी समय तक वह बाबा से वार्तालाप करते| इस वार्तालाप के दौरान वहां उपस्थित सभी भक्तों को बहुत आनन्द आता| बाद में बाबा सबकी अपना आशीर्वाद देकर शिरडी लौट आते थे|
खुशालचंद भी अक्सर साईं बाबा से मिलने के लिए शिरडी आता था| एक समय जब वह बहुत दिनों तक शिरडी नहीं आया तो बाबा ने उसे बुलाने के लिए हरीसिंह दीक्षित को तांगे के साथ भेजा| जब दीक्षित ने उसे जानकारी दी कि बाबा ने उसे लाने के लिए तांगा देकर भेजा है तो यह सुनते ही उसकी आँखों में आँसू आ गये और वह तुरंत उसके साथ शिरडी आया|