अमरासवती जिले के रहनेवाले दादा साहब खापर्डे की पत्नी श्रीमती खापर्डे अपने छोटे पुत्र के साथ शिरडी में साईं बाबा के दर्शन करने आयी थीं| उन्हें वहां रहते हुए कई दिन हो गये थे| इस बीच एक दिन उनके पुत्र को तेज बुखार चढ़ गया| तभी आसपास के गांव में प्लेग भी फैल गया था| इससे श्रीमती खापर्डे अत्यन्त भयभीत हो उठीं - और कहीं उनके पुत्र को प्लेग तो नहीं हो गया| किसी अनिष्ट की आशंका से उनका समुचित अस्तित्व ही हिल गया| इन बातों को मन में विचारकर उन्होंने तुरंत ही अमरावती लौटने का मन बनाया|
संध्या के समय जब साईं बाबा वायु सेवन करने के लिए समाधि मंदिर के पास से होकर जा रहे थे, उसी समय श्रीमती खापर्डे बाबा को वहां पर मिलीं और उनसे घर लौटने की अनुमति मांगते हुए, आँखों में आँसू लिए हाथ जोड़कर कांपते हुए स्वर में बोलीं - "बाबा, मेरा प्रिय पुत्र प्लेग रोग से पीड़ित है, इसलिए मैं घर जाना चाहती हूं|"
तब बाबा ने श्रीमती खापर्डे से प्रेमपूर्वक कहा कि आकाश में बादल घिर आये हैं| बादल हटते ही आसपास पहले की तरफ साफ हो जायेगा| ऐसा कहते हुए बाबा ने अपनी कफनी कमर तक उठाकर वहां उपस्थित भक्तों को अपनी जांघों पर अंडे की आकार की चार गिल्टियां दिखाते हुए कहा कि देखो, मुझे अपने भक्तों का कितना कष्ट उठाना पड़ता है| उनके कष्ट मेरे ही कष्ट हैं| मैं उन्हें दु:खी नहीं देख सकता हूं| साईं बाबा की ऐसी विचित्र व असामान्य लीला देखकर लोगों का यह विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि सद्गुरु को अपने भक्तों के लिए कितने कष्ट उठाने पड़ते हैं|