बूटी का रोग छूमंतर

एक बार बापू साहब बूटी को अम्लपित्त का रोग हो गया| उन्होंने बहुत इलाज करवाया परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ| रोग की वजह से वह इतने कमजोर हो गये कि अब वे मस्जिद जाकर बाबा के दर्शन कर पाने में खुद को असमर्थ पाने लगे| यह बात बाबा को भी पता चल गयी|

एक दिन बाबा ने बूटी को अपने पास बुलवाया और पास में बैठाकर बोले - "सावधान ! अब तुम्हें कभी उल्टियां या दस्त हुई तो समझ लेना तुम्हारा सामना मुझसे है| यह ध्यान रखना|" बाबा का संकेत बूटी की बीमारी की तरह था| बाबा के मुख से निकले उन शब्दों का ऐसा चमत्कारिक प्रभाव हुआ कि बूटी साहब का रोग उसी समय खत्म हो गया और वे पूर्णतया स्वस्थ हो गये|

यही बूटी एक बार हैजे की बीमारी का शिकार हो गए| बीमारी के कारण उन्हें बहुत तेज प्यास लगने लगी| डॉक्टरों से इलाज कराने पर जब कोई लाभ होता दिखाई न दिया तो अंतत: वे पुन: बाबा की शरण में जा पहुंचे और रोग-मुक्ति की विनती की|

उनकी विनती सुन बाबा ने कहा - "मीठे दूध में अखरोट, बादाम, पिस्ते उबालकर उस काढ़े का सेवन करो| वैसे यह काढ़ा प्राणघातक है| परन्तु बाबा की आज्ञा थी, इसलिए उन्होंने काढ़ा बनाकर सेवन किया तो रोग का समूल नाश हो गया|"


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