एक समय साईं बाबा ने लगभग दो सप्ताह से खाना-पीना छोड़ दिया था| लोग उनसे कारण पूछते तो वह केवल अपनी दायें हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें फैलाकर आकाश की ओर देखने लगते थे| लोग उनके इस संकेत का अर्थ समझने की कोशिश करते लेकिन इसका अर्थ उनकी समझ में नहीं आता था|
बस कभी-कभी उनके कांपते होठों से इतना ही निकलता - "महाकाल का मुख अब खुल चुका है| सब कुछ उसके मुख में समा जायेगा| कोई भी नहीं बचेगा| एक-एक करके सब चले जायेंगे|"
साईं बाबा के मुख से निकलते इन शब्दों को सुनकर लोग मारे भय के बुरी तरह से कांप उठते| वे बाबा से पूछते, लेकिन वह मौन हो जाते| उनकी कांपती हुई अंगुली आकाश की ओर उठती और वह लंबी सांस लेकर फटी-फटी आँखों से आकाश की ओर बस देखते रह जाया करते थे| गांव का वातावरण सहमासहमा-सा रहने लगा था| प्रत्येक बृहस्पतिवार को साईं बाबा की शोभायात्रा बड़ी धूमधाम से निकलती थी, लेकिन न जाने क्यों लोगों के मन किसी अनिष्ट की आशंका से आशंकित हो उठे थे|
बाबा की इन बातों को सुनकर यदि किसी को सबसे ज्यादा खुशी हुई तो वह पंडितजी थे| वह इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि साईं बाबा जो कुछ भी कहते हैं, वह सच ही होता है|
उनकी भविष्यवाणी झूठी नहीं हो सकती| भविष्य में होने वाली घटनाओं को वे शायद पहले ही जान लेते थे| अकाल, बाढ़, महामारी ऐसी दैवी आपदाएं हैं, जो गांव-के गांव पूरी तरह से बर्बाद करके रख देती है|
इनका कोई इलाज नहीं है| गांव के सब लोग गांव छोड़कर चले जाते हैं| शायद ऐसा ही कोई संकट शिरडी में आने वाला है| पंडितजी यह सोच-सोचकर मन में बहुत खुश थे कि यदि महामारी फैली तो लोग उनके पास ही अपना इलाज कराने के लिए आयेंगे, जिससे उनको अच्छी-खासी कमाई होगी, जबकि सारा गांव अनिष्ठ की आशंका चिंताग्रस्त था|
वर्षा ऋतु समाप्त हो चुकी थी| बाढ़ आने की कोई संभावना न थी| अच्छी बारिश होने के कारण खेतों में फसलें भी अच्छी हुई थीं| अकाल पड़ने की भी संभावना नहीं थी| यदि कोई आपदा आ सकती थी, तो वह थी महामारी| यदि महामारी फैली तो पंडितजी का भाग्य खुल जाएगा| जब से साईं बाबा शिरडी में आए थे, पंडितजी की आमदनी तो खत्म-सी ही हो गयी थी| साईं बाबा की धूनी की भभूती असाध्य से असाध्य रोगों का समूल ही नाश कर देती थी| इसी वजह से पंडितजी के पास रोगियों ने आना बिल्कुल ही बंद-सा कर दिया था|
फिर मंदिर में भी पूजा करने वालों की संख्या भी दिन-प्रतिदिन कम होती चली जा रही थी| केवल पांच-सात ही लोग ही ऐसे बचे थे, जो पूजा करने के लिए सुबह-शाम मंदिर आया करते थे| इसके अलावा शाम के समय प्रसाद के लालच में कुछ बच्चे भी मंदिर में इकट्ठे हो जाया करते थे| इस तरह मंदिर से होने वाली आमदनी भी नाममात्र की ही रह गयी थी| पुरोहिताई का धंधा भी बस ले-देकर ही चल रहा था|
साईं बाबा के प्रवचनों को सुनकर लोगों में कथा सुनने की रुचि भी जाती रही| वर्षा भी समय पर होती थी| इसलिए समय पर वर्षा कराने के बहाने से प्रत्येक वर्ष होने वाला यज्ञ भी होना अब बंद हो गया था| भूत-प्रेत, ब्रह्मराक्षस तो जैसे बाबा के गांव में कदम रखते ही गांव से पलायन कर गये था| गांव में अब किसी भी तरह का उत्पात नहीं होता था| प्रत्येक घर में सुख-शांति बा बसेरा था ! आपस के लड़ाई-झगड़े भी अब होने बंद हो चुके थे| पंडितजी को जैसे कुछ काम ही नहीं मिल रहा था| वह सारे दिन अपने घर में बेकार ही पड़े रहते थे|
घर में पड़े-पड़े पंडितजी बहुत दु:खी हो गये थे| उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी होने लगी थी|
साईं बाबा बराबर चिंता में डूबे रहते थे| एकटक आकाश की ओर देखते रहते थे, किसी से कुछ भी न बोलते थे| तभी आस-पास के बीस कोस के इलाके में हैजे की महामारी फैलने की खबर से शिरडी गांव में कोहराम मच गया| हैजे की महामारी से लोग मरने लगे|
पहले कुछ उल्टियां होतीं, दस्त होते और लोग मौत के मुंह में समा जाते|जब तक लोग रोग को समझ पाते, रोगी बिना दवा-दारू के ही भगवान के पास पहुंच जाता था|
पंडितजी की सारी भाग-दौड़ व्यर्थ चली जाती थी|
आस-पास के गांवों में हैजा फैलने की खबर सुनकर शिरडी के लोग भी अत्यंत चिंतित हो उठे|
वह सब इकट्ठा होकर साईं बाबा के पास पहुंचे|
"बाबा...बाबा ! आस-पास के गांवों में हैजा तेजी से पैर पसारता जा रहा है| अब तो वह हमारे गांव की सीमा की ओर भी बढ़ता आ रहा है| कहीं ऐसा न हो कि हमारा गांव भी इस महामारी की लपेट में आ जाए|" शिष्यों ने डरते-डरते साईं बाबा से कहा|
साईं बाबा कई सप्ताह से मौन थे| उन्होंने खाना-पीना छोड़ रखा था| सारे शिष्य और वाईजा माँ उनसे मिन्नतें करके हार गये थे, लेकिन न तो बाबा ने खाना ही खाया और न ही किसी से कोई बातचीत ही की थी|
लोगों की इस पुकार को सुनकर साईं बाबा ने एक गहरी ठंडी सांस छोड़ी और फिर आकाश की ओर पूर्ववत् की भांति देखने लगे| मस्जिद में उपस्थित लोग भी उन लोगों के साथ साईं बाबा के चेहरे को देखने लगे कि शायद बाबा इस महामारी से बचने का कोई उपाय बतायेंगे|
साईं बाबा का चेहरा एकदम गंभीर पड़ गया| चिंता की लकीर उनके सलोने मुख पर स्पष्ट रूप से नजर आ रही थीं| ऐसा लगता था कि जैसे बाबा स्वयं किसी गहरी चिंता में हैं| कुछ कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं| अचानक साईं बाबा ने अपनी आँखें मूंद लीं और बोले - "तुम लोग कल सुबह आना| मैं सब बताऊंगा|" कहकर बाबा शांत हो गये| सब लोग बाबा की बात सुनकर चुपचाप उठकर अपने-अपने घरों को चले गए|
अगले दिन पौ फटते ही सब लोग द्वारिकामाई मस्जिद जा पहुंचे| देखा मस्जिद के दालान में बैठे हुए साईं बाबा चक्की में जौ पीस रहे थे और जौ का आटा चक्की के चोरों तरफ फैला हुआ था|
सब लोग चुपचाप खड़े साईं बाबा को जौ पिसते हुए देखते रहे| लेकिन साईं बाबा पूरी लगन के साथ जौ पीसे जा रहे थे| किसी की हिम्मत न हो रही थी कि वह उनसे कुछ पूछने का साहस जुटा सकें|
कुछ देर बाद एक भक्त से साहस जुटाया और आगे बढ़कर पूछा - "बाबा ! आप यह क्या कर रहे हैं ?"
"महामारी को भगाने की दवा बना रहा हूं|"
"यह दवा है ?"
बाबा ने कहा - "हां, यह दवा ही है| इस आटे को एक कपड़े में भरकर ले जाओ और गांव की सीमा में चारों ओर जहां-जहां तक महामारी फैली हो इस दवा को छिड़क आओ| परमात्मा ने चाहा तो इस गांव की सीमा में हैजे की महामारी प्रवेश न कर पायेगी|"
तब शिष्यों ने एक झोली में सारा आटा भर लिया और साईं बाबा की जय-जयकार करते हुए गांव की सीमा की ओर चल पड़े| दोपहर तक गांव के चारों ओर सीमा पर आटे से लकीर-सी बना दी गयी| इस प्रकार साईं बाबा द्वारा पीसे गये आटे से सारा गांव बांध दिया गया|
साईं बाबा की इस बात पर पंडितजी को विश्वास न हो पा रहा था कि हैजे जैसी महामारी का प्रकोप इस तरह से रुक सकता है| हैजे का प्रकोप आस-पास के गांवों में बड़ी तेजी के साथ बढ़ता जा रहा था| दस-पांच आदमी रोजाना मौत के मुंह के समाते चले जा रहे थे| चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था|साईं बाबा की इस अनोखी दवा का समाचार आस-पास के गांवों तक भी पहुंच गया| लोग दवा मांगने के लिए द्वारिकामाई मस्जिद आने लगे|
"बाबा, हमारे गांव में भी हैजा फैला है| हमारे ऊपर दया करके हमें भी दवा देने की कृपा करें|"
और भी लोग साईं बाबा के पास पहुंचकर बड़े ही दयनीय स्वर में कहने लगे - "हमें भी दवा दे दो बाबा ! हम पर भी अपनी दया करो| हमारा तो सारा गांव श्मशान बन गया है|"
"अरे, तुम लोग इतना परेशान क्यों हो रहे हो ? जितनी दवा है, आपस में बांटकर ले जाओ और गांव के प्रत्येक घर में छिड़क दो| जो बीमार होगा ठीक हो जाएगा और यह महामारी तुम्हारे गांव से भी भाग जायेगी|" बाबा ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा|
आस-पास के गांवों के लोग बाकी बची हुई दवा को बांटकर ले गए| साईं बाबा की चक्की की घर्र-घर्र की आवाज फिर मस्जिद के गुम्बदों और मीनारों को गुंजायमान करने लगी| दूर-दूर के गांवों में पहुंच जाती, वहां हैजे की बीमारी का नामोनिशान ही मिट जाता| बीमार इस तरह से उठकर खड़े हो जाते, मानो वह बीमार पड़े ही नहीं हों| दवा एकदम रामबाण के समान अपना काम कर रही थी| महामारी गधे के सींग की तरह गायब होती जा रही थी|
साईं बाबा की दवा की कृपा से सैंकड़ों घर उजड़ने से बच गये| हर तरफ बस साईं बाबा की जय-जयकार के स्वर ही सुनाई पड़ रहे थे|
साईं बाबा की कृपा से सबसे अधिक नुकसान यदि किसी का हुआ तो वह थे पंडितजी ! उनको कोई भी नहीं पूछ रहा था| महामारी फैली पर उनके दवाखाने में एक भी आदमी दवा लेने तक न आया| पंडितजी साईं बाबा से बड़ी बुरी तरह से जले-भुने बैठे थे| साईं बाबा उन्हें गांव में ऐसे खटक रहे थे जैसे आँख में तिनका|
पंडितजी दिन-रात इसी चिंता में घुले जा रहे थे कि किस तरह से साईं बाबा को नीचा दिखाकर, यहां शिरडी से निकाल भगाया जाये| वह अपने मन में बराबर उनके लिए नयी-नयी योजनाएं बना रहे थे, पर उनकी सारी योजनाएं अमल में लाने पर असफल होकर रह जाती थीं|