साईं बाबा अंतर्यामी थे और वे अपने भक्तों के मन की बात पहले ही जान जाया करते थे| साईं बाबा के अनन्य भक्त नाना साहब चाँदोरकर नंदूरवार के मामलातदार थे| उनका तबादला पंढरपुर में तहसीलदार के पद पर हो गया था| पंढरपुर को इस धरती पर स्वर्ग जितना महत्व दिया जाता था| नाना साहब को शीघ्र ही वहां जाकर कार्यभार संभालने का आदेश मिला था| पंढरपुर जाने से पहले उन्होंने अपने पंढरपुर (शिरडी) जाकर साईं बाबा के दर्शन करने की सोची और वे बिना किसी को सूचना दिये शीघ्र ही शिरडी के लिए चल दिए|
इधर शिरडी में भी नाना साहब के आने के बारे में भी किसी को कोई जानकारी नहीं थी| लेकिन साईं बाबा तो अंतर्यामी, सर्वव्यापी थे| उनसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं था| अभी नाना साहब शिरडी से कुछ पहले नीम गांव के पास पहुंचे ही थे कि मस्जिद में बैठे साईं बाबा अपने भक्तों के साथ बैठे बातचीत कर रहे थे कि अचानक बातचीत के बीच में साईं बाबा बोले - "चलो सारे मिलकर भजन गाते हैं|" साईं बाबा भजन गाने लगे और म्हालसापति, अप्पाशिंदे, काशीराम आदि भक्त उनका साथ देने लगे| पहले भजन साईं बाबा गाते, फिर भक्त उसे दोहराते| कुछ देर बाद जब नाना साहब मस्जिद में बाबा के दर्शन करने आये, तब भजन जारी था| भजन सुनकर उन्होंने समझा कि उनका पंढरपुर के तबादले के बारे में बाबा ने जान लिया है| उन्होंने बाबा के चरणों में नमस्कार कर बाबा से पंढरपुर जाने की अनुमति मांगी| तब बाबा ने उन्हें आशीष और ऊदी प्रसाद में दी| फिर नाना साहब सपरिवार पंढरपुर के लिए रवाना हो गये|