साईं बाबा ईशावतार थे| सिद्धियां उनके आगे हाथ जोड़कर खड़ी रहती थीं| पर बाबा को इन बातों से कोई मतलब नहीं था| बाबा सदैव अपनी फकीरी में अलमस्त रहते थे| बाबा, जिनकी एक ही नजर में दरिद्र को बादशाहत देने की शक्ति थी, फिर भी वे भिक्षा मांगकर स्वयं का पेट भरते थे| भिक्षा मांगते समय बाबा कहा करते थे - "ओ माई ! एक रोटी का टुकड़ा मुझे मिले|" बाबा सदैव हाथ फैलाकर भिक्षा मांगा करते थे| बाबा के एक हाथ में टमरेल और दूसरे हाथ में झोली हुआ करती थी| बाबा रोजाना पांच घरों से भिक्षा मांगते थे तथा कभी-कभी कुछ अन्य घरों में भी फेली लगाया करते थे| बाबा रोटी, चावल झोली में लेते और तरल पदार्थ - "सब्जी, छाछ, दाल, दही, दूध आदि टमरेल (टिन के बने हुए पात्र) में लेते थे| इस तरह से वह सब एक हो जाता| साधु-संत कभी भी जीभ के स्वाद के लिए भोजन नहीं करते| वे समस्त सामग्री को एक जगह मिलाकर उसका सेवन करते हैं और सदा संतुष्ट रहते हैं| बाबा ने भी कभी जीभ के स्वाद के लिए भोजन नहीं किया|
साईं बाबा का भिक्षा मांगने का कोई समय निश्चित नहीं था| कभी-कभी सुबह ही 8-9 बजे भिक्षा मांगने निकल जाते थे| इस तरह गांव में घूमने के बाद मस्जिद लौट आते| यह भी उनका नित्य क्रम नहीं था| यदि मन हुआ तो जाते और जहां चाहते वहां मांगते, जो भी मिलता, वह ले आते| उसी में खुश रहते|
मस्जिद में लौटकर आने के बाद भिक्षा में उन्हें जो कुछ भी मिलता था, वह सब एक कुंडी में डाल देते| उस कुंडी में से मस्जिद की साफ़-सफाई करने वाला, कौवे, चिड़िया, कुत्ते, बिल्ली आदि आकर अपना हिस्सा ले जाता| यदि कोई गरीब या भिखारी आया तो उसे भी उसमें से प्रसाद अवश्य मिलता| बाबा सब जीवों के प्रति समान रूप से प्रेमभाव रखते थे, इसलिए बाबा ने कभी किसी को मना नहीं किया| बाबा उस भिक्षा पर कभी अपना हक नहीं मानते थे|