साठे मुम्बई के प्रसिद्ध व्यापरी थे| एक बार उन्हें अपने व्यापार में बहुत हानि उठानी पड़ी, जिससे वे बहुत उदास-निराश हो गये| उनके मन में घर-बार छोड़कर एकांतवास करने के विचार पैदा होने लगे| साठे की ऐसी स्थिति देखकर उनके एक मित्र ने उनसे कहा - "साठे ! तुम शिरडी चले जाओ और वहां पर कुछ दिन साईं बाबा की संगत में रहो| सत्संग में रहकर व्यक्ति निश्चित हो जाता है और साईं बाबा तो वैसी भी साक्षात् ईशावतार हैं| आज तक बाबा के दरबार से कोई भी निराश होकर नहीं लौटा है| इसलिए लोग बड़ी दूर-दूर से उनके दर्शन करने के लिये शिरडी जाते हैं| यदि मेरी बात मानो तो तुम भी एक बार शिरडी जाकर देख लो| यदि बाबा चाहेंगे तो तुम्हारी भी झोली भर देंगे|"
मित्र की बातों का साठे पर एकदम सीधा प्रभाव पड़ा| वे शिरडी गये| शिरडी पहुंचकर जब उन्होंने साईं बाबा के दर्शन किये तो मन को बहुत शांति मिली| उन्हें एक नया हौसला मिला| वे सोचने लगे कि पिछले जन्म के शुभ कर्मों के कारण ही उन्हें साईं बाबा का सान्निध्य प्राप्त हुआ है साठे ने शिरडी में रहकर 'गुरुचरित्र' ग्रंथ का पारायण शुरू कर दिया| पारायण की आखिरी रात में उन्हें स्वप्न दिखाई पड़ा कि बाबा स्वयं गुरुचरित्र ग्रंथ हाथ में लिए हुए उस पर प्रवचन कर रहे हैं और वह सामने बैठकर सुन रहे हैं| नींद खुलने पर उन्हें प्रसन्नता हुई और स्वप्न को याद कर उनका गला भर आया|
सुबह होने पर साठे काका साहब दीक्षित से मिले और अपना रात्रि का स्वप्न बताकर उसके बारे में पूछा| तब काका असमर्थता जताते हुए, उनके साथ जाकर बाबा से मिले| पूछने पर बाबा ने बताया - "साठे, गुरुचरित्र पढ़ने से मन शुद्ध होता है| विचार पवित्र बनते हैं| अब तुम मेरी आज्ञा से एक सप्ताह का पारायण और करो तो तुम्हारा कल्याण होगा| ईश्वर प्रसन्न होकर तुम्हें भवबंधन से मुक्ति देंगे|" साठे की समस्या का समाधान हो गया और बाबा की अनुमति लेकर वे अपने ठहरने के स्थान पर लौट आये|