बुद्ध और महावीर को नये शब्द खोजने पड़े। फिर बुद्ध और महावीर को वेद को इनकार करना पड़ा क्योंकि वेद के साथ जो पंडित खड़े थे उनको इनकार करने का और कोई उपाय नहीं था। इस बात को समझना। नहीं तो बुद्ध और महावीर वेद को इनकार करें? बुद्ध और महावीर साक्षी बनते वेद के, गवाह बनते वेद के। वे फिर वैसे ही पुरुष थे, जैसे वेद के ऋषि थे। मगर उनको विरोध करना पड़ा वेद का, क्योंकि अब एक ही उपाय था। वेद की आत्मा को पंडितों से छुड़ाने का एक ही उपाय था, कि वेद के शब्दों का विरोध किया जाए, क्योंकि उसके तो मालिक तैयार हो गए थे। उन्होंने तो पूंजी बना ली थी। तो जैन और बौद्ध धर्म पैदा हुए, जो वेद-विरोधी धर्म हैं। और आश्चर्य की बात यह है कि उनमें जरा भी वेद-विरोध नहीं है। हो ही नहीं सकता। दो सत्य कभी एक-दूसरे के विरोध में नहीं होते, क्योंकि दो सत्य ही नहीं होते; सत्य की दो अभिव्यक्तियां मात्र होती हैं। सत्य तो एक ही है।
तुम्हें यह जान कर हैरानी होगी कि महावीर तो क्षत्रिय थे, लेकिन उनके जो ग्यारह गणधर हैं, वे सब ब्राह्मण हैं। जिन्होंने महावीर के शब्द को इकट्ठा किया, वे सब ब्राह्मण और पंडित। बुद्ध तो क्षत्रिय थे, लेकिन बुद्ध के जो बड़े शिष्य हैं, जिन्होंने बुद्ध का शास्त्र निर्मित किया, वे सब ब्राह्मण हैं। और ब्राह्मण से मेरा मतलब कुछ ब्राह्मण कुल में पैदा होने वाले आदमी से ही नहीं होता। जिसकी भी पकड़ शब्दों पर है वह ब्राह्मण। लेकिन फिर वही जाल खड़ा हो गया।
फिर आए कबीर, मीरा, दादू, नानक। फिर शब्द को मुक्त किया। फिर विरोध करना पड़ा उन्हें। और ऐसा निरंतर होगा।
तो मैं जब पुराने शब्दों का कभी विरोध करता हूं तो इसलिए ताकि पुराने शब्दों में पड़ी हुई आत्मा को मुक्त कर लूं। शब्द का ही विरोध है; आत्मा को बाहर निकाल लेना है। जब तुम समझोगे मेरी बात तो तुम्हें यह बात भी समझ में आएगी ही, निश्चित समझ में आएगी कि जिन्होंने भी जाना है, मैं उनकी ही बात कह रहा हूं। लेकिन संदर्भ नया है; भाषा नई है; उपाय नया है। लोग नये हैं। परिस्थिति नई है। काल नया है। सब बदल गया है।
जब सब बदल गया तो पुराने शब्द काम के नहीं रह गए;वे संदर्भ के बाहर पड़ जाते हैं।
पांच हजार साल पहले किसी ने कुछ बात कही थी। वह निश्चित ही पांच हजार साल पुरानी भाषा में आबद्ध है। अब न तो तुम बैलगाड़ी में चलते। अब तुम जेट हवाई जहाज में चलते हो। तुम्हारी भाषा जेट हवाई जहाज की भाषा है;बैलगाड़ी की भाषा नहीं है। लेकिन तुम्हारा सत्य अभी भी बैलगाड़ी की भाषा में आबद्ध है। उसे मुक्त करना होगा। तुम्हारे सत्य को भी जेट की यात्रा करानी होगी। संदर्भ बदलने होंगे।
सत्य को हमेशा नये शब्द का आवरण चाहिए; जैसे पुराने वस्त्र जीर्ण-शीर्ण हो जाते हैं, फिर हम उन्हें बदल देते हैं; नये वस्त्र पहन लेते हैं। तुम सत्य को पुराने ही वस्त्र पहनाए रखोगे सदा-सदा?
वेद ने संस्कृत के शब्द दिए सत्य को, बुद्ध ने पाली के शब्द दिए, मीरा ने हिंदी के शब्द दिए। भाषा बदल गई, ढंग बदल गया--क्योंकि लोग बदल गए थे। और अगर तुमने जिद्द की, कि तुम पुराने को पकड़ कर वैसे ही चलोगे जैसा पुराना था, तो तुम अक्सर पाओगे कि तुम समसामयिक नहीं हो। और अक्सर तुम झंझटों में पड़ोगे।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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