राहू अर्थात एक छाया और छाया एक नक़ल है और अन्य दूसरे ग्रहों की नक़ल करता है।उसका अपना कुछ नहीं है सिवा अंधकार के । नक़ल में तो माहिर है मगर नक़ल और असल में फर्क तो पड़ता ही है । इसका नक़ल लंबे समय तक चल नहीं पाता है इसलिए जब यह कुछ अच्छा कर रहा होता है तो बुरा होने की आशंका भी पीछे छुपी रहती है इसका फल देने का तरीका बड़ा विचित्र है यह घटना को अंजाम देने में समय नहीं लगाता है अचानक से होने वाली घटनाओं के पीछे अक्सर इसका हाथ होता है यह तीव्र गति वाला ग्रह है। यह असुर होने के नाते देवत्व पूजा पाठ में स्वाभाविक रुचि वाला ग्रह नहीं है। इस ग्रह में सूर्य के समान राजनीति, मंगल के समान शक्ति, बुध-गुरु के समान ज्ञान-बुद्धि, शुक्र के समान वैभव प्रिय तथा महाभोगि, शनि के समान वैराग्य तथा नाशवान गुण है मगर चन्द्रमा के दया स्नेह ममता आदि गुण नहीं है।असुर जाती का होने की बजह से नशा मद तथा पीने-खाने में परहेज नहीं करता है। इसकी अपनी कोई राशि नहीं है मिथुन में उच्च मतान्तर से वृष में तथा कुम्भ में मूलत्रिकोणी आदि आदि तमाम मत हैं नैसर्गिक रूप से शनि समान है। यह परंपरा से हटकर चलने वाला ग्रह है यह आस्था तथा भावनाओं व विश्वास वाला ग्रह नहीं है इसे किसी में आस्था नहीं है यह जो देखता है उसी पर विश्वास करता है अगर किसी कुंडली में लग्न तथा बुद्धि स्थान तथा कारक पर इसका पूर्ण असर हो तो ऐसा व्यक्ति तीव्र बुद्धि वाला कभी किसी के द्वारा ठगा नहीं जाता क्योंकि यह अपनी पूर्ण बुद्धि का प्रयोग करता है नाकि भावनाओं का। और ठगे जाने के लिए भावना प्रधान होना जरूरी है। यह पंचम संतान भाव में खास करके प्रथम पुरुष संतान के लिए नुकसान दायक रहता है। राहू शंकालू ग्रह है शंका करता है और सटीक शंका करता है पूर्वाभास कराता है। मगर अति चातुर्यता के कारण अपने कामों में कुछ न कुछ गड़बड़ी कर देता है लेकिन राहू मैं गलत हूँ इसको स्वीकार नहीं करता वरन उलटे सामने वाले को ही नासमझ समझता है। यह अंधकार होते हुए भी छणिक चमक धमक भी कर देता है यह कब कहाँ क्या करदे कोई पता नहीं है। खून खराबा मार धाड़ काट शाहस दिखाए और कब भाग जाए ठिकाना नहीं है ये सारी स्थितियां अच्छी या बुरी तब होती हैं जब जैसे जैसे ग्रहों का इस पर प्रभाव पड़ता है अलग अलग कुंडली के हिसाब से यह शरीर तथा सम्बन्ध के मामले में बेकार है जिस पारिवारिक सम्बन्ध के भाव में बैठता है उसे ख़राब करता है यह चोट खोट कटे फटे के निशान देता है उस उस अंग में जिस जिस अंग में प्रभाव करता है वहां वहां इसके दशा काल में सूर्य का अंतर पिता से वियोग या कष्ट देता है किसी किसी को भूत प्रेत पीड़ा पितृदोष आदि का कारक बनता है ये उपरोक्त अलग बातें अलग अलग स्थितियों में बनती है सब संभव नहीं है उल्लेख करना हर ग्रह की कुछ अच्छाई और बुराई होती है और हर कुंडली में अलग अलग तरीके से विवाद के लिए कोई स्थान नहीं है l
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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