इस जगत में स्वयं के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं पाया जा सकता है। जो उसे खोजते हैं, वे पा लेते हैं और जो उससे अन्यथा कुछ खोजते हैं, वे अंतत: असफलता और विषाद को ही उपलब्ध होते हैं।
वासनाओं के पीछे छोड़ने वाले लोग नष्ट हुए हैं- नष्ट होते हैं- और नष्ट होंगे। वह मार्ग आत्म-विनाश का है।
एक छोटे से घुटने के बल चलने वाले बालक ने एक दिन सूर्य के प्रकाश में खेलते हुए अपनी परछाई देखी। उसे एक अद्भुत वस्तु जान पड़ी। क्योंकि, वह हिलता तो उसकी वह छाया भी हिलने लगती थी।
वह छाया का सिर पकड़ने का उद्योग करने लगा। किंतु, जैसे ही वह छाया का सिर पकड़ने के लिए बढ़ता कि वह दूर हो जाता। वह कितना ही बढ़ता गया, लेकिन पाया कि सिर तो सदा उतना ही दूर है। उसके और छाया के बीच फासला कम नहीं होता था। थक कर और असफलता से वह रोने लगा।
द्वार पर भिक्षा को आए हुए एक भिक्षु ने यह देखा। उसने पास आकर बालक का हाथ उसके सिर पर रख दिया। बालक रोता था, हंसने लगा; इस भांति छाया का मस्तक भी उसने पकड़ लिया था।
आत्मा पर हाथ रखना जरूरी है। जो छाया को पकड़ने में लगते हैं, वे उसे कभी भी नहीं पकड़ पाते। काया छाया है। उसके पीछे जो चलता है, वह एक दिन असफलता से रोता है।
वासना दुष्पूर है। उसका कितना ही अनुगमन करो, वह उतनी ही दुष्पूर बनी रहती है। उससे मुक्ति तो तब होती है, जब कोई पीछे देखता है और स्वयं में प्रतिष्ठित हो जाता है।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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