1. आज्ञा चक्र पर èयान कर उसको जागृत किया जाए।
2. मन्त्रा-जप विशेष रूप से गायत्री का जप करना चाहिए।
3. राष्ट्र-प्रेम, ईश्वर-प्रेम, विराट-प्रेम (Universal Love) का विकास किया जाए।
4. ऋणात्मक विचारों से नहीं उलझना चाहिए।
5. वीर भाव का विकास करना चाहिए
6. स्वार्थ से परमार्थ की ओर मुड़ते जाना चाहिए।
7. लोक कल्याण के लिए अधिकाधिक समर्पित होना चाहिए।
8. जीवन को अधिकाधिक व्यस्त रखना चाहिए, एकान्त में कम रहना चाहिए।
9. क्षमाशीलता का विकास करना चाहिए।
10. कार्यों को तीव्र गति से सम्पादित करना चाहिए। सुस्ती से, आराम से काम नहीं करने चाहिएं।
11. र्इश्वर पर विश्वास अधिक से अधिक जमाना चाहिए। जो ईश्वर की शरण में गया जिसने ईश्वर को अपने जीवन का समर्पण किया उसका अहित नहीं हो सकता, यह बात दृढ़ता से स्वीकार कर लेनी चाहिए।
यह लेख पुस्तक 'सनातन धर्म का प्रसाद' से लिया गया है