सायंकाल का समय था | सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे | तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई
और अपना अपना मटका भरकर बतयाने बैठ गई |
इस पर पहली ओरत बोली अरे ! भगवान मेरे जैसा लड़का सबको दे |
उसका कंठ इतना सुरीला हें कि सब उसकी आवाज सुनकर मुग्ध हो जाते हें |
इसपर दूसरी ओरत बोली कि मेरा लड़का इतना बलवान हें कि सब उसे आज के युग का भीम कहते हें |
इस पर तीसरी ओरत कहाँ चुप रहती वह बोली अरे !
मेरा लड़का एक बार जो पढ़ लेता हें वह उसको उसी समय कंठस्थ हो जाता हें |
यह सब बात सुनकर चोथी ओरत कुछ नहीं बोली
तो इतने में दूसरी ओरत ने
कहाँ “ अरे ! बहन आपका भी तो एक लड़का हें ना आप उसके बारे में कुछ
नहीं बोलना चाहती हो” |
इस पर से उसने कहाँ मै क्या कहू वह ना तो बलवान हें और ना ही अच्छा गाता हें |
यह सुनकर चारो स्त्रियों ने
मटके उठाए और अपने गाव कि और चल दी |
तभी कानो में कुछ सुरीला सा स्वर सुनाई दिया | पहली स्त्री ने कहाँ “देखा ! मेरा पुत्र आ रहा हें | वह कितना सुरीला गान गा रहा हें |” पर उसने अपनी माँ को नही देखा और उनके सामने से निकल गया |
अब दूर जाने पर एक
बलवान लड़का वहाँ से गुजरा उस पर दूसरी ओरत ने कहाँ | “देखो ! मेरा बलिष्ट पुत्र आ रहा हें |” पर उसने भी अपनी माँ को नही देखा और सामने से निकल गया |
तभी दूर जाकर मंत्रो कि ध्वनि उनके कानो में पड़ी तभी तीसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बुद्धिमान पुत्र आ रहा हें |” पर वह भी श्लोक कहते हुए वहाँ से उन दोनों कि भाति निकल गया |
तभी वहाँ से एक और लड़का निकला वह उस चोथी स्त्री का पूत्र
था |
वह अपनी माता के पास आया और माता के सर पर से पानी का घड़ा ले लिया और गाव कि और गाव कि और निकल पढ़ा |
यह देख तीनों स्त्रीयां चकित रह गई | मानो उनको साप सुंघ गया हो | वे तीनों उसको आश्चर्य से देखने लगी तभी वहाँ पर बैठी एक वृद्ध महिला ने कहाँ “देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”
“ सबसे पहला और सबसे बड़ा ज्ञान संस्कार का होता हें जो किसे और से नहीं बल्कि स्वयं हमारे माता-पिता से प्राप्त होता हें | फिर भले ही हमारे माता-पिता शिक्षित हो या ना हो यह ज्ञान उनके अलावा दुनिया का कोई भी व्यक्ति नहीं दे सकता हें