बहुत पुरानी बात है। एक गाँव में युधिष्ठिर नाम का एक कुम्हार रहता था। उसे शराब पीने की बहुत बुरी लत थी। एक दिन शराब के नशे में लडखड़ाकर वह एक टूटे बर्तन पर गिर पड़ा। टूटे हुए बर्तन का तीखा कोना उसके माथे में जा घुसा और भलभलाकर खून बहने लगा। लेकिन कुम्हार ने घाव की कोई परवाह नहीं की और जिसका घाव बिगड़ गया। कुछ समय बाद घाव तो भर गया लेकिन माथे पर एक बड़ा निशान पड़ गया।
कुछ समय बाद इलाके में अकाल पड़ गया कुम्हार का काम भी ठप पड़ गया। अतः वह रोजगार की तलाश में दूसरे देश की ओर चल दिया। वहाँ पहुंचकर उसने किसी प्रकार वहां के राजा के पास नौकरी पा ली।
एक बार जब राजा ने उसके माथे पर पड़ा निशान देखा तो उसने सोचा कि वह बहुत बहादुर होगा। शायद शत्रु सेना के किसी सिपाही के साथ युद्ध करते समय इसके माथे पर घाव लगा होगा। अतः राजा ने उसे अपने चुने हुए सेनापतियों के साथ नियुक्त कर दिया।
एक बार जब पड़ोसी देश के साथ युद्ध के आसार बनने लगे तो राजा ने अपने सेनापतियों का उत्साह बढ़ाने के लिए उन्हें सम्मानित किया।
कुछ समय बाद उसने कुम्हार को अपनी सेना का सर्वोच्च सेनापति बनाने का निर्णय लिया। उसने कुम्हार से पूछा-‘‘वीर युवक ! तुम्हारा नाम क्या है ? तुम्हारे माथे पर यह निशान कैसे पड़ा ? उस युद्ध का क्या नाम है था, जिसमें तुमने भाग लिया था ?’’
‘‘महाराज !’’ कुम्हार बोला-‘‘पेशे से मैं कुम्हार हूं। एक बार मैं शराब पीकर टूटे हुए कांच पर गिर पड़ा था। कांच मेरे माथे में घुस गया था और निशान उसी घाव का है, जो कांच घुसने से बना था।’’
यह सुनकर राजा आग बबूला हो उठा। उसने उस कुम्हार को सेना तथा देश से बाहर निकालने का आदेश दे दिया।
राजा के पैर पकड़कर कुम्हार बहुत गिड़गिड़ाया। अनेक दलीलें दीं कि वह उसे अपनी सेना में बना रहने दे। सेना में रहकर युद्ध के समय उसे जौहर दिखाने का मौका दे, लेकिन राजा ने उसकी एक न सुनी और उसे देश से बाहर कर दिया।
अब कुम्हार बिचारा सोच रहा था कि क्या सच बोलने का अंजाम ऐसा भी हो सकता है ?