प्राचीनकाल में प्रभासपाट्न नाम से प्रसिद्ध सोमनाथ मन्दिर से लगभग पाँच किलोमीटर दूर वेरावल में पवित्र भालका तीर्थ स्थल है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का बड़ा महत्त्व है।
कथाओं के अनुसार मद्यपान से चूर यादवों का परस्पर कलह में संहार हुआ। इससे खिन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने भालका तीर्थ में पीपल के पेड़ के नीचे अपना बायां पैर दाहिने पैर पर रखकर योग मुद्रा में बैठे थे। उसी समय जरा नामक व्याध (शिकारी) ने भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमल को मृग का मुख समझकर तीर मारा।
शिकारी का बाण भगवान श्रीकृष्ण के बाएं पांव के तलवे में लगा। जब व्याध अपने शिकार के समीप पहुंचा, उसने देखा कि उसका शिकार मृग नहीं, बल्कि श्री कृष्ण हैं।शिकारी का यह तीर भगवान श्रीकृष्ण के बाएं पांव के तलवे में लगा। जब व्याध अपने शिकार के समीप पहुंचा, उसने देखा कि उसका शिकार मृग नहीं, बल्कि श्री कृष्ण हैं।
व्याध भयभीत होकर अपने अपराध की क्षमा मांगने लगा। तब भगवान श्री कृष्ण ने शिकारी को आश्वासन दिया। जो कुछ हुआ है वह मेरी इच्छा से ही हुआ है।
ऐसा कहकर व्याघ को क्षमा कर दिया और अपनी कान्ती से वसुन्धरा को व्याप्त करके निजधाम प्रस्थान कर गए। यहां व्याध ने भगवान श्री कृष्ण जी को भल्ल (बाण) मारा इसीलिए यह स्थान भल्ल (भलका) तीर्थ कहा जाता है।श्रीकृष्णजी के नश्वर देह का अग्नि संस्कार समुद्र के त्रिवेणी संगम जहां तीन नदियां हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है वहां पर हुआ। भालका मन्दिर का जीणोर्द्धार सोमनाथ ट्रस्ट ने करवाया और 1967 में भारत के उपप्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने यहां मूर्ति की स्थापना की।
धार्मिक दृष्टि से इस मंदिर का जितना महत्व है उस लिहाज से यह मंदिर भक्तों के बीच अधिक प्रसिद्घ नहीं हो पाया। इसके पीछे कुछ ऐसे कारण हैं जो मंदिर की प्रसिद्घि में बाधक बने हुए हैं। वास्तुशास्त्री कुलदीप सालूजा बताते हैं कि मंदिर की प्रसिद्घि में सबसे बड़े बाधक हैंवास्तुशास्त्री के अनुसार भालका तीर्थ परिसर की दक्षिण और पश्चिम दिशा में सड़क है और सड़क के घुमाव के कारण मन्दिर परिसर के एक ओर पश्चिम दिशा के साथ मिलकर वाव्यय कोण की ओर बढ़ाव लिए है तो दूसरी ओर दक्षिण दिशा के साथ मिलकर दक्षिण आग्नेय में बढ़ाव लिए हुए है।
इस प्रकार नैऋत्य कोण ninety डिग्री से ज्यादा का हो गया है। इसके साथ ही सड़क के किनारे परिसर की दक्षिण और पश्चिम दिशा में नाली भी है जिस कारण यह दिशाएं व कोण भी नीचे हो रहे है। परिसर के अन्दर ईशान कोण में प्रगट महादेव मन्दिर है जिसके आगे एक चबूतरा है।
यह मन्दिर और चबूतरा लगभग a pair of फीट ऊंचा बना हुआ है इस कारण भालका तीर्थ परिसर का ईशान कोण ऊंचा हो गया है। मन्दिर परिसर के वायव्य कोण में सुलभ शौचालय बना है जिसके कारण उत्तर वायव्य में ऊंचाई एवं बढ़ाव आ गया है और शौचालय
के कारण परिसर का उत्तर वायव्य ढंक भी गया है। इन वास्तु दोषों को दूर किया जाए तो यह स्थान प्रसिद्घ और भक्तों की आस्था का प्रमुख ।
कथाओं के अनुसार मद्यपान से चूर यादवों का परस्पर कलह में संहार हुआ। इससे खिन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने भालका तीर्थ में पीपल के पेड़ के नीचे अपना बायां पैर दाहिने पैर पर रखकर योग मुद्रा में बैठे थे। उसी समय जरा नामक व्याध (शिकारी) ने भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमल को मृग का मुख समझकर तीर मारा।
शिकारी का बाण भगवान श्रीकृष्ण के बाएं पांव के तलवे में लगा। जब व्याध अपने शिकार के समीप पहुंचा, उसने देखा कि उसका शिकार मृग नहीं, बल्कि श्री कृष्ण हैं।शिकारी का यह तीर भगवान श्रीकृष्ण के बाएं पांव के तलवे में लगा। जब व्याध अपने शिकार के समीप पहुंचा, उसने देखा कि उसका शिकार मृग नहीं, बल्कि श्री कृष्ण हैं।
व्याध भयभीत होकर अपने अपराध की क्षमा मांगने लगा। तब भगवान श्री कृष्ण ने शिकारी को आश्वासन दिया। जो कुछ हुआ है वह मेरी इच्छा से ही हुआ है।
ऐसा कहकर व्याघ को क्षमा कर दिया और अपनी कान्ती से वसुन्धरा को व्याप्त करके निजधाम प्रस्थान कर गए। यहां व्याध ने भगवान श्री कृष्ण जी को भल्ल (बाण) मारा इसीलिए यह स्थान भल्ल (भलका) तीर्थ कहा जाता है।श्रीकृष्णजी के नश्वर देह का अग्नि संस्कार समुद्र के त्रिवेणी संगम जहां तीन नदियां हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है वहां पर हुआ। भालका मन्दिर का जीणोर्द्धार सोमनाथ ट्रस्ट ने करवाया और 1967 में भारत के उपप्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने यहां मूर्ति की स्थापना की।
धार्मिक दृष्टि से इस मंदिर का जितना महत्व है उस लिहाज से यह मंदिर भक्तों के बीच अधिक प्रसिद्घ नहीं हो पाया। इसके पीछे कुछ ऐसे कारण हैं जो मंदिर की प्रसिद्घि में बाधक बने हुए हैं। वास्तुशास्त्री कुलदीप सालूजा बताते हैं कि मंदिर की प्रसिद्घि में सबसे बड़े बाधक हैंवास्तुशास्त्री के अनुसार भालका तीर्थ परिसर की दक्षिण और पश्चिम दिशा में सड़क है और सड़क के घुमाव के कारण मन्दिर परिसर के एक ओर पश्चिम दिशा के साथ मिलकर वाव्यय कोण की ओर बढ़ाव लिए है तो दूसरी ओर दक्षिण दिशा के साथ मिलकर दक्षिण आग्नेय में बढ़ाव लिए हुए है।
इस प्रकार नैऋत्य कोण ninety डिग्री से ज्यादा का हो गया है। इसके साथ ही सड़क के किनारे परिसर की दक्षिण और पश्चिम दिशा में नाली भी है जिस कारण यह दिशाएं व कोण भी नीचे हो रहे है। परिसर के अन्दर ईशान कोण में प्रगट महादेव मन्दिर है जिसके आगे एक चबूतरा है।
यह मन्दिर और चबूतरा लगभग a pair of फीट ऊंचा बना हुआ है इस कारण भालका तीर्थ परिसर का ईशान कोण ऊंचा हो गया है। मन्दिर परिसर के वायव्य कोण में सुलभ शौचालय बना है जिसके कारण उत्तर वायव्य में ऊंचाई एवं बढ़ाव आ गया है और शौचालय
के कारण परिसर का उत्तर वायव्य ढंक भी गया है। इन वास्तु दोषों को दूर किया जाए तो यह स्थान प्रसिद्घ और भक्तों की आस्था का प्रमुख ।