एक व्यक्ति था जो नियमित मंदिर जाता था परंतु एकांत मे तो चुपचाप रहता कोई भजन कीर्तन ना करता और जैसे ही भीड़ बढ़ने लगती खूब ज़ोर ज़ोर से जयकारा लगाके कीर्तन आदि करने लगता। सभी लोग उसे बहुत भगत मानते थे और भगत जी का संबोधन करते थे इससे उस व्यक्ति को बहुत आत्म संतुष्टि मिलती। आम जीवन मे भी उसका ज़ोर इसी बात पर रहता की उसे मान कैसे मिले और इसलिए हमेशा ही दूसरों मे कमियाँ निकालता रहता।
यहाँ तक
की मंदिर मे
भी जाता तो
सबको उपदेश दिया
करता
और खुद भूले
से भी भगवान
को याद
नही करता।
आरती भी
करता तो
उसका ज़ोर
दूसरों को
दिखाके चिल्लाने
पर रहता
परंतु ये
भाव उसे
नही आता
कि भगवान
सामने खड़े
हैं। इसी
तरह कई
दिन बीत
गये और
वहाँ एक
संत और
भी आने
लगे। कभी
कभी उस
व्यक्ति की
उनसे भेंट
भी हो
जाती लेकिन
वो उनसे
कुछ भी
ज्ञान की
बात नही
पूछता क्यूंकी
उसे लगता
की लोग
समझेंगे की
उसे कुछ
मालूम नही
तभी तो
वो इन
संत से
पूछ रहा
है।
बल्कि वो
व्यक्ति संत
महाराज को
ही बताने
लगता की
आप अकेले
मे तो
इतना भजन
करते हैं
लोगों के
सामने चुप
क्यूँ हो
जाते हैं,
अरे! भगवान
का भजन
तो सबके
साथ मिलके
ही किया
जाता है।
वो संत
मुस्कुराते और
आँखें बंद
कर लेते।उस
व्यक्ति को
लगता कि
कदाचित् संत
महाराज भी
मेरी बात
से सहमत
है।
एक दिन उस आदमी ने एक नयी चप्पल खरीदी और मंदिर के बाहर हमेशा की तरह उतार कर अंदर आ गया। परंतु उसका मन बार बार चप्पल पर जाए की कहीं कोई चोरी ना कर ले। ये सब देखकर भगवान को बहुत दुख हुआ।
उस रात व्यक्ति ने स्वप्न देखा की कोई अलौकिक पुरुष उसी मंदिर के बाहर उसकी चप्पल के पास खड़ा है, तुरंत ही उसकी नींद टूट गयी वो घबराके बैठ गया। उसने विचार किया की इसका अर्थ किससे पूछा जाए क्यूंकी उसने कभी कोई प्रश्न किसी से पूछा नही की लोग उसे अज्ञानी ना समझे।
बहुत सोच विचार कर उसने सोचा एकांत मे उसी संत से पूछूँगा जो मंदिर आते हैं क्यूंकी वो धीरे बोलते हैं और अधिक लोगों से बातचीत भी नही करते। उस दिन वो मंदिर गया और उसने अपनी बात संत के सामने रखी। उसकी बात सुनते ही संत की आखों मे आँसू आ गये और वो भाव समाधि मे चले गये। कुछ देर बाद जब उनकी आखें खुली तो उस व्यक्ति ने फिर अपना प्रश्न दोहराया की इस स्वप्न का क्या अर्थ है?
संत बोले, वो महापुरुष जो आपकी चप्पल के पास खड़े थे स्वयं प्रभु थे जिनकी मूर्ति इस मंदिर मे विराजमान है और वो आपको ऐसा करके यही संकेत दे रहे थे की तुम मंदिर मे रहके भी मुझे स्मरण नही करते और मैं मंदिर मे होते हुए भी तुम्हारे चप्पल की रखवाली करता हूँ। ये सुनते ही उस व्यक्ति की भी आँखें भीग गयीं उसने संत के चरण पकड़ लिए और बोला महाराज अब मैं समझा की आप एकांत मे इतने भाव से क्यूँ भजन गाते और भीड़ के साथ क्यूँ चुप हो जाते क्यूंकी आप हमेशा प्रभु प्रेम मे रहते हैं और प्रभु भक्ति दिखावे का नही भाव का विषय है।
कृपया करके मुझे क्षमा कर दें जो मैने अज्ञान वश आपको कभी अपमानित किया हो ये कहकर वो व्यक्ति भाव विभोर हो गया, संत ने आगे बढ़के उसे गले से लगा लिया।
उस दिन भी उस व्यक्ति ने भीड़ के साथ हमेशा की तरह ज़ोर ज़ोर से भजन किया परंतु उसकी आखें बंद थीं और उनसे अश्रु निकल रहे थे।