Inspiration - (त्यागी वह होता है)
भगवान बुद्ध के पास सम्राट श्रोणिक आए
और पूछा, भंते, हमारे राजकुमार, जिन्हें बहुत
अच्छा भोजन मिलता है, जिन्हें हर तरह
की सुविधाएं हैं, जो बड़े आवास में रहते हैं,
जिनके साथ नौकर-चाकरों की पूरी फौज
है, फिर भी वे प्रसन्न नहीं रहते। और आपके ये भिक्षु जो पदयात्रा करते हैं, निरंतर भ्रमण
करते हैं, खाने को जैसा मिल जाता है,
खा लेते हैं। रहने को जो कुटिया मिल जाए,
वहां रह लेते हैं, फिर भी इनके चेहरे पर
हमे
शा इतनी प्रसन्नता रहती है।
इसका कारण क्या है? भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया,
प्रसन्नता खोजनी हो तो अकिंचन
(जिसके पास कुछ भी न हो) में खोजो।
जिसने संकल्प पूर्वक सब कुछ छोड़ दिया,
वही प्रसन्न रह सकता है।
भिखारी कभी प्रसन्न नहीं होगा, क्योंकि उसने छोड़ा नहीं है। वह तो अभाव
में ही जीवन जी रहा है। अभाव का जीवन
जीने वाला प्रसन्न नहीं रह सकता। उसे
चिंताएं हर क्षण घेरे रहती हैं। जिसने
जानबूझ कर छोड़ा है, वह प्रसन्न रह
सकता है। ये दो बातें हैं- एक छोड़ना और एक छूटना। जिसे पदार्थ प्राप्त नहीं है, वह
त्यागी नहीं है। त्यागी वह होता है,
जो अपने स्वतंत्र मन से त्याग कर दे।
वही प्रसन्न रह सकता है। अभावग्रस्त
प्रसन्न नहीं रह सकता। साधन,
सुविधा संपन्न व्यक्ति भी प्रसन्न नहीं रह सकता। उसे पैसे
की सुरक्षा की चिंता सताती है। वे
हमेशा भयभीत रहता है। अभय
वही हो सकता है, जिसने स्वेच्छा से त्याग
किया है। श्रोणिक को अपने प्रश्न
का समाधान मिल गया।