Inspiration - (अध्यात्म का लाभ ही तब है जब उसे व्यवहार में लाया जाए)
तीन युवाओं ने धर्म और अध्यात्म शास्त्र का गहरा अध्ययन किया। क िन से क िन श्लोक और
नीति सूत्र उनकी जुबान पर थे। एक दिन
तीनों कहीं से आ रहे थे कि रास्ते में एक
भूखा और बीमार व्यक्ति दिखा।
तीनों के पास भोजन था, वे उसे अपना- अपना भोजन देने लगे। तभी एक साधु उनके
पास आए और बोले, ऐसे तुम इसे भोजन
नहीं करा सकते। तुम तीन हो और
भूखा व्यक्ति एक। तुम तीनों ही उपकार
का पुण्य कमाना चाहते हो। इसलिए इस
पुण्य का
अवसर पाने के लिए तुम्हें एक छोटी सी परीक्षा देनी होगी।
साधु ने कुछ दूर स्थित एक मंदिर दिखाते
हुए कहा, तीनों उस मंदिर में जा कर
देवी मां का आशीर्वाद लो और एक घंटे के
लिए ध्यान करो। उस दौरान तुम में से
जिसके मन में भी सर्वश्रेष् विचार आएगा, वही उस
व्यक्ति की सेवा का अवसर पा सकेगा।
साधु की बात सुन कर तीनों मंदिर
की ओर चल पड़े। कुछ समय बाद साधु फिर आए। उन्हें देख कर
पहले युवक ने बताया, मैंने ध्यान में महसूस
किया कि अध्यात्म का मार्ग अपनाने के
लिए मैंने अपना सब कुछ त्याग दिया है,
इसलिए उस भूखे की सेवा करने
का अधिकारी मैं ही हूं। दूसरे ने कहा, मैंने देखा कि मैं ही गुरु हूं और मुझे
ही सबका मार्ग दर्शन करना है। इसलिए
भूखे की सेवा करने का आरंभ भी मुझे
ही करना चाहिए। साधु ने तीसरे युवक की ओर देखा, तब वह बोला, महाराज! मेरा मन नहीं लगा।
दिमाग में वह भूखा और बीमार
व्यक्ति ही घूमता रहा। इसलिए मंदिर से
चला आया। मन ने कहा कि ऐसे पुण्य
का क्या फायदा, जो वक्त पर किसी की तकलीफ कम नहीं कर सके।
इसलिए वापस आ कर उसके
घावों की मरहम पट्टी करने लगा। मैं ने
ध्यान लगाया ही नहीं। तीसरे युवक की बात सुन कर साधु बोले,
वास्तव में धर्म, अध्यात्म और मोक्ष
को तुमने ही समझा है। ज्ञान और
अध्यात्म का लाभ ही तब है, जब उसे
व्यवहार में लाया जाए। यह नहीं कि पहले
शुभ मुहूर्त और शुभ दिन देखा जाए और तब उस काम को अंजाम दिया जाए
ताकि उसका अधिक से अधिक पुण्य मिले।
याद रखो, पुण्य हमेशा नि:स्वार्थ भाव से
किए गए काम का मिलता है। साधु का वेष पहन कर घूमने से अध्यात्म और ज्ञान की पिपासा शांत नहीं होती। ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक
बांटना ही श्रेष् है। अध्यात्म
की गहनता तभी प्राप्त होती है, जब उसे
व्यावहारिक जीवन में सद्भावना और नेकी से दूसरों के लिए प्रयोग किया जाए। कोई व्यक्ति चाहे विद्वान
न हो, वेदों और शास्त्रों से परिचित न
हो, लेकिन यदि वह अपने जीवन में
ईमानदारी और मेहनत से काम करते हुए
सभी की हर संभव मदद करता है, तो उससे बड़ा आध्यात्मिक योगी कोई नहीं है। इसलिए आध्यात्मिक बातें करने वाला नहीं, बल्कि अध्यात्म को व्यवहार में
लाने वाला ही आदर का पात्र होता है।
और सामान्य व्यक्ति भी अपने प्रयासों
से आध्यात्मिक हो सकता है। जीवन में आध्यात्मिक बातें सुनना और सुनाना सबको अच्छा लगता है। लेकिन सद्गुण और सद्विचार सहज ही सबको
अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हर कोई ऐसे
व्यक्ति की ओर आकर्षित होता है।
लेकिन अध्यात्म को व्यवहार में बहुत कम लोग लाते हैं। अधिकतर लोग बस भजन
गाने और कर्मकांड करने को ही आराधना
समझ लेते हैं। ईश की आराधना के ध्येय को
सभी जानते हैं, पर उसे विरले ही अपनाते
हैं। हर धर्म के ग्रंथ में यही लिखा है कि
ईश्वर एक है, उसके रूप अनेक हैं। वह सभी को एकता, प्रेम और सेवा का संदेश देता है।
फिर भी अनेक लोग दूसरे धर्म के
अनुयायियों को हेय दृष्टि से देखते हैं।