पुराणों के अनुसार एक बार दक्ष प्राजापतिने गंगा किनारे हरिद्वार में बहुत बडे यज्ञ का आयोजन किया। इसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया किंतु भगवान शंकर व माता सती को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। देवी देवताओं को आकाश मार्ग से जाते देख माता सती ने भगवान शंकर से कहा कि ये देवी देवता मेरे पिता के यज्ञ में भाग लेने के लिए जा रहे है। हमें भी जाना चाहिए परंतु भगवान शंकर ने कहा कि हमें निमंत्रण नहीं आया है, इसलिए बिना बुलाए जाने पर अपमान होगा। माता सती बात न मानकर चली गई।
माता सतिजब अपने पिता दक्ष के घर पहुंची तो वहां उसका कोई आदर सत्कार न हुआ। माता तथा बहनों ने भी उनसे कोई बात तक नहीं की, दूसरे देवी-देवताओं को सम्मानित व अपना अपमान होते देख माता सती ने हवन कुंड में छलांग लगा दी, लेकिन अग्नि देवता ने उन्हें छुआ तक नहीं। इसके बाद माता सती ने योगाग्निसे अपने शरीर को भस्म कर दिया। जब महादेव को इस सारी बात का ज्ञात हुआ तो वह यज्ञशाला पहुंचे और माता सती के जलते शव को उठाकर हिमालय की घाटियों में घूमते रहे अंत में माता के स्थान पर पहुंचे तथा माता सती की देह के साथ अंतर ध्यान हो गए।
संस्कृत में हुद्धका अर्थ है हवन करना, बलिदान करना अपने शरीर को स्वाह करना। चूंकि पार्वती सती हुई और उनके शरीर को कुछ भाग यहां अंतर ध्यान हो गया इसलिए यह स्थान हुद्धमाताके नाम से जाना जाता है।
माता को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने तथा समाज में धार्मिक जागृति लाने हेतु इस यात्रा का आयोजन वर्षों से हो रहा है।
दर्शनीय स्थल
कैकूट:प्राचीन काल से दरबार के नीचे बना मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामजी का मंदिर।
दरबार: माता का मंदिर यहां पर नाग देवता के साक्षात दर्शन होते है, यहां एक छोटी गुफाहै जिसमें प्राकृतिक रूप बने शिवलिंगोंपर गुफामें कामधेनु के थनों जैसे आकृति वाली पत्थरों से श्वेत अमृत की बूंदे गिरती है।
माता त्रिसंध्या: थोडीदूरी पर दिन में तीन बार बहने वाली नदी है, इस नदी को माता त्रिसंध्या नदी कहते है जिसके दर्शन मात्र से जन्म जन्म के पाप मिट जाते है और स्नान करने से जीवन का उद्धार होता है। इस नदी का जल दरिया से मिलने के बाद नीचे से उपरकी और सूखने लगता है। इस अलौकिक नजारे का दर्शन हर कोई करने को आतुर रहता है।
दूधगंगा:सतरचीनके मैदान पर ब्रहमपर्वत के दामन में सर्पाकार बहने वाली जल सरिता, यहां जल उबलता जैसा प्रतीत होता है।
ब्रह्मसरोवर: ब्रह्मपर्वत की गोद में शीतल जल की झील भांति-भांति के पुष्पों से सुशोभित बेहद सुंदर है।
ब्रह्मपर्वत: यह वह पर्वत है जो हर समय एक तरफ से बादलों से घिरा रहता है। इस भगवान ब्रह्माजी का निवास स्थान माना जाता है।