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Makhanlal Chaturvedi~माखनलाल चतुर्वेदी

Makhanlal Chaturvedi~माखनलाल चतुर्वेदी

Makhanlal Chaturvedi

Pandit Makhanlal Chaturvedi (Hindi: माखनलाल चतुर्वेदी) (April 4, 1889 – January 30, 1968), also called Panditji, was an Indian poet, writer, essayist, playwright and a journalist who is particularly remembered for his participation in India's national struggle for independence and his contribution to Chhayavaad (Hindi: छायावाद), the Neo-romanticism movement of Hindi literature. He was awarded the first Sahitya Akademi Award in Hindi for his work Him Taringini (Hindi: हिम तरंगिणी) in 1955.

Early life

Born in Bavai village in Hoshangabad district of Madhya Pradesh.He was only sixteen when he took up a teacher job in a school.   He later remained the editor of the nationalistic journals Prabha(Hindi: प्रभा) and Karmaveer (Hindi: कर्मवीर), and was repeatedly incarcerated during the British raj. After the Indian independence, he refrained from seeking a position in the government, instead continuing to speak and write against social evils and in support of an exploitation-free, equitable society as envisioned by Mahatma Gandhi. His poems displayed his unconditional love and respect towards his country and that is why he was also referred to as "a true indian spirit".

Works
His noted works are Him Kirtini, Him Tarangini (Hindi: हिम तरंगिणी), Yug Charan (Hindi: युग चरण), and Sahitya Devata (Hindi: साहित्य देवता), and his most noted poems are Dip Se Dip Jale (Hindi: दीप से दीप जले), Kaisa Chhand Banaa Deti hai (Hindi: कैसा छन्द बना देती है) and Pushp ki Abhilaashaa (Hindi: पुष्प की अभिलाषा).

Legacy

In his memory, the Madhya Pradesh Sahitya Akademi (Madhya Pradesh Cultural Council) organizes the annual 'Makhanlal Chaturvedi Samaroh', since 1987, besides awarding the annual 'Makhanlal Chaturvedi Puraskar' in poetry for excellence in poetry by an Indian poet

The Makhanlal Chaturvedi Rashtriya Patrakarita University at Bhopal in Madhya Pradesh (estb. 1991) has been named in his honor  

माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी सुंदर चित्रण हुआ है।


जीवनी

श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई  नामक स्थान पर हुआ था।

कार्यक्षेत्र
माखनलाल चतुर्वेदी का तत्कालीन राष्ट्रीय परिदृश्य और घटनाचक्र ऐसा था जब लोकमान्य तिलक का उद्घोष- 'स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' बलिपंथियों का प्रेरणास्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग कर कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी का राष्ट्रीय परिदृश्य के केंद्र में आगमन हो चुका था। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए स्वदेशी का मार्ग चुना गया था, सामाजिक सुधार के अभियान गतिशील थे और राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी। ऐसे समय में माधवराव सप्रे के 'हिन्दी केसरी' ने सन १९०८ में 'राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार' विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल १९१३ में खंडवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका 'प्रभा' का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा गया। सितंबर १९१३ में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने 'प्रताप' का संपादन-प्रकाशन आरंभ किया। १९१६ के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलालजी ने विद्यार्थीजी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी से मुलाकात की। महात्मा गाँधी द्वारा आहूत सन १९२० के 'असहयोग आंदोलन' में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलालजी ही थे। सन १९३० के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला। उनके महान कृतित्व के तीन आयाम हैं : एक, पत्रकारिता- 'प्रभा', 'कर्मवीर' और 'प्रताप' का संपादन। दो- माखनलालजी की कविताएँ, निबंध, नाटक और कहानी। तीन- माखनलालजी के अभिभाषण/ व्याख्यान।
पुरस्कार व सम्मान

१९४३ में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा 'देव पुरस्कार' माखनलालजी को 'हिम किरीटिनी' पर दिया गया था। १९५४ में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की स्थापना होने पर हिन्दी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार दादा को 'हिमतरंगिनी' के लिए प्रदान किया गया। 'पुष्प की अभिलाषा' और 'अमर राष्ट्र' जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने १९५९ में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया। १९६३ में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया। १० सितंबर १९६७ को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलालजी ने यह अलंकरण लौटा दिया। १६-१७ जनवरी १९६५ को मध्यप्रदेश शासन की ओर से खंडवा में 'एक भारतीय आत्मा' माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। तत्कालीन राज्यपाल श्री हरि विनायक पाटसकर और मुख्यमंत्री पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र तथा हिन्दी के अग्रगण्य साहित्यकार-पत्रकार इस गरिमामय समारोह में उपस्थित थे। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। उनके काव्य संग्रह 'हिमतरंगिणी' के लिये उन्हें १९५५ में हिन्दी के 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

प्रकाशित कृतियाँ

    हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं।
    कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पांव, अमीर इरादे :गरीब इरादे आदि आपकी प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ हैं।


 

 
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